प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के अनुसार किसी देश के लिए सड़कों का वही महत्व है जो मानव शरीर में धमनियों और नसों का होता है। इसी को देखते हुए मोदी सरकार देश भर में सड़कों का जाल बिछा रही है। इससे देश के हर हिस्से व कोने को बेहतर सड़कों से जोड़ दिया जाएगा।
सत्ता संभालने के बाद से ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी देश में सड़क निर्माण को प्राथमिकता दे रहे हैं। उनकी कोशिशों का ही नतीजा है कि शुरूआती चार साल में ही सरकार 28,531 किलोमीटर सड़क (हाईवे, एक्सप्रेसवे) बनाने में कामयाब रही है। दूसरी ओर इससे पहले की संप्रग सरकार अपने आखिरी चार साल में केवल 16,505 किलोमीटर सड़कों का ही निर्माण कर पाई थी। यह उपलबधि सड़क क्षेत्र में सरकारी खर्च बढ़ाने, रूकी हुई परियोजनाओं की बाधाएं दूर करने, बैंकों व वित्तीय संस्थाओं को आश्वस्त करने, सड़क बनाने वाली कंपनियों को वित्तीय संकट से उबारने और मंत्रालय को पेशेवर रूप देने से हासिल हुई है।
2014 में सड़क एवं परिवहन क्षेत्र में जो विरासत संप्रग सरकार ने छोड़ी थी उससे जूझना आसान काम नहीं था। उस समय परियोजनाओं की मंजूरी प्रक्रिया बेहद जटिल थी। सड़क परियोजनाओं की फाइल एक से दूसरे मंत्रालय में घूमती रहती थी। भूमि अधिग्रहण के पचड़े भी कम नहीं थे। इसीलिए कोई बैंक इस क्षेत्र में पैसा लगाने का तैयार नहीं था।
मोदी सरकार ने इन बाधाओं को दूर किया। लंबित ठेकों के विवाद का समाधान किया, अव्यावहारिक परियोजनाओं को वापस लिया, ठेकों की ऑनलाइन व्यवस्था की गई जिससे भ्रष्टाचार में कमी आई। मोदी सरकार ने पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की महत्वाकांक्षी परियोजनाओं (स्वर्णिम चतुर्भुज और उत्तर-दक्षिण व पूर्व-पश्चिम कॉरिडोर) को न सिर्फ पूरा किया किया बल्कि कई नई सड़क परियोजनाओं का आगाज किया।
मोदी सरकार नए राजमार्गों के निर्माण के लिए उन इलाकों को चुन रही है जो विकास की दृष्टि से पिछड़े हैं। इन इलाकों में सड़क बनने से जहां विकास की नई धारा बहेगी वहीं भूमि अधिग्रहण और ऊंची कीमत की समस्या का भी समाधान हो जाएगा। पूर्वोत्तर, उत्तराखंड जैसे पर्वतीय क्षेत्रों में सड़क निर्माण को गति देने के लिए सीमा सड़क संगठन (बीआरओ) से अलग नेशनल हाईवे एंड इफ्रास्ट्रक्चर डेवलपमेंट कॉर्पोरेशन लिमिटेड (एनआईडीसीएल) का गठन किया गया है। इससे दुर्गम इलाकों में सड़क निर्माण में तेजी आई है।
राजमार्गों के निर्माण से समय, ईंधन और प्रदूषण में कमी आ रही है। उदाहरण के लिए दिल्ली-मुंबई एक्सप्रेसवे को आर्थिक दृष्टि से पिछड़े इलाकों में बनाया जा रहा है। इससे इन इलाकों का विकास होगा जो बेहतर संपर्क नहीं होने के कारण विकास में पीछे रह गए हैं। एक्सप्रेसवे और हाईवे के किनारे लॉजिस्टिक पार्क बनाए जा रहे हैं, जिससे सामान ढुलाई में आने वाली लागत कम हो जाएगी। सड़क, रेल और बंदरगाह संपर्क मार्ग बनने से एक राज्य से दूसरे राज्य और देश से विदेश सामान भेजना आसान हो जाएगा।
मोदी सरकार तटीय राज्यों को बेहतर सड़क संपर्क मुहैया कराने के लिए सागरमाला परियोजना क्रियान्वित कर रही है। इसके तहत देश के तटीय इलाकों में 7500 किलोमीटर लंबी सड़कें बन रही हैं। इस परियोजना पर 70,000 करोड़ रूपये खर्च होने का अनुमान है। इसके अलावा रेल मंत्रालय भी 20,000 करोड़ रूपये की लागत से 21 बंदरगाहों की रेल संपर्क परियोजना पर काम कर रहा है।
इसका उद्देश्य यह है कि बंदरगाहों पर जहाजों से आने-जाने वाले माल को रेल व सड़क के जरिए उनके गंतव्य तक कम कीमत में व शीघ्रता से पहुंचाया जाए। इस परियोजना में बंदरगाहों के विकास के नए ट्रांसशिपिंग पोर्ट का भी निर्माण शामिल है ताकि बंदरगाहों की क्षमता बढ़ाई जा सके। स्पष्ट है, सागरमाला परियोजना पूरी होने पर देश की लॉजिस्टिक क्षेत्र की तस्वीर बदल जाएगी।
मोदी सरकार सागरमाला परियोजना की भांति भारतमाला परियोजना पर भी काम कर रही है। इसके तहत गुजरात से हिमाचल प्रदेश व जम्मू-कश्मीर होते हुए मिजोरम तक राजमार्ग बनाए जा रहे हैं, जिससे अंतरराष्ट्रीय सीमा वाले प्रदेशों में सीमा पर मजबूत सड़क नेटवर्क बन जाएगा जिसका लाभ कारोबार के साथ-साथ सामरिक मामलों में भी मिलेगा।
इतना ही नहीं, भारतमाला परियोजना के तहत 44 आर्थिक गलियारों के निर्माण की भी योजना है। इनमें से जल्दी ही 9 गलियारे एक्सप्रेसवे से जुड़ जाएंगे। इससे बाधारहित कारोबारी गतिविधयों को बढ़ावा मिलेगा। समग्रत: मोदी सरकार देश भर में सड़कों का जाल बिछा रही है जिससे देश के हर हिस्से तक विकास का लाभ पहुंचे। ऐसा होने पर गरीबी, बेकारी, असमानता, पलायन जैसी समस्याएं अपने आप दूर हो जाएंगी।
(लेखक केन्द्रीय सचिवालय में अधिकारी हैं। ये उनके निजी विचार हैं।)