मोदी के नेतृत्व ने स्वच्छता को जनांदोलन बना दिया!

साफ-सफाई के बहुआयामी लाभों के बावजूद भारत इस मामले में पिछड़ा रहा तो इसका कारण यह है कि आजाद भारत की सरकारों की प्राथमिकता सूची में स्‍वच्‍छता को कभी जगह ही नहीं मिली। साफ-सफाई को जनांदोलन का रूप नहीं दिया गया। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस कुप्रवृत्‍ति को बदल दिया। मोदी है तो मुमकिन है का ही नतीजा है कि आज पूरा देश स्वच्छता के प्रति सजग हो चुका है।

आधुनिकता और विकास के तमाम दावों और चंद्रमा तक उपग्रह भेजने की क्षमता के बावजूद भारत ऐसे देशों में अग्रणी रहा जहां लोग खुले में शौच जाते थे। खुले में शौच के संबंध में एक नई प्रवृत्‍ति भी उभर रही थी कि जहां गांवों में खुले में शौच की प्रथा में कमी आ रही थी, वहीं झुग्‍गी-झोपड़ियों के विस्‍तार के कारण शहरी क्षेत्रों विशेषकर महानगरों में यह समस्‍या बढ़ी।

देखा जाए तो शौचालय सुविधा से न केवल गरिमा और सामाजिक प्रतिष्‍ठा बढ़ती है बल्‍कि यह पर्यावरण संरक्षण  में  भी सहायक होता है। फिर इससे पेयजल को सुरक्षित बनाने में भी मदद मिलती है। गौरतलब है कि साफ-सफाई  की बुनियादी सुविधा उपलब्‍ध न होने के कारण लाखों लोग उन बीमारियों के शिकार हो जाते हैं जिन्‍हें रोका जा सकता है।

एक अनुमान के मुताबिक खुले में शौच से होने वाली बीमारियों से भारत को हर साल बारह अरब रूपए और बीस करोड़ श्रम दिवसों से हाथ धोना पड़ता था। विश्‍व स्‍वास्‍थ्‍य संगठन के आंकड़ों के मुताबिक दुनिया के जिन क्षेत्रों  में  खुले में  शौच की प्रथा प्रचलित है उन्‍हीं क्षेत्रों  में  बाल मृत्‍यु दर अधिक है। हैजे का मूल कारण दूषित पानी और स्‍वच्‍छता की कमी है। इसे भारत और चीन की  तुलना से समझा जा सकता है।

भारत से अधिक आबादी वाले चीन  में  खुले  में  मल विसर्जन करने वालों की संख्‍या महज पांच करोड़ और डायरिया से मरने वाले बच्‍चों की संख्‍या मात्र चालीस हजार है। विश्‍व स्‍वास्‍थ्‍य संगठन ने अपने निष्‍कर्ष में बताया है कि साफ-सफाई व्‍यवस्‍था के सुधार पर खर्च किए गए प्रत्‍येक डालर से औसतन सात डालर का आर्थिक लाभ होता है। 

साफ-सफाई के बहुआयामी लाभों के बावजूद भारत इस मामले में पिछड़ा रहा तो इसका कारण यह है कि आजाद भारत की सरकारों की प्राथमिकता सूची में स्‍वच्‍छता, पेयजल, स्‍वास्‍थ्‍य, शिक्षा जैसी मूलभूत सुविधाएं कभी थी ही नहीं। सरकारों की पूरा जोर गरीबी मिटाने का नारा लगाने और गरीबों के वोट से सत्‍ता हासिल करने पर रहता था। साफ-सफाई को जनांदोलन का रूप नहीं दिया गया।

साफ-सफाई के मामले में देश को पहली पंक्‍ति में खड़ा करने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 2 अक्‍टूबर, 2014 को स्‍वच्‍छ भारत अभियान शुरू किया। स्‍वच्‍छता के प्रति जिस जागरूकता की शुरूआत प्रधानमंत्री ने की, वह आज जनांदोलन बन चुका है। अभियान की शुरूआत करते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा था, 2019 में महात्‍मा गांधी की 150वीं जयंती के अवसर पर देश उन्‍हें स्‍वच्‍छ भारत के रूप में सर्वश्रेष्‍ठ श्रद्धांजली दे सकता है।

प्रधानमंत्री जानते थे कि कांग्रेसी संस्‍कृति में पली-बढ़ी नौकरशाही के बल पर इस महत्‍वाकांक्षी लक्ष्‍य को हासिल नहीं किया जा सकता इसलिए उन्‍होंने खुद झाड़ू उठाई। इसके अनुकरण में देश के खास से लेकर आम लोग तक इस अभियान से जुड़ते चले गए। इसका नतीजा यह हुआ कि 38 प्रतिशत स्‍वच्‍छता कवरेज वाला देश महज साढ़े चार साल में लगभग सौ प्रतिशत कवरेज हासिल कर लिया। लोगों की सोच ओर व्‍यवहार में परिवर्तन आना विशेष उल्‍लेखनीय रहा। स्‍वच्‍छता को जनांदोलन बनाने में प्रधानमंत्री के ‘मन की बात’ कार्यक्रम का भी महत्‍वपूर्ण योगदान रहा।

छत्‍तीसगढ़ के धमतरी जिले की 104 वर्षीय कुंवर बाई का उल्‍लेख प्रासंगिक है। कुंवर बाई ने बकरियां बेचकर शौचालय निर्माण कराया। स्‍वच्‍छता के प्रति उनके इस जज्‍बे को सलाम करते हुए प्रधानमंत्री ने उनके पैर छुए। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का यह कार्य कांग्रेसी कार्यसंस्‍कृति के विपरीत है जहां बुजुर्ग युवा कांग्रेसियों के पैर छूते हैं।

स्‍वच्‍छ भारत अभियान के तहत अब तक नौ करोड़ से अधिक शौचालयों का निर्माण पूरा कर लिया गया हे। शहरी क्षेत्रों के साथसाथ ग्रामीण क्षेत्र के लोग आगे बढ़कर स्‍वच्‍छता मुहिम से जुड़े। इस दौरान देश के सभी सरकारी व गैर सरकारी शिक्षण संस्‍थानों, आंगनवाड़ी पंचायत घरों व सामुदायिक केंद्रों में प्राथमिकता के आधार पर शौचालयों का निर्माण कराया गया।

अब तक 5.55 लाख गांव खुले में शौच मुक्‍त (ओडीएफ) हो चुके हैं जबकि 2014-15 में केवल 47000 गांव ही ओडीएफ थे। देश के सभी 4042 शहरों व शहरी निकायों ने खुद को पूर्ण स्‍वच्‍छ घोषित कर लिया है। समग्रत: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सरकार की प्राथमिकता सूची में जो बदलाव किया है वह नए भारत के निर्माण में मील का पत्‍थर साबित हो रही है।

(लेखक केन्द्रीय सचिवालय में अधिकारी हैं। वरिष्ठ स्तम्भकार हैं। ये उनके निजी विचार हैं।)