सत्ता में आते ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मेक इन इंडिया अभियान को बढ़ावा दिया ताकि घरेलू उत्पादन को बढ़ाकार आयात पर निर्भरता कम से कम की जा सके। हालांकि, देश में मौजूद आयातकों की तगड़ी लॉबी ने मेक इन इंडिया मुहिम को नाकाम बनाने की भरपूर कोशिश की लेकिन वे अपने नापाक इरादों में कामयाब नहीं हो सके। सामान्य परिस्थितियों के मुकाबले कोरोना आपदा के समय मोदी सरकार की मेक इन इंडिया मुहिम की रफ्तार कई गुना बढ़ गई। इसे आंकड़ों की जुबानी समझा जा सकता है।
जिस देश में सूखा, बाढ़, भूकंप जैसी कुदरती आपदाओं के समय में राहत सामग्री के नाम पर घोटालों का रिकॉर्ड रहा हो उस देश में कोरोना जैसी वैश्विक महामारी से देशवासियों को बचाने के साथ-साथ घरेलू उत्पादन को बढ़ावा देना एक बड़ी उपलब्धि है।
दुर्भाग्यवश यह उपलब्धि मोदी विरोधियों विशेषकर कांग्रेस को पच नहीं रही है क्योंकि पीड़ितों को राहत सामग्री पहुंचाने के नाम पर कमाई के सभी रास्तों को मोदी सरकार ने बंद कर दिया। सबसे बड़ी बात है कि जिस ढंग से देश में घरेलू उत्पादन को बढ़ावा मिल रहा है उससे भविष्य में भी आपदा के समय आयात के जरिए राहत सामग्री पहुंचाने और घोटाले की संभावना खत्म हो जाएगी।
सत्ता में आते ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मेक इन इंडिया अभियान को बढ़ावा दिया ताकि घरेलू उत्पादन को बढ़ाकार आयात पर निर्भरता कम से कम की जा सके। हालांकि, देश में मौजूद आयातकों की तगड़ी लॉबी ने मेक इन इंडिया मुहिम को नाकाम बनाने की भरपूर कोशिश की लेकिन वे अपने नापाक इरादों में कामयाब नहीं हो सके।
सामान्य परिस्थितियों के मुकाबले कोरोना आपदा के समय मोदी सरकार की मेक इन इंडिया मुहिम की रफ्तार कई गुना बढ़ गई। इसे आंकड़ों की जुबानी समझा जा सकता है।
कोरोना संक्रमण को देखते हुए सरकार ने 60,884 वेंटीलेटर्स को आर्डर दिया है जिनमें से 59884 का उत्पादन देश में ही किया जाएगा और सिर्फ एक हजार वेंटीलेटर्स का आयात किया जाएगा।
यदि केंद्र में मोदी सरकार न होती तो ठीक इसका उल्टा होता अर्थात 59884 वेंटीलेटर्स का आयात किया जाता और महज एक हजार वेंटीलेटर्स देश में बनाए जाते। मोदी सरकार की मेक इन इंडिया मुहिम की यह छोटी सी झांकी भर है।
कोरोना संकट से जूझने के लिए सरकार ने 2.22 करोड़ पर्सनल प्रोटेक्टिव इक्विपमेंट (पीपीई) का आर्डर दिया है। इनमें से 1.42 करोड़ पीपीई का आर्डर घरेलू उत्पादकों को दिया गया है जबकि 80 लाख पीपीई का आयात किया जाएगा।
गौरतलब है कि इससे पहले देश में पीपीई की एक भी यूनिट का उत्पादन नहीं होता था और घरेलू मांग आयात के जरिए पूरी की जाती थी। देश में पीपीई के निर्माण के लिए सरकार ने आनन-फानन में 111 उत्पादकों की पहचान कर उन्हें सुविधाएं प्रदान की।
इसका परिणाम यह हुआ कि कुछ ही हफ्तों में देश में 7000 करोड़ रूपये का पीपीई उद्योग विकसित हो गया जहां प्रतिदिन 1.87 लाख पीपीई किट का उत्पादन हो रहा है।
इसी तरह 2.49 करोड़ एन-95 और एन-99 मास्क के आर्डर दिए जा चुके हैं। इनमें से 1.49 करोड़ मास्क का उत्पादन देश में किया जाएगा जबकि एक करोड़ का आयात होगा। यदि कोरोना संकट के दौरान मांग में अचानक वृद्धि न होती तो मोदी सरकार एक भी मास्क या पीपीई किट का आयात न करती।
चिकित्सा उपकरणों के युद्ध स्तर पर घरेलू उत्पादन का ही नतीजा है कि देश अब कोरोना से निपटने पूरी तरह तैयार है। देश में फिलहाल सक्रिय कोरोना मरीजों की संख्या 70000 के आसपास है लेकिन सरकार ने 30 लाख से अधिक सक्रिय मरीजों के एक साथ इलाज की व्यवस्था कर ली है।
देश इस समय 15000 बेड वेंटिलेटर की सुविधा के साथ तैयार हैं, जबकि इसकी जरूरत अभी 300 से भी कम रोगियों को पड़ी है। इस आधार पर 33 लाख लोगों के कोरोना संक्रमित होने पर 15000 वेंटिलेटर की जरूरत पड़ेगी। इसी तरह की बेहतर स्थिति ऑक्सीजन की जरूरत वाले कोरोना संक्रमित मरीजों के मामले में भी है।
फिलहाल 2.9 प्रतिशत मरीजों को ऑक्सीजन सपोर्ट की जरूरत पड़ रही है। इसे देखते हुए देश की मौजूदा ऑक्सीजन सपोर्ट क्षमता डेढ़ लाख से ज्यादा मरीजों के लिए पर्याप्त है।
सरकार ने कोरोना इलाज में कारगर साबित हुई हाइड्रोक्सीक्लोरोक्विन टेबलेट के मासिक उत्पादन को 12.23 करोड़ टेबलेट से बढ़ाकर 30 करोड़ टेबलेट कर दिया है।
चिकित्सा उपकरणों के घरेलू उत्पादन को बढ़ावा देने के साथ-साथ मोदी सरकार ने कोरोना संक्रमण फैलने से रोकने का बहुआयामी उपाय किया। इसी तरह के उपाय संक्रमित लोगों के उपचार में किए गए।
मरीजों को समय पर चिकित्सकीय सहायता उपलब्ध कराने के लिए हर स्तर पर समन्वय स्थापित किया गया। इसका नतीजा यह हुआ कि रिकवरी रेट बढ़कर 40 प्रतिशत तक पहुंच गया है जबकि शुरूआती दौर में यह अनुपात महज 7 प्रतिशत था।
अपने बहुआयामी प्रयासों से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी न केवल कोरोना संक्रमण की रफ्तार धीमी करने में कामयाब रहे बल्कि विपक्ष को मुद्दाविहीन कर दिया। प्रधानमंत्री की यही जनप्रियता भारत में विपक्षी दलों को जनाधार विहीन कर रही है।
(लेखक केन्द्रीय सचिवालय में अधिकारी हैं। ये उनके निजी विचार हैं।)