पूर्वोत्तर के सामरिक महत्व और पिछड़ेपन को देखते हुए 2014 में सत्ता संभालने के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने यहां के विकास को सर्वोच्च प्राथमिकता दिया। उन्होंने तय किया कि एक केंद्रीय मंत्री हर पंद्रह दिन में पूर्वोत्तर क्षेत्र का दौरा करेगा और यह दौरा महज खाना-पूर्ती वाला नहीं होगा। “लुक ईस्ट” नीति से आगे बढ़ते हुए उन्होंने “एक्ट ईस्ट” नीति पर काम शुरू किया।
1947 में देश के बंटवारे ने कई ऐसे विभाजन पैदा किए जिन्होंने इस उपमहाद्वीप को पीछे धकेलने का काम किया। यदि पूर्वोत्तर की गरीबी, बेकारी, अलगाववाद, आतंकवाद की जड़ तलाशी जाए तो वह देश विभाजन में मिलेगी। 1947 तक पूर्वोत्तर का समूचा आर्थिक तंत्र चटगांव बंदरगाह से जुड़ा था लेकिन पूर्वी पाकिस्तान (अब बांग्लादेश) के निर्माण से इस इलाके का कारोबारी ढांचा तहस-नहस हो गया। पूर्वोत्तर में जल परिवहन की समृद्ध विरासत मानव निर्मित सीमाओं में उलझकर रह गई। देश विभाजन ने दूरियां बढ़ाने का भी काम किया।
पहले कोलकाता और अगरतला के बीच की दूरी 441 किलोमीटर थी जो अब बढ़कर 1579 किलोमीटर हो गई है। जिन बागवानी व हस्तशिल्प उत्पादों के लिए पूर्वोत्तर जाना जाता था, वे बाजार के अभाव में दम तोड़ते चले गए। इतना ही नहीं, विभाजन ने शिक्षा, स्वास्थ्य, पेयजल, बिजली, सड़क, रेल जैसी मूलभूत सुविधाओं के विकास में भी बाधा खड़ी की। विकास के मानकों पर जैसे-जैसे यह इलाका पिछड़ा वैसे-वैसे जातीय संघर्ष, अलगाववाद, आतंकवाद बढ़ता गया।
पिछले ढाई दशकों में शेष भारत में आर्थिक सुधारों की जो लहर चली उसका भी यहां बहुत कम असर हुआ। मानव निर्मित सीमाओं के अलावा पिछली कांग्रेसी सरकारों की राजनीतिक-प्रशासनिक इच्छाशक्ति की कमी और अदूरदर्शी नीतियों ने भी पूर्वोत्तर के पिछड़ेपन को बढ़ाने का काम किया। इसी का नतीजा है कि पूर्वोत्तर की सीमा से लगे होने के बावजूद भूटान, म्यांमार, बांग्लादेश को निर्यात होने वाले सामान का 95 फीसदी हिस्सा देश के अन्य राज्यों से आता है।
पूर्वोत्तर राज्यों का भारत से स्थलीय संपर्क महज 22 किमी चौड़ी पट्टी से है जो असम में है। इसके अलावा बाकी पूर्वोत्तर राज्यों का सीधा स्थलीय संपर्क शेष भारत से नहीं है। जल संसाधनों की मौजूदगी और जल विद्युत की भरपूर संभावना के बावजूद यहां की साढ़े चार करोड़ आबादी गरीबी के जाल में उलझी हुई है। इसकी एक बड़ी वजह है कि रेल व सड़क नेटवर्क के मामले में यह इलाका पिछड़ा हुआ है और यहां मेडिकल-इंजीनियरिंग कॉलेजों की भारी कमी है। कारोबारी गतिविधियों में गैर-कानूनी व्यापार की भरपूर मौजूदगी है। यही कारण है कि शिक्षा-दीक्षा और रोजी-रोटी के लिए पूर्वोत्तर के लाखों लोग देश के महानगरों में प्रवास किए हुए हैं।
पूर्वोत्तर के सामरिक महत्व और पिछड़ेपन को देखते हुए 2014 में सत्ता संभालने के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने यहां के विकास को सर्वोच्च प्राथमिकता दिया। उन्होंने तय किया कि एक केंद्रीय मंत्री हर पंद्रह दिन में पूर्वोत्तर क्षेत्र का दौरा करेगा और यह दौरा महज खाना-पूर्ती वाला नहीं होगा। “लुक ईस्ट” नीति से आगे बढ़ते हुए उन्होंने “एक्ट ईस्ट” नीति पर काम शुरू किया।
इसके तहत सरकार यहां के उत्पादों को दक्षिण-पूर्व एशियाई देशों के बाजारों तक पहुंचाने के लिए निकासी मार्ग बना रही है। इसका पहला चरण है भारत-म्यांमार-थाइलैंड त्रिपक्षीय राजमार्ग। मणिपुर के मोरेह से म्यांमार के मांडले होते हुए यह राजमार्ग थाईलैंड के सिटवे बंदरगाह तक जाएगा। इसके अलावा सरकार जलमार्ग से परिवहन को सुगम बना रही है। भारत और दक्षिण-पूर्व एशियाई देशों के बीच पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए शुरू हो रहा बुद्ध-हिंदू सर्किट इसी इलाके से होकर गुजरेगा जिससे इलाके के विकास को बढ़ावा मिलेगा।
पूर्वोत्तर राज्यों में दक्षिण-पूर्व एशियाई देशों की आर्थिक धुरी बनने की क्षमता विद्यमान है, लेकिन इस क्षमता का भरपूर दोहन तभी होगा जब यहां सड़क, रेल और हवाई नेटवर्क बने। इसी को देखते हुए सरकार ने अगले पांच साल में एक लाख करोड़ रूपये की सड़क परियोजनाएं आवंटित की हैं। पूर्वोत्तर के लिए विशेष त्वरित सड़क विकास योजना शुरू की गई हैं। इसके तहक 2/4 लेन वाली 6418 किलोमीटर सड़क बनेगी। पिछले तीन वर्षों में 13500 करोड़ की लागत से 1266 किमी राष्ट्रीय राजमार्ग बनाया गया है।
सरकार ने समूचे पूर्वोत्तर में रेल नेटवर्क मजबूत बनाने के लिए 1385 किलोमीटर लंबाई की 15 नई रेल परियोजनाओं को मंजूरी दी है, जिन पर 47000 करोड़ रूपये की लागत आएगी। पिछले तीन वर्षों में पूर्वोत्तर के पांच राज्यों (मिजोरम, अरुणाचल प्रदेश, मणिपुर, त्रिपुरा, मेघालय) को ब्रॉड गेज रेल नेटवर्क से जोड़ा गया। 2016-17 में 29 नई रेलगाड़ियां चलाई गई हैं।
पिछले तीन साल में 900 किलोमीटर मीटर गेज की रेल लाइन को ब्रॉड गेज में बदला गया और और अब समूचे पूर्वोत्तर में मीटर गेज रेल नहीं रह गया है। 2020 तक सभी राज्यों की राजधानियों को ब्रॉड गेज रेल नेटवर्क से जोड़ने का लक्ष्य है। जिरिबम व इंफाल के बीच देश की सबसे लंबी रेल सुरंग बन रही है। 2016 में अगरतला अखौरा ब्राडगेज पर काम शुरू हुआ। 15 किमी लंबा रूट पूरा होने पर यह ट्रांस एशियन रेल नेटवर्क का हिस्सा बन जाएगा। इससे कोलकाता और अगरतला के बीच की दूरी घट जाएगी।
नदियों की बहुलता के कारण पूर्वोत्तर में जलमार्ग जीवन का अभिन्न अंग रहा है। हालांकि बांग्लादेश गठन के बाद इसमें बाधा आई, लेकिन अब सरकार इसे बढ़ावा दे रही है। मोदी सरकार 20 नए नदी पत्तन बना रही है और 19 जलमार्गों को राष्ट्रीय जलमार्ग का दर्जा दिया गया है। नदी परिवहन के लिए बांग्लादेश के साथ होने वाले सालाना प्रोटोकाल को बढ़ाकर 10 साल के लिए कर कर दिया गया है।
कहने को तो पूर्वोत्तर में 11 एयर पोर्ट हैं लेकिन परस्पर राज्यों में कनेक्टीविटी नहीं है। मोदी सरकार उड़ान योजना के तहत पूर्वोत्तर राज्यों में 92 नए हवाई रूट तय किया है। इससे इन राज्यों के बीच आवाजाही बढ़ेगी। मेक इन इंडिया, स्किल इंडिया के साथ-साथ आर्थिक गतिविधियों को बढ़ावा देने के लिए म्यांमार, भूटान, बांग्लादेश नेपाल के साथ कारोबारी समझौते किए गए। म्यांमार में लोकतंत्र की बहाली और बांग्लादेश से सुधरते रिश्ते पूर्वोत्तर के विकास के लिए शुभ संकेत हैं।
भूटान पहला देश है, जिसने पूर्वोत्तर के महत्व को समझते हुए गुवाहाटी में कांसुलेट बनाया। जापान भी अपना दफ्तर खोलने की प्रक्रिया में है। सरकार इनर लाइन परमिशन वाले इलाकों का क्षेत्र कम कर रही है ताकि पर्यटन की संभावनाओं का दोहन किया जा सके। भारत का तीसरा कृषि अनुसंधान संस्थान असम में स्थापित हो रहा है। पूर्वोत्तर जैविक उत्पादों का हब है। इसी को देखते हुए मोदी सरकार यहां जैविक खेती को बढ़ावा देने के लिए परंपरागत कृषि विकास योजना शुरू की है। हस्तशिल्प को बढ़ावा देने के लिए इंडिया हैंडीक्राफ्ट बाजार लांच किया गया है। स्पष्ट है मोदी सरकार के प्रयासों से पूर्वोत्तर में विकास का सूर्यादय हो रहा है।
(लेखक केन्द्रीय सचिवालय में अधिकारी हैं। ये उनके निजी विचार हैं।)