कांग्रेस ने कृषि सम्बंधित कानूनों में इस तरह के संशोधन की वकालत एक बार नहीं, अपितु कई बार की है। कांग्रेस का शीर्ष नेतृत्व इस प्रकार के संशोधन की वकालत संसद और प्रेस कांफ्रेंस के साथ-साथ अपने चुनावी घोषणापत्र में भी कर चुका है। मगर आज केवल राजनीति के लिए वही कांग्रेस मोदी सरकार द्वारा किए गए इन कानूनी परिवर्तनों के विरोध में खड़ी है। हालांकि तमाम विरोधों के बावजूद सरकार जिस तरह इन कानूनों को लाने के मार्ग से विचलित नहीं हुई, वो किसान हित के प्रति उसकी प्रतिबद्धता को ही दिखाता है।
भारत में स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद से ही प्रत्येक स्वतंत्रता दिवस के उपलक्ष्य में लाल किले की प्राचीर से प्रति वर्ष प्रधानमंत्री द्वारा दिए जाने वाले भाषणों में किसानों के मुद्दे प्रमुखता से जगह पाते आए हैं। परन्तु, दुर्भाग्यवश ऐसा होने की बाद भी आज तक किसानों की स्थिति बदहाल ही रही।
पूर्व की अधिकांश सरकारों ने किसानों के मुद्दों पर खूब राजनीति की लेकिन दृढ़ इच्छाशक्ति के अभाव में वे किसानों की समस्याओं के समाधान के लिए ठोस नीतिगत परिवर्तन नहीं कर सकीं। वर्तमान सरकार ने अपने प्रथम कार्यकाल से ही 2022 तक किसानों की आय दोगुनी करने लक्ष्य निर्धारित किया हुआ है और इस दिशा में लगातार काम भी कर रही है।
फसल बीमा योजना, मृदा स्वास्थ्य कार्ड योजना, प्रधानमंत्री सिंचाई योजना, किसान क्रेडिट कार्ड जैसी अनेक योजनाओं के माध्यम से वर्तमान सरकार ने किसानों के हितों को प्रोत्साहन देने का प्रयास किया है। इसी क्रम में सरकार ने 2019 में किसान हित से जुड़ी ‘प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि योजना’ प्रारम्भ की। इसके तहत किसानों को प्रतिवर्ष 6000 रूपये सीधे उनके खातों में आर्थिक मदद के रूप में भेजे जाते हैं।
लेकिन इन सब प्रयासों के बावजूद वर्तमान सरकार ने जब यह महसूस किया कि किसानों की आय दोगुनी करने के लिए इतना ही पर्याप्त नहीं है, इससे आगे भी कुछ नीतिगत परिवर्तनों की आवश्यकता है तो सरकार विगत जून माह में किसानों के हित में तीन अध्यादेश लेकर आई जिसे पिछले दिनों दोनों सदनों में पारित भी कराया जा चुका है और अब तो वे राष्ट्रपति के हस्ताक्षर के बाद कानून भी बन चुके हैं। लेकिन विपक्षी दल लगातार किसानों को भ्रमित करने अपना असल चरित्र दिखा रहे हैं। वे सरकार में रहें या विपक्ष में, उन्होंने हमेशा ही किसानों के मुद्दों पर राजनीति की और आज भी वे वहीं कर रहे हैं।
इस नए संशोधनों में तीन कानून हैं, जिसके संक्षिप्त विवरण निम्नलिखित है-
कृषक उपज व्यापार और वाणिज्य (संवर्धन और सरलीकरण) अधिनियम, 2020
इस कानून में प्रावधान किया गया है कि किसान अपने उत्पाद मंडी से बाहर बेचने के लिए स्वतंत्र हैं। इस विधेयक में राज्य के अंदर और दो राज्यों के बीच व्यापार को बढ़ावा देने की भी छूट दी गई है। स्वाभाविक तौर पर इससे मार्केटिंग और ट्रांस्पोर्टेशन पर खर्च कम होगा और किसानों को ज्यादा लाभ मिल सकेगा।
कृषक (सशक्तिकरण व संरक्षण) कीमत आश्वासन और कृषि सेवा पर करार अधिनियम, 2020
इस कानून में अनुबंधित कृषि को लेकर राष्ट्रीय फ्रेमवर्क का प्रावधान किया गया है। ये बिल कृषि उत्पादों की बिक्री, कृषि बिजनेस फर्मों, थोक विक्रेताओं, फार्म सेवाओं, बड़े खुदरा विक्रेताओं, प्रोसेसर्स और निर्यातकों के साथ किसानों को जुड़ने के लिए शक्ति प्रदान करता है।
अनुबंधित किसानों को गुणवत्ता वाले बीज की आपूर्ति सुनिश्चित करना, तकनीकी सहायता और फसल स्वास्थ्य की निगरानी, ऋण की सुविधा और फसल बीमा की सुविधा उपलब्ध कराई जाएगी। इसके साथ ही यदि पैदावार अपेक्षा से ज्यादा हो गई तब भी किसानों को कम पैसे मिलते थे लेकिन अनुबंधित कृषि के द्वारा किसानों को पूर्व में तयशुदा राशि का भुगतान इस कानून के द्वारा सुनिश्चित हो सकेगा।
आवश्यक वस्तु (संशोधन) अधिनियम, 2020
इस क़ानून में अनाज, दलहन, तिलहन, खाद्य तेल, आलू-प्याज को आवश्यक वस्तुओं की सूची से हटाने का प्रावधान है। विशेषज्ञों का मानना है कि इस कानून के प्रावधानों से किसानों को सही मूल्य मिल सकेगा क्योंकि बाजार में स्पर्धा बढ़ेगी।
समग्रतः देखा जाए तो ये तीनों क़ानून किसानों के हितों को बल देने वाले हैं तथा इनसे किसानों की आय बढ़ना भी निश्चित है। बाकी हर नए निर्णय के साथ कुछ संशय होते हैं, लेकिन बिना ठोस निर्णयों के बड़े परिवर्तन नहीं आ सकते। कृषि क्षेत्र के समक्ष आज जो चुनौतियाँ हैं, वे आजादी के सत्तर सालों में ऐसे बड़े निर्णय न लिए जाने के कारण ही हैं। परन्तु, देश के विपक्षी दलों को तो जैसे इस तथ्य से कोई सरोकार नहीं है, अपितु केवल अपनी राजनीति से ही मतलब है।
आज देश में हो रहे अधिकांश प्रदर्शन राजनीति से प्रेरित हैं। ग्राउंड जीरो से प्राप्त मीडिया रपटों के अनुसार अनेक प्रदर्शनकारियों को यही नहीं पता कि वे जिसका विरोध कर रहे हैं, उसमें ऐसा क्या है जिससे किसानों का अहित हो रहा हो।
विपक्षी राजनीतिक दलों का यह रवैया इस बात का द्योतक है कि उनका किसानों के हित से कोई लेना देना नहीं है अपितु वे पूर्व की भांति पुनः किसानों को वोट बैंक के रूप में देख रहे हैं और उनको भ्रमित करने का काम कर रहे हैं। हालाँकि यदि हम इतिहास में देखें तो वर्तमान मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस ने कृषि सम्बंधित कानूनों में इस तरह के संशोधन की वकालत एक बार नहीं, अपितु कई बार की है।
कांग्रेस का शीर्ष नेतृत्व इस प्रकार के संशोधन की वकालत संसद और प्रेस कांफ्रेंस के साथ-साथ अपने चुनावी घोषणापत्र में भी कर चुका है। मगर आज केवल राजनीति के लिए वही कांग्रेस इस क़ानून के विरोध में खड़ी है।
विपक्ष ने जो भी भ्रम किसानों के बीच फ़ैलाने का काम किया है उसके बारे में स्पष्टीकरण स्वयं केन्द्रीय कृषि मंत्री के साथ-साथ प्रधानमंत्री भी दे चुके हैं। विपक्षी दलों ने सीएए के समय भी इस तरह का भ्रम फैलाने का काम किया था, जिसका दुष्परिणाम हमने देश भर में हुए दंगों के रूप में देखा।
सबसे बड़ा भ्रम न्यूनतम समर्थन मूल्य को ख़त्म करने और एपीएमसी मंडियों को समाप्त करने को लेकर फैलाया जा रहा है जबकि इस पर स्पष्टीकरण देते हुए स्वयं केन्द्रीय मंत्री बोल चुके है कि न्यूनतम समर्थन मूल्य था, है और आगे भी जारी रहेगा।
विपक्षी दलों ने इस मुद्दे पर जिस तरह से सदन की गरिमा को भंग किया वे समाज में भी भ्रम फैला कर सदन के बाहर भी उस तरह का उन्माद फैलाना चाहते हैं, अतः प्रदर्शनकारियों को विपक्ष की राजनीति का सहज उपकरण बनने से बचना चाहिए। नए क़ानून किसान हित में हैं और इनका सुपरिणाम शीघ्र ही देश के सामने आएगा।
(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं। प्रस्तुत विचार उनके निजी हैं।)