हर आपदा में अवसर छिपा होता है। इस कहावत को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कोरोना काल में चरितार्थ कर दिया। प्रधानमंत्री विशेषज्ञों के माध्यम से यह जान गए थे कि कोरोना का खेल डेंगू, स्वाईन फ्लू की तरह जल्दी खत्म होने वाला नहीं है। इसीलिए उन्होंने पहले कोरोना के खिलाफ लंबी लड़ाई लड़ने के लिए आधारभूत संरचना तैयार करने को प्राथमिकता दी। इसके लिए सरकार ने शुरू में ही 15000 करोड़ रूपये का पैकेज जारी कर दिया। इसके साथ-साथ उद्यमियों से सीधा संवाद स्थापित कर उनकी कठिनाईयां दूर की गईं।
जनवरी-फरवरी में जब यूरोप-अमेरिका में कोरोना महामारी ने विकराल रूप लेना शुरू किया तब यह अंदेशा जताया जाने लगा था कि यदि भारत में यह महामारी फैली तो करोड़ों लोगों का इलाज कहां होगा? भारत की कांग्रेसी संस्कृति वाली स्वास्थ्य सुविधा के ढांचे को देखते हुए यह अंदेशा आधारहीन नहीं था। सबसे बड़ी समस्या यह थी कि देश में पीपीई किट, मास्क, वेंटीलेटर आदि का उत्पादन न के बराबर था। कमोबेश यही स्थिति दूसरी आपातकालीन चिकित्सा उपकरणों के मामले में थी।
घरेलू उत्पादन में भारत के पिछड़ने के लिए कांग्रेसी सरकारों की आयात करने की प्रवृत्ति और कमीशनखोर संस्कृति जिम्मेदार रही है। जब भी देश में कोई आपदा आती थी तब गांधी-नेहरू परिवार का कोई नामी चेहरा आयातक बनकर संबंधित उपकरणों को विदेश से महंगे दामों पर आयात कर लेता था। इसका परिणाम यह हुआ कि देश में धीरे-धीरे उत्पादन संस्कृति लुप्त होती गई।
आगे चलकर आयातकों की लॉबी इतनी मजबूत बन गई कि वह आयात शुल्क में कटौती करवाकर सस्ते आयात को प्रोत्साहित करने लगी। इसे अगरबत्ती के उदाहरण से समझा जा सकता है। चीन ने 2011 में राजीव गांधी फाउंडेशन को 90 लाख रूपये चंदा दिया और इसके मात्र पंद्रह दिन बाद यूपीए सरकार ने अगरबत्ती पर आयात शुल्क को 30 प्रतिशत से घटाकर 10 प्रतिशत कर दिया। इसका नतीजा यह हुआ चीन और वियतनाम से अगरबत्ती आयात तेजी से बढ़ा।
हर आपदा में अवसर छिपा होता है। इस कहावत को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कोरोना काल में चरितार्थ कर दिया। प्रधानमंत्री विशेषज्ञों के माध्यम से यह जान गए थे कि कोरोना का खेल डेंगू, स्वाईन फ्लू की तरह जल्दी खत्म होने वाला नहीं है।
इसीलिए उन्होंने पहले कोरोना के खिलाफ लंबी लड़ाई लड़ने के लिए आधारभूत संरचना तैयार करने को प्राथमिकता दी। इसके लिए सरकार ने शुरू में ही 15000 करोड़ रूपये का पैकेज जारी कर दिया। इसके साथ-साथ उद्यमियों से सीधा संवाद स्थापित कर उनकी कठिनाईयां दूर की गईं।
मोदी सरकार ने कोरोना के खिलाफ लड़ाई की जो तैयारियां की उसका परिणाम आश्चर्यचकित करने वाला रहा। जो देश कोरोना के जरूरी उपकरणों के लिए जनवरी 2020 में पूरी तरह आयात पर निर्भर था वह अब न सिर्फ इसमें आत्मनिर्भर है बल्कि निर्यात की स्थिति में पहुंच गया है।
जनवरी 2020 में देश में एक भी पर्सनल प्रोटेक्टिव इक्विपमेंट (पीपीई) किट नहीं बनता था लेकिन मोदी सरकार के प्रयासों से मात्र छह महीने में भारत दुनिया का सबसे बड़ा पीपीई किट उत्पादक देश बन गया। इसी तरह देश में कभी एक भी एन 95 मास्क नहीं बनते थे, आज लगभग चार लाख एन 95 मास्क प्रतिदिन बन रहे हैं। यही स्थिति वेंटीलेटर के निर्माण को लेकर भी है।
इन सुविधाओं का ही नतीजा है कि जहां एक ओर टेस्टिंग क्षमता बढ़ी है, वहीं दूसरी ओर संक्रमितों का रिकवरी रेट भी बढ़ा है। जनवरी 2020 में जहां कोरोना जांच की सुविधा केवल एक सेंटर पर उपलब्ध थी वहीं आज 1440 सेंटरों में जांच सुविधा उपलब्ध है। इनमें से 992 सेंटर सरकारी क्षेत्र में और 548 निजी क्षेत्र में हैं। इसीका परिणाम है कि एक समय जहां दैनिक टेस्टिंग क्षमता 300 थी, वहीं आज यह बढ़कर आठ लाख से अधिक हो गई है। अब शीघ्र ही प्रतिदिन दस लाख से अधिक टेस्ट किए जाने लगेंगे।
29 अगस्त 2020 की स्थिति के अनुसार देश में अब तक 4 करोड़ लोगों की जांच की जा चुकी है। जिनमें 35 लाख लोग कोरोना संक्रमित पाए गए। इनमें से 26.5 लाख लोग ठीक होकर घर जा चुके हैं। इस प्रकार कोरोना से रिकवरी दर 76.48 प्रतिशत तक पहुंच चुका है। सबसे बड़ी बात यह है कि सक्रिय मामलों से 3.5 गुना ज्यादा लोग ठीक हो चुके हैं। इस प्रकार एक्टिव केस मात्र 21.9 प्रतिशत ही रह गए हैं।
कोरोना के खिलाफ भारत की कामयाब लड़ाई से जहां दुनिया अचंभित है वहीं विरोधी दल ओछी राजनीति करने पर तुले हुए हैं। उदाहरण के लिए पहले मोदी सरकार को बदनाम करने और लॉकडाउन को असफल करने के लिए मजदूरों को भड़काकर सड़कों पर उतारा और आज जब रिकवरी रेट 76 प्रतिशत से अधिक हो चुका है तब नीट व जेईई परीक्षा का विरोध कर रहे हैं।
(लेखक केन्द्रीय सचिवालय में अधिकारी हैं। वरिष्ठ टिप्पणीकार हैं। प्रस्तुत विचार उनके निजी हैं।)