संसद का मानसूत्र सत्र कई मायनों में बेहद अहम रहा है। इस सत्र में कई ऐसे विधेयक पास हुए हैं, जो सालों से लंबित थे। इसी कड़ी में मोदी सरकार ने बैंकों की एनपीए के खिलाफ एक महत्वपूर्ण और सार्थक कानून पास किया है। इस विधेयक को सरकार ने लंबी चर्चा के उपरांत आखिरकार पास करा लिया। ‘द इंफोर्समेंट ऑफ़ सिक्यूरिटी इंटरेस्ट एंड रिकवरी ऑफ़ डेबिट्स लॉस एंड मिसलेनियस प्रोविजन्स’ नामक यह विधेयक अगस्त के दूसरे हफ्ते में संसद के दोनों सदनों द्वारा पास हो गया। बैंक एनपीए पर सरकार ने यह एक महत्वपूर्ण संशोधन किया है, जिसमें ना सिर्फ सरकारी बैंकों और वित्तीय संस्थानों को और अधिकार प्रदान किये गए हैं, बल्कि इस महत्वपूर्ण संशोधन की बदौलत अब एनपीए के मामलो में निपटारा भी जल्द से जल्द हो सकेगा। बता दें कि एनपीए (नॉन परफार्मिंग एसेट) का तात्पर्य बैंकिंग में ऐसे ऋण से होता है, जिसका लौटना संदिग्ध हो अथवा उस ऋण को वसूलने के लिए बैंको को एड़ी-चोटी एक करनी पड़ती है। एनपीए सम्बन्धी वर्तमान संशोधित क़ानून की खासियत यह है कि इसके जरिए कर्ज़ वापसी के मौजूदा चार कानूनों सरफेसी कानून, इंडियन स्टांप एक्ट, कर्ज़ वसूली प्राधिकरण कानून और डिपोजिटिरिज एक्ट में एक साथ संशोधन हो जायेगा। इससे सीधे तौर पर लाभ सरकारी बैंको का होना तय है। इसके साथ ही सरकारी बैंकों की शक्तियाँ भी बढ़ेंगी। आरबीआई के अनुसार सरकारी बैंकों के चार लाख करोड़ से ज्यादा की राशि एनपीए के तौर पर फंसी हुई है, जिसके मिलने की आस न के बराबर है। ऐसे वक्त में इस विधेयक का सदन में पारित होना बैंकों की स्थिति को मजबूत करेगा। गौरतलब है कि किसी भी अर्थव्यवस्था को मजबूत बनाये रखने के लिए एनपीए पर नियंत्रण आवश्यक है। वित्तमंत्री अरुण जेटली ने कहा है कि इस नए कानून से वित्तीय संस्थानों और बैंकों के लंबित मामलों का फ़ौरन निपटारा किया जा सकेगा। साथ ही वित्तमंत्री ने यह भी बताया है कि इस कानून के तहत डेब्ट रिकवरी ट्रिब्यूनल (डीआरटी) को कोई भी केस 180 दिनों के अन्दर निपटाना होगा।
एनपीए सम्बन्धी वर्तमान संशोधित क़ानून की खासियत यह है कि इसके जरिए कर्ज़ वापसी के मौजूदा चार कानूनों सरफेसी कानून, इंडियन स्टांप एक्ट, कर्ज़ वसूली प्राधिकरण कानून और डिपोजिटिरिज एक्ट में एक साथ संशोधन हो जायेगा। इससे सरकारी बैंको का सीधे तौर पर लाभ होना तय है। इसके साथ ही सरकारी बैंकों की शक्तियाँ भी बढ़ेंगी। आरबीआई के अनुसार सरकारी बैंकों के चार लाख करोड़ से ज्यादा की राशि एनपीए के तौर पर फंसी हुई है, जिसके मिलने की आस न के बराबर है। ऐसे वक्त में इस विधेयक का सदन में पारित होना बैंकों की स्थिति को मजबूत करेगा।
आंकड़ों पर नज़र डालें तो डेब्ट रिकवरी ट्रिब्यूनल (डीआरटी) में करीब 5 लाख करोड़ के 70,000 मामले लंबित पड़े हैं। अरुण जेटली ने यह भी साफ़ कर दिया कि कृषि क्षेत्र को इस कानून से बाहर रखा गया है और शिक्षा ऋण की वसूली के मामले में सहानुभूति का दृष्टिकोण अपनाया जायेगा। जेटली ने बताया कि अगर किसी छात्र को पढाई के बाद नौकरी नहीं मिलती है, तो उस स्थिति में कुछ नरमी के प्रावधान किये गए हैं। वित्तमंत्री ने कहा कि इस नए कानून से बैंकों को यह राहत मिलेगी कि अगर किसी व्यक्ति, वर्ग, कंपनी का कर्ज़ माफ़ किया जाता है तो उसका प्रावधान केंद्र या राज्य के बजट में करना होगा। सनद रहे कि सरकारी बैंकों के एनपीए का मुद्दा लगातार काफी गर्म रहा है। ऑल इंडिया बैंक एम्पलॉय एसोसिएशन (एआईबीईए) ने बैंकों से कर्ज़ लेकर साफ़ हजम कर जाने वाले 5610 कथित उद्यमियों की जो लिस्ट उजागर की थी, उससे पता चलता है कि हमारे देश में कर्जखोरी की बीमारी ने अब महामारी का रूप धारण कर लिया है। खासकर उद्योगपति विजय माल्या की कंपनी किंगफ़िशर पर बकाये कर्ज़ का मुद्दा संसद से लेकर सड़क तक खूब चर्चे में रहा। विजय माल्या अकेले बैंकों का करीब 9,000 करोड़ लेकर चंपत हो गये हैं। ऐसे बकायदारों की एक लंबी फेहरिस्त है, जो बैंकों का कर्ज देने में टालमटोली कर रहें हैं।
हमारे देश में एनपीए की इस समस्या ने मुख्य रूप से अपनी जड़ें यूपीए शासन के समय जमाना शुरू कर दिया था, जिसने अब विकराल रूप धारण कर लिया है। 2009 से ही बैंकों में कर्जदारों की संख्या लगातार बढती चली गई। खासकर बड़े उद्योगपति जिन्होंने अपने उद्योग के लिए बैंक से बड़ी रकम लेना शुरू किया। 2008 में जब वैश्विक मंदी छाई हुई थी, उस समय भारत की जीडीपी भी निचले स्तर पर थी। लेकिन, भारत में मंदी का असर विश्व के अन्य देशों की अपेक्षा कम था। इसका लाभ लेते हुए उस समय कांग्रेस नेतृत्व ने अपने करीबी उद्योगपतियों को दिल खोलकर ऋण दिए, जिसमें विजय माल्या, जिंदल, जेपी आदि प्रमुख थे। यही नहीं कांग्रेस नेतृत्व ने बढ़ते एनपीए पर भी कोई ध्यान नहीं दिया और ठोस कदम नहीं उठाए, जिस कारण आज सरकारी बैंकों की एनपीए विकराल रूप ले चुकी है। इन सबके बावजूद आज जब कांग्रेसी संसद में एनपीए को लेकर मोदी सरकार से सवाल-जवाब करते हैं, तो यह हास्यास्पद लगता है।
बहरहाल, मोदी सरकार ने सरकारी बेंकों के एनपीए पर कड़ा रुख अख्तियार किया है। वित्तमंत्री अरुण जेटली ने कर्ज़ नहीं लौटने वालों को सीधे तौर पर चेतावनी देते हुए कहा कि हम ऐसी व्यवस्था कतई बर्दास्त नहीं कर सकते कि बैंकों से कर्ज़ ले लिया और वापस नहीं किया। मोदी सरकार ने बैंकों के एनपीए और मामलों के निपटारे के लिए कई महत्वपूर्ण कदम उठाए हैं। जिनमें बैंकों को छूट दी गयी है कि वह अपनी रिकवरी के लिए वाजिब कदम उठा सकते हैं। साथ ही बैंकों को डिफाल्टरों के नाम उजागर करने और उनकी संपत्ति बेचने का अधिकार मिला है। इस नए कानून संशोधन के माध्यम से बैंकों और वित्तीय संस्थानों को एक अमोघ अस्त्र मिल गया है। मोदी सरकार के इस फैसले की बदौलत बैंकों की एनपीए की समस्या का निपटारा निश्चित रूप से होने की संभावना है।
(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं।)