विदेशी चंदे के चक्रव्यूह को तोड़ने में कामयाब रही मोदी सरकार

आतंकवाद, अलगाववाद, नक्‍सलवाद, धर्मांतरण जैसी देश विरोधी गतिविधियों पर कानून और सेना-पुलिस के द्वारा नियंत्रण नहीं लगाया जा सकता क्‍योंकि इन्‍हें देश के तथाकथित बुद्धिजीवियों-राजनैतिक कार्यकर्ताओं द्वारा संचालित गैर-सरकारी संगठनों से भरपूर आर्थिक मदद मिलती रही है। इसी को देखते हुए मोदी सरकार ने पिछले छह वर्षों में हजारों गैर-सरकारी संगठनों पर कार्रवाई की है और 20,000 से अधिक संगठनों के एफसीआरए लाइसेंस रद्द किए हैं।

पिछले दिनों आयकर विभाग ने केरल के एक स्‍वयंभू ईसाई धर्म प्रचार और उनके समूह के देश भर में कई ठिकानों पर छापेमारी कर 14 करोड़ रूपये जब्‍त किया। यह समूह धर्मार्थ ट्रस्‍ट के नाम पर कर छूट लेता है और इसके देश भर में 30 ट्रस्‍ट पंजीकृत हैं जिनमें कई सिर्फ कागजों पर ही हैं। भले ही यह खबर अखबारी कतरन है लेकिन इससे देश भर में फैले गैर-सरकारी संगठनों, ट्रस्‍टों की धोखाधड़ी, भ्रष्‍टाचार, आतंकवाद, अलगाववाद के पोषण आदि का पता चलता है। 

पूर्वोत्‍तर भारत में अलगाववाद से लेकर कश्‍मीर में पत्‍थरबाजी तक में गैर-सरकारी संगठनों की आड़ में देशविरोधी गतिविधियां चलाने वालों की सक्रिय भूमिका को देखते हुए मोदी सरकार 2014 से ही इन पर नकेल कसने की कवायद में जुटी है।

आइआइटी दिल्‍ली, दिल्‍ली विश्‍वविद्यालय और टाटा इंस्‍टीट्यूट ऑफ सोशल साइंस की टीम द्वारा कराए गए सर्वेक्षण में पता चला कि कई एनजीओ करोड़ों का फंड लेने के बावजूद काम ही नहीं कर रहे हैं और जो एनजीओ काम कर रहे हैं उनमें कई नियमों का उल्‍लंघन कर रहे हैं। 

इतना ही नहीं, कई एनजीओ के पास न तो इंफ्रास्‍ट्रक्‍चर है और न ही स्‍टाफ। वे कागजों पर चल रहे हैं। इस रिपोर्ट के आधार पर सरकार ने एनजीओ व ट्रस्‍टों पर लगाम कसना शुरू किया। जांच में सबसे ज्‍यादा अनियमितता विदेशों से आने वाले हजारों करोड़ रूपये के अनुदान में पाई गई। 

साभार : IAS Express

इसी को देखते हुए मोदी सरकार ने इस साल अक्‍टूबर में विदेशी अंशदान विनियमन कानून (एफसीआरए) 2020 के तहत गैर-सरकारी संगठनों के पंजीकरण के लिए पदाधिकारियों का आधार नंबर अनिवार्य करने के साथ-साथ लोकसेवक के विदेशों से धनराशि हासिल करने पर प्रतिबंध लगा दिया। 

इस कानून के तहत केंद्र सरकार किसी एनजीओ या एसोसिएशन को अपना एफसीआरए प्रमाण पत्र वापस करने की मंजूरी दे सकती है। अब एफसीआरए के तहत आने वाले को कुल विदेशी फंड का 20 प्रतिशत से ज्‍यादा प्रशासिनक खर्च में इस्‍तेमाल नहीं करना होगा, पहले यह सीमा 50 प्रतिशत थी। 

इतना ही नहीं, अब विदेशी चंदा लेने वाले एनजीओ के सभी सदस्‍यों, पदाधिकारियों को यह घोषित करना होगा कि वे कभी किसी व्‍यक्‍ति के धर्मांतरण में शामिल नहीं रहे हैं।

उल्‍लेखनीय है कि विदेशी अंशदान विनियमन कानून (एफसीआरए) एक राष्‍ट्रीय व आंतरिक सुरक्षा कानून है। इसका उद्देश्‍य ऐसे उपाय करना है ताकि विदेशी धन भारत के सार्वजनिक, राजनीतिक और सामाजिक विमर्श पर हावी न हो।

1995 में एफसीआरए के माध्‍यम से जहां 2000 करोड़ रूपये की धनराशि आई वहीं 2019 में यह बढ़कर 20,000 करोड़ रूपये तक पहुंच गई। एफसीआरए फंडिंग पर एक जांच से पता चला है कि इस धनराशि का 70 प्रतिशत हिस्‍सा ईसाई एनजीओ के पास आता है जो धर्मांतरण, नक्‍सलवाद, शहरी नक्‍सलियों को फंडिंग जैसी देश विरोधी गतिविधियों में खर्च होता है।

हाल ही में सरकार ने एनजीओ के लिए विदेशी फंडिंग के नियमों को और सख्‍त बना दिया है। अब केवल ऐसे संगठन विदेश से चंदा प्राप्‍त कर सकेंगे जिनके पंजीकरण के तीन साल पूरे हो गए हों और इन वर्षों में स्‍वयंसेवी गतिविधियों पर 15 लाख रूपये खर्च किए गए हों। इतना ही नहीं, अब एफसीआरए के तहत पंजीकरण के इच्‍छुक एनजीओ को दानदाता की ओर से एक विशेष शपथ-पत्र भी दाखिल करना होगा जिसमें विदेशी चंदे की राशि और उसे देने के उद्देश्‍य का उल्‍लेख होगा। 

समग्रत: मोदी सरकार के आने के बाद नक्‍सलवाद, उग्रवाद, आतंकी घटनाओं, कश्‍मीर में पत्‍थरबाजी जैसी गतिविधियों में कमी आई है तो इसमें चुस्‍त कानून-व्‍यवस्‍था के साथ-साथ एनजीओ, ट्रस्‍टों आदि के विनियमन और विदेशी फंडों पर सख्‍त निगरानी की भी अहम भूमिका रही है।

(लेखक केन्द्रीय सचिवालय में अधिकारी हैं। वरिष्ठ टिप्पणीकार हैं। प्रस्तुत विचार उनके निजी हैं।)