महिला सशक्तिकरण को नए आयाम देती मोदी सरकार

“महिला – वो शक्ति है, सशक्त है, वो भारत की नारी है, न ज्यादा में, न कम में, वो सब में बराबर की अधिकारी है।”  इस संकल्प के साथ मोदी सरकार ने नए भारत के निर्माण की तरफ अग्रसर होते हुए देश की विकास प्रक्रिया में आधी आबादी की भागीदारी को सुनिश्चित किया है। वर्तमान में महिलाओं के विकास से सम्बंधित विमर्श बदल चुका है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नए भारत में महिलाएं अब न केवल योजनाओं की लाभार्थी हैं बल्कि लैंगिक विषमताओं को पीछे छोड़ते हुए विकास की योजनाओं का नेतृत्व भी कर रही हैं।

संसदीय लोकतंत्र में महिला सशक्तिकरण, लोकतान्त्रिक प्रक्रिया में उनकी सहभागिता, महिलाओं को उचित और समान अवसर प्राप्त होना आदि बातें महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। इस बात की महत्ता को केंद्र में रखकर महिलाओं को सशक्त बनाने हेतु लोकतंत्रात्मक शासन प्रणाली के मूलभूत ढांचे के अंतर्गत कानून व विकासात्मक नीतिओं का निर्माण तथा विभिन्न योजनाओं एवं कार्यक्रमों की पहलें की जाती रही हैं।

विदित हो कि महिला सशक्तिकरण के लिए राष्ट्रीय नीति – 2001 को अस्तित्व में आये लगभग दो दशक हो गए हैं। ‘इस बीच देश-दुनिया में नई तकनीकी और सूचनातंत्र में आये बदलाव के चलते भारत के सामाजिक, आर्थिक ढाँचे  में भी महत्वपूर्ण परिवर्तन आया है। इसी को ध्यान में रखते हुए मोदी सरकार ने एक नई राष्ट्रीय महिला नीति का  प्रारूप तैयार किया है।

साभार : e-Mitra.in

इस नए प्रारूप में महिला स्वास्थ्य, खाद्य सुरक्षा, पोषण व शिक्षा पर ध्यान देना; अर्थव्यवस्था के विभिन्न क्षेत्रों जैसे कृषि उद्योग, श्रम, रोजगार, विज्ञान एवं तकनीकी तथा सेवा क्षेत्र में महिलाओं की सहभागिता और नेतृत्व को बढ़ाना; महिलाओं के खिलाफ होने वाली हिंसा की रोकथाम करना; प्रशासन एवं नीति निर्माण और अन्य क्षेत्रों जैसे मीडिया, संचार, संस्कृति, खेल कूद और सामाजिक सुरक्षा में महिलाओं की भागीदारी तथा पर्यावरण एवं जलवायु परिवर्तन में उनकी भूमिका को बढ़ाना प्रमुख है। निश्चित रूप से यह नीति महिलाओं के जीवन में व्यापक रूप से सकारात्मक बदलाव के द्वार खोलेगी।

गौरतलब है कि अपने पहले कार्यकाल में नरेन्द्र मोदी ने नारी-शक्ति को केंद्र में रखकर ‘बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ’ अभियान की शुरुआत करते हुए अपने इरादों का परिचय दे दिया था। उन्होंने स्पष्ट कर दिया था कि विकास के अभियान में महिलाओं के प्रतिनिधित्व को बढ़ाये बगैर उनकी क्षमता का सही उपयोग नही हो सकता।

बता दें कि मोदी सरकार में  लैंगिंक समानता, महिला सशक्तिकरण, महिला स्वावलंबन जैसे मुद्दों के साथ ही साथ अनेक सामाजिक, आर्थिक योजनाओं जैसे बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ; वित्तीय समावेशन की योजनाएं, मुद्रा योजना, जनधन योजना, उज्ज्वला योजना, पोषण योजना और कौशल विकास जैसी तमाम योजनाओं के केंद्र में महिलाएं पहले से ही रही हैं।

वर्तमान आकड़ों को देखें तो उज्ज्वला योजना के माध्यम से करीब 8 करोड़ भारतीय महिलाओं की एलपीजी गैस सिलिंडर तक पहुँच ने उनको स्वस्थ जीवन जीने के लिए सशक्त किया है। वही उज्जवला 2.0 की बात की जाए तो इसके माध्यम से और 1 करोड़ वंचित परिवारों को लाभार्थी के रूप में शामिल किया गया है।

ध्यान देने योग्य बात यह है कि यह योजना न केवल व्यापक स्तर पर सामाजिक परिवर्तन ला रही है बल्कि इस योजना के अधिकांश लाभार्थी ऐसी महिलाएं हैं जो कि अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति एवं अन्य पिछड़े वर्ग के समुदायों से आती हैं।

साभार : The Economic TImes

सामाजिक-आर्थिक क्षेत्र के साथ ही साथ राजनीतिक व्यवस्था में भी महिलाओं का प्रतिनिधित्व बढ़ा है। मोदी सरकार के दूसरे कार्यकाल का पहला मंत्रिपरिषद विस्तार कई मायनो में ऐतिहासिक रहा, जिसमें  सबसे महत्वपूर्ण आधी-आबादी या यूं कहें कि महिलाओं के प्रतिनिधित्व में प्रधानमंत्री मोदी का विश्वास रहा जिसके परिणामस्वरुप मंत्रिपरिषद विस्तार में महिला मंत्रियो की कुल संख्या 11 तक पहुच गयी जो कि अब तक का उच्चतम प्रतिनिधित्व है।

इस प्रकार प्रधानमंत्री मोदी के दूसरे मंत्रिपरिषद के विस्तार ने पिछले सभी कार्यकालों की तुलना में महिलाओं को ज्यादा प्रतिनिधित्व दिया है। इसके अलावा दो मंत्रिपद, जिसमे एक वित्त मंत्रालय जिसका कार्यभार निर्मला सीतारमण संभाल रही हैं जो कि पूर्व में रक्षा मंत्रालय का भी कार्यभार संभाल चुकी हैं। और दूसरा ‘महिला और बाल विकास मंत्रालय’ जिसकी ज़िम्मेदारी स्मृति ईरानी के पास है। ये दोनों महिलाएं प्रधानमंत्री मोदी के कैबिनेट में शामिल हैं। इतने महत्वपूर्ण मंत्रालयों का कार्यभार महिला मंत्रियों के कंधे पर डालना नए भारत की महिला शक्ति के प्रति प्रधानमंत्री मोदी के विश्वास को ही दर्शाता है।

यदि समावेशी प्रतिनिधित्व पर ध्यान दिया जाये तो यह स्पष्ट हो जाता है कि प्रधानमंत्री मोदी ‘सामाजिक-सहभागिता’ और ‘एक भारत-श्रेष्ठ भारत’ के सपने को साकार रूप दे रहें हैं। महिला मंत्रियो में अनुसूचित जाति, अनुसूचित जन-जाति और अन्य पिछड़ा वर्ग सहित समाज के सभी वर्गों का प्रतिनिधित्व स्पष्ट दिखाई देता है। एक तरफ जहा अनुप्रिया पटेल उत्तर प्रदेश के अन्य पिछड़ा वर्ग से आती हैं, वही पेशे से डॉक्टर भारती पवार अनुसूचित जनजाति का प्रतिनिधित्व करती हैं।

मंत्रिपरिषद में प्रतिनिधित्व के अलावा इस सरकार में अधिकतम महिला राज्यपाल भी रही हैं, जो केंद्र सरकार के प्रतिनिधि के रूप में अपनी संवैधानिक जिम्मेदारियों का कुशल निर्वहन कर रही हैं। महिला राज्यपालों में नजमा हेपतुल्लाह जहां अल्पसंख्यक समुदाय से आती हैं, वही द्रोपदी मुर्मू और अनुसुईया उईके अनुसूचित जनजाति का प्रतिनिधित्व करती हैं।

कुल मिलाकर निष्कर्ष यह है कि मोदी सरकार ने बिना किसी शोर-शराबे के महिलाओं को केंद्र में ला कर खड़ा किया है, जिसकी शुरुआत ‘बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ’ अभियान से हुई थी और आज महिलाओं को समुचित प्रतिनिधित्व देकर नये भारत के निर्माण में उनकी भूमिका को स्वीकारा और सराहा जा रहा है। न केवल सामाजिक, आर्थिक एवं  राजनीतिक बल्कि सैन्य और न्यायपालिका जैसे संस्थानों में भी महिलाओं का गरिमामयी प्रतिनिधित्व बढ़ी है।

पाश्चात्य आधारित नारीवाद के अतिरेक से अलग, प्रधानमंत्री मोदी ने अपने कुशल नेतृत्व और दूरदर्शिता से नारी-शक्ति को मुख्यधारा में लाकर बाबा साहब डॉक्टर भीमराव अम्बेडकर के उस वाक्य को भी साकार कर दिया है, जिसमें वे कहते थे कि, “किसी भी समाज की प्रगति का मापन महिलाओं की प्रगति से होता है।”

(लेखिका दिल्ली विश्वविद्यालय में असिस्टेंट प्रोफेसर हैं। प्रस्तुत विचार उनके निजी हैं।)