खरीफ फसल के बाद रबी फसलों की बुवाई का सीजन चल रहा है और पूरे देश में कहीं से भी खाद के लिए मारामारी की खबर नहीं आ रही है तो इसका श्रेय मोदी सरकार की उर्वरक नीति को जाता है। मोदी सरकार ने एक ओर रासायनिक उर्वरकों के घरेलू उत्पादन को बढ़ावा दिया तो दूसरी ओर यूरिया को नीम कोटेड कर दिया। इसका परिणाम यह हुआ कि न केवल खपत कम हुई बल्कि यूरिया की तस्करी-कालाबाजारी भी रूक गई।
कांग्रेसी सरकारें हर स्तर पर बिचौलियों-मुफ्तखोरों की लंबी-चौड़ी फौज खड़ी करने के मामले में कुख्यात रही हैं। जिन–जिन राज्यों में कांग्रेस की जगह जातिवादी सरकारें आई उन्होंने तो भ्रष्टाचार को राजधर्म बना डाला। यहां उत्तर प्रदेश के बहुचर्चित राशन घोटाले का उल्लेख प्रासंगिक है, जिसमें सार्वजनिक वितरण प्रणाली के अनाज से लदी मालगाड़ी गोंडा से सीधे बांग्लादेश पहुंचा दी गई थी। इसी तरह करोड़ों लोग फर्जी पहचान के जरिए विधवा पेंशन, छात्रवृत्ति, मनरेगा आदि के लिए आवंटित धनराशि हड़प रहे थे।
प्रधानमंत्री बनने के बाद मोदी ने तकनीक के बल पर मुफ्तखोरों-बिचौलियों को निपटाने का काम शुरू किया। एलपीजी, केरोसीन, राशन, छात्रवृत्रि, विधवा पेंशन जैसी सैकड़ों योजनाओं को आधार नंबर आधारित प्रत्यक्ष नकदी हस्तांतरण(डीबीटी) से जोड़ने के बाद सरकार अब रासायनिक उर्वरकों पर हर साल दी जाने वाली सब्सिडी को तर्कसंगत बनाने जा रही है। इसके पीछे सरकार का उद्देश्य है बिचौलियों का उन्मूलन हो और रासायनिक उर्वरकों का संतुलित व कम इस्तेमाल हो।
गौरतलब है कि हरित क्रांति के दौर में यूरिया (नाइट्रोजन) के जरूरत से ज्यादा इस्तेमाल से मिट्टी-पानी-हवा सभी प्रदूषित हुए हैं। अब मोदी सरकार उस ऐतिहासिक भूल को सुधारने जा रही है। देश के 12 करोड़ किसानों में से 10 करोड़ किसानों को मृदा स्वास्थ्य कार्ड वितरित किए जा चुके हैं और इस महीने के आखिर तक सभी किसानों को यह कार्ड मिल जाएगा। इससे किसान मिट्टी की जरूरत के अनुसार खाद डालेंगे।
कांग्रेसी सरकारों ने वोट बैंक की राजनीति के कारण नमक से भी कम कीमत पर यूरिया की बिक्री की जिससे उर्वरकों के असंतुलित इस्तेमाल को बढ़ावा मिला और मिट्टी की सेहत का बंटाधार हो गया। इतना ही नहीं सस्ती यूरिया का जमकर दुरुपयोग होने लगा और यूरिया तस्करों की एक लॉबी अस्तित्व में आई जो एक-तिहाई यूरिया को तस्करी के जरिए नेपाल-बांग्लादेश पहुंचा देती थी। इतना ही नहीं यूरिया का इस्तेमाल विस्फोटक बनाने जैसी देशविरोधी गतिविधियों में भी होने लगा था। इसी को देखते हुए मई 2015 में मोदी सरकार ने यूरिया उत्पादन को नीम कोटेड करना अनिवार्य कर दिया। इसमें यूरिया के ऊपर नीम के तेल का लेपन कर दिया जाता है।
यह लेपन नाइट्रीफिकेशन अवरोधी के रूप में काम करता है। इससे यूरिया धीमी गति से प्रसरित होता है, जिससे फसलों की जरूरत के अनुरूप नाइट्रोजन उपलब्ध होता रहता है। इससे फसलों को यूरिया की 10 प्रतिशत कम जरूरत पड़ती है। दूसरी ओर नीम कोटेड करने से इसकी तस्करी में भी कमी आई। सब्सिडी के आंकड़े भी मोदी सरकार की पहल की पुष्टि कर रहे हैं। 2015-16 में 72,415 करेाड़ रूपये की उर्वरक सब्सिडी दी गई जो 2016-17 में 3.4 फीसदी घटकर 70,400 करोड़ रूपये रह गई।
यूरिया तस्करी और इसके दुरुपयोग को पूरी तरह खत्म करने के उद्देश्य से मोदी सरकार ने देश के 17 जिलों में यूरिया सब्सिडी के सीधे किसानों के बैंक खाते में डालने का पायलट प्रोजेक्ट शुरू किया। इसकी कामयाबी से उत्साहित सरकार अब इसे देश भर में लागू करने की कवायद में जुट गई है ताकि उर्वरकों पर दी जाने वाली 70,000 करोड़ रूपये की सब्सिडी गलत हाथों में न जाए। पहली अक्टूबर 2017 से सात छोटे राज्यों व संघ शासित क्षेत्रों में उर्वरक सब्सिडी सीधे किसानों के बैंक खाते में भेजने की शुरूआत हुई है। इससे मिले अनुभव के आधार पर अगले साल के मध्य तक समूचे देश में उर्वरक सब्सिडी को डीबीटी के दायरे में लाया जाएगा।
मोदी सरकार किसानों की माली हालत से अनजान नहीं है। इसीलिए उसने डीबीटी को चरणबद्ध तरीके से लागू करने का निश्चय किया है। इसके तहत किसानों को महंगे उर्वरकों पर सब्सिडी जारी रहेगी और बिक्री केंद्रों पर लगी बायोमेट्रिक मशीनों (प्वाइंट ऑफ सेल) पर उनकी खरीद का विवरण दर्ज होगा। इस विवरण की जांच-परख के बाद उर्वरक विक्रेताओं को सब्सिडी की राशि मुहैया करा दी जाएगी।
विरोधी यह आरेाप लगाते रहे हैं कि मोदी सरकार सब्सिडी खत्म करना चाहती है लेकिन सच्चाई यह है कि सरकार सब्सिडी नहीं सब्सिडी के नाम पर हो रही लूट को खत्म कर रही है। चूंकि इस लूट का अधिकांश हिस्सा कांग्रेस व जातिवादी राजनीति के पुरोधाओं के यहां जा रहा था। इसलिए वे सब्सिडी का नाम लेकर मोदी सरकार की घेरेबंदी कर रहे हैं।
(लेखक केन्द्रीय सचिवालय में अधिकारी हैं। ये उनके निजी विचार हैं।)