वैसे तो आजादी के बाद से ही देश में राजनीतिक हित साधने के लिए रेलवे का इस्तेमाल शुरू हो गया लेकिन गठबंधन राजनीति के दौर में इसने समस्या का रूप ले लिया। लंबे अरसे की उपेक्षा के बाद मोदी सरकार ने रेलवे के आधुनिकीकरण का बीड़ा उठाया जिसके नतीजे अब आने लगे हैं।
देश के एकीकरण में अहम भूमिका निभाने और अर्थव्यवस्था की धमनी होने के बावजूद भारत में रेलवे का इस्तेमाल सही ढंग से नहीं हुआ। आजादी के बाद से ही रेलवे का इस्तेमाल राजनीति चमकाने के लिए किया जाने लगा। यही कारण है कि रेल सेवाओं के मामले में भारी असंतुलन फैला। 1990 के दशक में शुरू हुई गठबंधन की राजनीति में इस क्षेत्रीय असंतुलन ने समस्या का रूप ले लिया। दरअसल इस दौरान रेलवे को सरकार में शामिल सहयोगी दलों को दहेज में दिया जाने वाला लग्जरी आइटम बना दिया गया।
क्षेत्रीय दलों से बनने वाले रेल मंत्रियों ने रेलवे का इस्तेमाल अपनी राजनीति चमकाने के लिए किया। इसका नतीजा यह निकला कि चुनिंदा रेल मार्गों पर गाड़ियां चलाई गईं और किराया बढ़ाने से परहेज किया गया। इससे रेलवे का घाटा तेजी से बढ़ा। इस घाटे की भरपाई के लिए माल भाड़ा बढ़ाया गया। इससे माल भाड़ा तेजी से बढ़ा और माल ढुलाई के काम का एक बड़ा हिस्सा रेलवे के हाथों से निकलकर कर ट्रक कारोबारियों के पास जाने लगा।
उदाहरण के लिए 1970-71 में कुल ढुलाई में रेलवे की हिस्सेदारी 70 फीसदी थी जो कि आज 30 फीसदी रह गई है। इससे रेलवे की आमदनी प्रभावित हुई। महंगी ढुलाई का परिणाम आर्थिक वृद्धि दर में सुस्ती और महंगाई के रूप में सामने आया। चूंकि गठबंधन राजनीति के दौर में राष्ट्रीय की बजाय क्षेत्रीय जरूरतों को ध्यान में रखा गया, इसलिए चुनिंदा लाइनों पर ही गाड़ियां बढ़ाई गईं जिसका परिणाम बढ़ते कंजेशन व लेट-लतीफी के रूप में सामने आया।
रेलवे के घाटे में चलने से नई पटरियां बिछाने, लाइनों के दुहरीकरण-विद्युतीकरण, पुलों का रखरखाव और आधुनिकीकरण जैसे कार्य प्रभावित हुए। मोदी सरकार ने रेलवे के आधुनिकीकरण को प्राथमिकता में लिया और लंबित परियोजनाओं को पूरा करने को प्राथमिकता दी।
10,000 किलोमीटर के ट्रंक रूट को हाईस्पीड कोरिडोर में बदलने और आधुनिकीकरण के लिए 20 लाख करोड़ रूपये का निवेश किया जा रहा है। कुल आवंटन की आधी राशि अर्थात 10 लाख करोड़ रूपये ट्रेनों की स्पीड बढ़ाने में खर्च किए जाएंगे। इसके तहत दिल्ली–मुंबई, दिल्ली-हावड़ा, बंगलौर-हैदराबाद जैसे रूट को अपग्रेड कर हाईस्पीड कोरिडोर में बदला जाएगा। इस रूट पर आने वाले स्टेशनों को भी वर्ल्ड क्लास टर्मिनल्स में बदला जाएगा।
3300 किलोमीटर लंबे डेडिकेटेड फ्रेट कारिडोर के पूरा होने पर मौजूदा रूट पर बोझ कम होगा और उस पर अधिक स्पीड से यात्री गाड़ियों को दौड़ाया जा सकेगा। 60,000 करोड़ रूपये की लागत से सिग्नलिंग व इलेक्ट्रीफिकेशन नेटवर्क बदला जाएगा जिससे 6-7 मिनट के अंतर पर रेलगाड़ियां दौड़ेंगी। मोदी सरकार ने यात्री गाड़ियों के साथ-साथ मालगाड़ियों की औसत रफ्तार को दोगुना करने का लक्ष्य रखा है। रेल परियोजनाओं को समय से पूरा करने के लिए सरकार ने रेलवे में निवेश को तीन गुना बढ़ाया है। सुरक्षा में निवेश बढ़ाने का ही नतीजा है कि दुर्घटनाओं में कमी आई है।
रेलवे की रफ्तार बढ़ाने के लिए मोदी सरकार रेलवे संबंधी आधारभूत ढांचे पर सबसे ज्यादा जोर दे रही है। 2022 तक सभी ब्रॉड गेज रेल लाइनों के विद्युतीकरण का लक्ष्य है। 2020-21 तक सभी रेलवे स्टेशनों पर सौर ऊर्जा प्लांट लगाने की योजना है। भारतीय रेलवे ने विश्व की पहली सौर ऊर्जा आधारित ट्रेन चलाने का कीर्तिमान बनाया है। एक समय रेल हादसों का प्रमुख कारण रही मानव रहित रेलवे क्रॉसिंग को पूरी तरह खत्म कर दिया गया है।
रेल बोगियों में पानी भरने की पुरातन प्रणाली का आधुनिकीकरण किया जा रहा है। इससे ट्रेनों में असमय पानी खत्म होने की समस्या का अंत हो जाएगा। रायबरेली स्थित कोच की साज-सज्जा फैक्टरी को सरकार ने 2014 में सार्वजनिक उपक्रम का दर्जा दिया। इसका परिणाम यह हुआ कि इस फैक्टरी में बड़े पैमाने पर निवेश हुआ और इसे माडर्न कोच फैक्टरी नाम दिया गया।
यह देश का पहला कोच कारखाना है जहां पूरा उत्पादन रोबोट के जरिए हो रहा है। इससे उत्पादन में तेजी आई। यहां 2014-15 में 140 कोच बने जो कि 2017-18 में बढ़कर 711 और 2018-19 में 1422 कोच तक पहुंच गए। डीजल रेल कारखाना वाराणसी ने विश्व में पहली बार डीजल रेल इंजन को इलेक्ट्रिक इंजन में बदकर स्वर्णिम इतिहास रच दिया। 40,000 आईसीएफ डिब्बों में एलएचबी जैसा सेंट्रल बफर कपलर लगाकर स्मार्ट कोच में बदला जा रहा है ताकि आरामदेह यात्रा के साथ-साथ दुर्घटनाओं में कमी आए।
रेलवे संबंधी अध्ययन के लिए वड़ोदरा में देश के पहले रेल विश्वविद्यालय का शिलान्यास किया गया है। लोकल ट्रेन मेमू नए अवतार में आ रही है। कम दूरी के यात्रियों को बेहतर सुविधाएं देने के लिए आईसीएफ में 130 किलोमीटर की रफ्तार वाली मेमू का परीक्षण कामयाब रहा है। समग्रत: दशकों से राजनीति चमकाने में इस्तेमाल हो रही रेलवे को मोदी सरकार आधुनिकीकरण के जरिए नया रूप दे रही है।
(लेखक केन्द्रीय सचिवालय में अधिकारी हैं। ये उनके निजी विचार हैं।)