अब मोदी सरकार ने गांवों को रोशन करने की जो मुहिम शुरू की है, उसके पूरा होने पर देश का हर घर सातों दिन-चौबीसों घंटे बिजली की रोशनी से जगमगाएगा। कई राज्यों में तो यह लक्ष्य हासिल हो चुका है। गौरतलब है कि सर्वाधिक समय तक केंद्र की सत्ता में रहने वाली कांग्रेस सरकारों की गलत नीतियों और कमजोर इच्छाशक्ति के कारण आज़ादी के 68 साल बाद भी देश के 18,500 गांवों में बिजली नहीं पहुंच पाई थी। इन गांवों का अंधियारा मिटाने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने नवंबर, 2014 में ‘दीन दयाल उपाध्याय ग्राम ज्योति’ योजना का शुभारंभ किया। इसके तहत उन्होंने एक हजार दिनों में देश के 18,500 गांवों के विद्युतीकरण का लक्ष्य तय किया। अब तक 700 दिनों में 13,000 से अधिक गांवों में बिजली पहुंचाई जा चुकी है।
आजादी के बाद बिजलीघर भले ही गांवों में लगे हों लेकिन इन बिजलीघरों की चारदीवारी के आगे अंधेरा ही छाया रहा है। दूसरी ओर यहां से निकलने वाले खंभों व तारों के जाल से शहरों का अंधेरा दूर हुआ। आजादी के समय देश में केवल 1,362 मेगावाट बिजली का उत्पादन होता था, लेकिन बीते 70 वर्षों के दौरान यह आंकड़ा 3,29,205 मेगावाट के स्तर पर पहुंच गया है। इसे शानदार नहीं, तो संतोषजनक उपलब्धि जरूर कहेंगे लेकिन समस्या यह है कि इस उपलब्धि का वितरण एक समान नहीं रहा। गांवों में जहां 12 घंटे से भी कम की आपूर्ति रही वहीं शहरों में 22 से 24 घंटे की आपूर्ति की गई।
गांवों में बिजली आपूर्ति में एक बड़ी समस्या यह रही कि यहां बिजली उस समय आती है, जब उसकी बहुत कम जरूरत रहती है जैसे रात के ग्यारह बजे से सुबह आठ बजे तक। फिर आंधी, तूफान, बारिश आदि के मौसम में कई-कई दिनों तक बिजली के दर्शन नहीं होते हैं। बिजली आपूर्ति के इस सौतेलेपन से कृषि, ग्रामीण उद्योग धंधे, बच्चों की पढ़ाई पिछड़ती गई। गांवों में उद्योग धंधों के विनाश और जनसंख्या तथा उद्यमों के शहरों की ओर पलायन में भी बिजली आपूर्ति के भेदभाव ने अहम भूमिका निभाई है। इस प्रकार बिजली आपूर्ति की खाई ने गांवों व शहरों के बीच विभाजन को बढ़ाने का काम किया।
अब मोदी सरकार ने गांवों को रोशन करने की जो मुहिम शुरू की है, उसके पूरा होने पर देश का हर घर सातों दिन-चौबीसों घंटे बिजली की रोशनी से जगमगाएगा। कई राज्यों में तो यह लक्ष्य हासिल हो चुका है। गौरतलब है कि आजादी के 68 साल बाद भी देश के 18,500 गांवों में बिजली नहीं पहुंच पाई थी। इन गांवों का अंधियारा मिटाने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने नवंबर, 2014 में ‘दीन दयाल उपाध्याय ग्राम ज्योति’ योजना का शुभारंभ किया।
इसके तहत उन्होंने एक हजार दिनों में देश के 18,500 गांवों के विद्युतीकरण का लक्ष्य तय किया। अब तक 700 दिनों में 13,000 से अधिक गांवों में बिजली पहुंचाई जा चुकी है। अब 300 दिनों में यानी एक मई 2018 तक बाकी बचे चार हजार गांवों में बिजली पहुंचाने का लक्ष्य है। अब आवेदन करने के सात दिनों के अंदर बिजली का कनेक्शन दिया जा रहा है। इतना ही नहीं, गरीब परिवारों को मुफ्त कनेक्शन दिया जा रहा है।
साथ ही, देश में पहली बार ऐसी स्थिति आई है कि बिजली का उत्पादन मांग की तुलना में ज्यादा हुआ और देश बिजली का निर्यातक बना। वर्ष 2016-17 (अप्रैल 2016 – फरवरी 2017) के दौरान भारत ने नेपाल, बांग्लादेश और म्यांमार को 579.8 करोड़ यूनिट बिजली निर्यात किया जो भूटान से आयात की जाने वाली 558.5 करोड़ यूनिट की तुलना में 21.3 करोड़ यूनिट अधिक है।
ग्रामीण विद्युतीकरण के अलावा मोदी सरकार बिजली आपूर्ति में सुधार के लिए बहुआयामी उपाय कर रही है। इन उपायों में बिजली संयंत्रों को क्षमता दोगुनी करने की छूट, कोयला वाशरीज के पास छोटे बिजली प्लांट लगाने, अपरंपरागत विशेषकर सौर ऊर्जा का विकास, संचरण-वितरण हानि कम करना और खेती तथा गैर-कृषि कामों के लिए अलग-अलग फीडर लगाना शामिल हैं।
सरकार ने 2022 तक 1,75,000 मेगावाट बिजली अक्षय ऊर्जा स्रोतों से हासिल करने का लक्ष्य निर्धारित किया है। इसमें एक लाख मेगावाट सौर ऊर्जा, 60,000 मेगावाट पवन ऊर्जा और 15,000 मेगावाट दूसरे अक्षय ऊर्जा स्रोतों से प्राप्त की जाएगी। मोदी सरकार बिजली उत्पादन के साथ-साथ बिजली संरक्षण पर भी ध्यान दे रही है। मात्र 11 महीनों में सरकार ने सात करोड़ से ज्यादा एलईडी बल्बों का वितरण किया। अगले तीन वर्षों में 77 करोड़ एलईडी बल्ब वितरित करने का लक्ष्य है। इससे न सिर्फ हर साल 40,000 करोड़ रूपये की बिजली की बचत होगी बल्कि कार्बन डाई ऑक्साइड के उत्सर्जन में आठ करोड़ टन की कमी आएगी।
मोदी सरकार ग्रामीण विद्युतीकरण के मामले में पूर्व में हुई गलतियों से बचते हुए आगे बढ़ रही है। गौरतलब है कि ग्रामीण विद्युतीकरण के लिए 1969 में ग्रामीण विद्युत निगम की स्थापना की गई। इसके साथ कई और प्रयास किए गए जैसे न्यूनतम आवश्यकता कार्यक्रम के तहत ग्रामीण विद्युतीकरण, कुटीर ज्योति योजना, त्वरित ग्रामीण विद्युतीकरण कार्यक्रम। इनके अलावा सरकार ने 2005 में राजीव गांधी ग्रामीण विद्युतीकरण योजना (आरजीजीवीवाई) शुरू की। इसमें दिसंबर 2012 तक सभी घरों में बिजली पहुंचाने का लक्ष्य रखा गया जो पूरा नहीं हो पाया।
2014 में सत्ता में आने के बाद मोदी सरकार ने देश के सभी हिस्सों में सातों दिन-चौबीसों घंटे निर्बाध व गुणवत्तापूर्ण बिजली मुहैया कराने के लिए नवंबर 2014 में दीन दयाल उपाध्याय ग्राम ज्योति योजना (डीडीयूजीजेआई) की शुरूआत किया। नई योजना में आरजीजीवीवाई का विलय कर दिया गया है। डीडीयूजीजेआई की प्रेरणा गुजरात में ग्रामीण बिजली वितरण की कामयाब रही योजना से ली गई है। इसके तहत ग्रामीण घरों और कृषि कार्यों के लिए अलग-अलग फीडर की व्यवस्था कर पारेषण व वितरण ढांचे को मजबूत किया जाएगा और सभी स्तरों जैसे इनपुट प्वाइंट, फीडर और वितरण ट्रांसफर पर मीटर लगाना शामिल है।
(लेखक केन्द्रीय सचिवालय में अधिकारी हैं। ये उनके निजी विचार हैं।)