कृषि सुधारों से किसानों की आमदनी बढ़ाने में जुटी मोदी सरकार

मोदी सरकार द्वारा अंतरराज्‍यीय कृषि कारोबार को अनुमति देने वाले कानून लागू करने के बाद कृषि उपजों का कारोबार रफ्तार पकड़ रहा है। उत्‍पादक (किसान) और उपभोक्‍ता मंडियों के बीच किसान रेल शुरू होने से किसानों को उनकी उपज की वाजिब कीमत मिलने लगी है तो उपभोक्‍ताओं को महंगाई से राहत।

आपूर्ति श्रृंखला की कमजोरी, भंडारण-विपणन में बिचौलियों की भरमार, महंगी ढुलाई जैसे कारणों से कभी आलू-प्‍याज सड़कों पर फेंकने की नौबत आती है तो कभी उनकी महंगाई आंसू निकाल देती है। इसका एक खामियाजा यह होता है कि वैश्‍विक कृषि बाजार में भारत एक विश्‍वसनीय आपूर्तिकर्ता नहीं बन पाता।

इसका कारण है कि आजादी के बाद कृषि क्षेत्र में सुधारों की रफ्तार बेहद धीमी रही है। उदारीकरण-भूमंडलीकरण के तीस साल बाद भी कृषि उपजों का कारोबार जहां का तहां वाली स्‍थिति में है। दरअसल देश के कई राज्‍यों में मौजूद आढ़तियों-बिचौलियों की मजबूत राजनीतिक लॉबी कृषि क्षेत्र में सुधारों की विरोधी है। फिर वोट बैंक की राजनीति के कारण सरकारें प्रगतिशील नीतियां अपनाने से बचती रहती हैं। लेकिन मोदी सरकार ने अपने पहले कार्यकाल से ही कृषि सुधार की दिशा में गंभीरतापूर्वक काम कर रही है, लेकिन कांग्रेस पार्टी इन सुधारों के विरोध में खड़ी रहती है

जो कांग्रेस पार्टी आज मोदी सरकार द्वारा कृषि सुधार की दिशा में लाए गए कानूनों के विरोध में खड़ी है, उसी कांग्रेस पार्टी ने 2019 के लोकसभा चुनाव से पहले जारी घोषणापत्र में कहा था कि कांग्रेस कृषि उपज मंडी समितियों के अधिनियम में संशोधन करेगी जिससे कि कृषि उपज के निर्यात और अंतरराज्‍यीय व्‍यापार में लगे सभी प्रतिबंध समाप्‍त हो जाएंगे। इसके अलावा कांग्रेस ने कहा था कि आवश्‍यक वस्‍तु अधिनियम 1955 को बदलकर आज की जरूरतों के हिसाब से नया कानून बनाएंगे। 

साभार : Google

यह स्‍थिति तब है जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी संसद से लेकर सड़क तक कई बार कह चुके हैं कि समर्थन मूल्‍य और सरकारी खरीद की व्‍यवस्‍था जारी रहेगी। इसके बावजूद कांग्रेस शासित पंजाब राज्‍य में तो पिछले डेढ़ महीने से राज्‍य सरकार के समर्थन से किसान संगठन तीनों कृषि कानूनों को रद्द करने की मांग को लेकर आंदोलन कर रहे हैं।    

कांग्रेस के विरोध के बावजूद मोदी सरकार द्वारा अंतरराज्‍यीय कृषि कारोबार को अनुमति देने वाले कानून लागू करने के बाद कृषि उपजों का कारोबार रफ्तार पकड़ रहा है। उत्‍पादक (किसान) और उपभोक्‍ता मंडियों के बीच किसान रेल शुरू होने से किसानों को उनकी उपज की वाजिब कीमत मिलने लगी है तो उपभोक्‍ताओं को महंगाई से राहत।

किसान रेल को मिली कामयाबी को देखते हुए मोदी सरकार मालवाहक विमानों से सब्‍जियों और फलों की ढुलाई की योजना बनाई है। ढुलाई की लागत का आधा हिस्‍सा सरकार वहन करेगी ताकि उपभोक्‍ताओं तक पहुंचते-पहुंचते उनके भाव बहुत अधिक न बढ़ जाएं।

इसके लिए 41 फलों व सब्‍जियों की सूची जारी की गई है। पहले चरण में इस योजना को पूर्वोत्‍तर और हिमालय के राज्‍यों के लिए शुरू किया गया है। आगे चलकर देश के सभी हिस्‍सों में विमानों के जरिए फलों-सब्‍जियों की ढुलाई होने लगेगी।   

मोदी सरकार 2022 तक किसानों की आमदनी दो गुनी करने के लिए बहुआयामी उपाय कर रही है। इसमें सबसे कारगर हथियार हैं बागवानी फसलें। गौरतलब है कि देश के महज 8.5 फीसद क्षेत्र में फलों-सब्‍जियों की खेती होती है लेकिन इनसे कृषिगत सकल घरेलू उत्‍पाद का 30 फीसद हिस्‍सा प्राप्‍त होता है।

सांकेतिक चित्र (साभार : Google)

इसी को देखते हुए मोदी सरकार टॉप योजना की खामियों को दूर करते हुए फलों-सब्‍जियों की खेती को बढ़ावा देने के लिए टॉप टू टोटल योजना शुरू कर रही है। यह योजना टमाटरप्‍याज और आलू समेत सभी फल और सब्‍जियों के लिए है। 

इससे न सिर्फ किसानों की आमदनी बढ़ेगी बल्‍कि महंगाई से भी मुक्‍ति मिलेगी। फलों-सब्‍जियों के उत्‍पादन में सबसे बड़ी समस्‍या इनका जल्‍दी खराब होना है। इस समस्‍या को दूर करने के लिए सरकार ने परिवहन व भंडारण में 50-50 फीसद सब्‍सिडी देने की घोषणा की है। इससे किसान जल्‍दी नष्‍ट हो जाने वाली फसलों को कम मूल्‍य पर बेचने के नुकसान से बचेंगे और बाद में फसलों को अच्‍छे दाम पर बेच सकेंगे।

समग्रत: आज खेती-किसानी घाटे का सौदा बनी है तो इसका कारण है कि उदारीकरण का रथ महानगरों और हाईवे से आगे गांव की पगडंडी पर उतरा ही नहीं। अब मोदी सरकार जिस तरह कृषि क्षेत्र में सुधारों की दिशा में काम कर रही है, उससे जल्दी-ही खेती के मुनाफे का सौदा बनने की उम्मीद है।

(लेखक केन्द्रीय सचिवालय में अधिकारी हैं। वरिष्ठ टिप्पणीकार हैं। प्रस्तुत विचार उनके निजी हैं।)