लंबे अरसे की उपेक्षा के बाद मोदी सरकार ने गरीबों के लिए जहां आयुष्मान भारत के द्वारा मुफ्त इलाज उपलब्ध कराया है, वहीं सभी लोगों के लिए सस्ता इलाज उपलब्ध कराने का बीड़ा उठाया है। इसके लिए सरकार गांव-गांव में आधुनिक स्वास्थ्य सुविधाओं का विकास कर रही है। हर तीन लोक सभा सीटों पर एक मेडिकल कॉलेज खुल रहे हैं जिससे मेडिकल सीटों में की संख्या में तेजी से बढ़ोत्तरी हो रही है। सरकार ने एक हजार से अधिक जरूरी दवाओं के दाम को नियंत्रित किया है जिससे आम आदमी को हर साल 12500 करोड़ रूपये की बचत हो रही है।
आजादी के बाद से सरकारें बिजली, पानी, सड़क, अस्पताल के ख्वाब दिखाती रहीं लेकिन वे ख्वाब हकीकत में नहीं बदले। हां, इन ख्वाबों को दिखाने वाले नेताओं की गरीबी जरूर दूर हो गईं। इसका नतीजा यह हुआ कि बहुसंख्यक जनसंख्या मूलभूत सुविधाओं के लिए तरसती रह गई। जब-जब ख्वाब दिखाने का नारा कमजोर दिखा तब-तब चालाक नेताओं ने जाति-धर्म–क्षेत्र–भाषा के आधार पर वोट बैंक की राजनीति को बढ़ावा दिया और सत्ता बचाने में कामयाब रहे।
आजादी के बाद पहली बार मोदी सरकार अभावग्रस्त भारतीयों तक मूलभूत सुविधाएं उपलब्ध कराने का बीड़ा उठाया है। अपने पहले कार्यकाल में मोदी सरकार सभी तक सड़क, बिजली, रसोई गैस पहुंचाने में सफल रही। अब दूसरे कार्यकाल में सभी के लिए स्तरीय आवास, अस्पताल देने का समयबद्ध कार्यक्रम तय कर दिया है।
राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण संगठन की रिपोर्ट के अनुसार हर साल देश में साढ़े छह करोड़ लोग महंगे इलाज के कारण गरीबी के बाड़े में धकेल दिए जाते हैं। गरीबी बढ़ाने वाले इलाज में एक बड़ा योगदान महंगी दवाओं और महंगे चिकित्सा उपकरणों का रहा है। इसे दुर्भाग्य ही कहेंगे जो भारत पूरी दुनिया के लिए सस्ती दवाओं का धुरी बना उसी भारत की आम जनता महंगी दवाएं खरीदने के लिए मजबूर है। स्पष्ट है महंगा इलाज गरीबी मिटाने के संकल्प में एक बड़ी बाधा रहा है।
लंबे अरसे की उपेक्षा के बाद मोदी सरकार ने गरीबों के लिए जहां आयुष्मान भारत के द्वारा मुफ्त इलाज उपलब्ध कराया है, वहीं सभी लोगों के लिए सस्ता इलाज उपलब्ध कराने का बीड़ा उठाया है। इसके लिए सरकार गांव-गांव में आधुनिक स्वास्थ्य सुविधाओं का विकास कर रही है। हर तीन लोक सभा सीटों पर एक मेडिकल कॉलेज खुल रहे हैं जिससे मेडिकल सीटों में की संख्या में तेजी से बढ़ोत्तरी हो रही है। सरकार ने एक हजार से अधिक जरूरी दवाओं के दाम को नियंत्रित किया है जिससे आम आदमी को हर साल 12500 करोड़ रूपये की बचत हो रही है।
महंगी दवाओं और चिकित्सा उपकरणों से मुक्ति दिलाने के लिए सरकार देश भर में जन औषधि केंद्रों की स्थापना कर रही है। यहां दवाएं और चिकित्सा उपकरण बाजार दर से 50-60 प्रतिशत तक सस्ते मिलते हैं। उदाहरण के लिए कैंसर की जो दवा बाजार में 6500 रूपये की मिलती है वही दवा जन औषधि केंद्रों पर 850 रूपये में उपलब्ध है। इन केंद्रों पर जेनेरिक दवाएं दी जाती हैं जो ब्रांडेड दवाओं की तरह ही कारगर होती हैं लेकिन सरकार नियंत्रित उत्पादन प्रक्रिया होने के कारण वे ब्रांडेड दवाओं से सस्ती पड़ती हैं।
जन औषधि केंद्रों को तभी बढ़ावा मिलेगा जब चिकित्सक दवा कंपनियों के बजाए जेनेरिक दवाएं लिखें। इसीलिए सरकार ने चिकित्सकों के लिए जेनेरिक दवाएं लिखना जरूरी कर दिया है। अब तक 728 में से 700 जिलों में 6200 जन औषधि केंद्र खुले चुके हैं। जैसे-जैसे जन औषधि केंद्रों का नेटवर्क बढ़ रहा है वैसे-वैसे उसके लाभार्थियों की संख्या बढ़ रही है। आज एक करोड़ से अधिक परिवार इन जन औषधि केंद्रों के माध्यम से बहुत सस्ती दवाएं खरीद रहे हैं। स्पष्ट है मोदी सरकार की इस मुहिम से सभी के लिए सस्ता व सुगम इलाज का ख्वाब हकीकत में बदल रहा है।
(लेखक केन्द्रीय सचिवालय में अधिकारी हैं। ये उनके निजी विचार हैं।)