शाह के भाषण से स्पष्ट है कि सरकार कश्मीर समस्या पर अब निर्णायक कार्रवाई का मन बना चुकी है और इस दिशा में उसने चरणबद्ध ढंग से कदम बढ़ाने शुरू कर दिए हैं। उम्मीद की जा सकती है कि सरकार की पहलों से आजादी के बाद से ही देश के लिए नासूर बनी हुई यह समस्या अपने अंजाम तक पहुंचेगी।
पिछले दिनों केन्द्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने संसद में कश्मीर को लेकर कुछ महत्वपूर्ण विषय रखे। इनमें राज्य में राष्ट्रपति शासन छः महीने के लिए बढ़ाना और राज्य के दस किलोमीटर सीमावर्ती क्षेत्र में रहने वालों के लिए आरक्षण की व्यवस्था करने सम्बन्धी संशोधन विधेयक दो प्रमुख विषय रहे। अच्छी बात रही कि विपक्ष ने इन मुद्दों पर शाब्दिक विरोध तो जताया, मगर इन्हें पारित करवाने में कोई अड़चन नहीं लगाई। परिणामस्वरूप दोनों ही विषय संसद की दोनों सदनों में सहजता से मंजूर हो गए।
अमित शाह ने अपने भाषण में जो कुछ कहा, वो कश्मीर को लेकर मोदी सरकार की रीति-नीति को स्पष्ट करने वाला था। शाह के वक्तव्य में राज्य में सुरक्षा और विकास का वातावरण कायम करने को लेकर सरकार की प्रतिबद्धता दिखाई दी। कश्मीर समस्या को हल करने सम्बन्धी सरकार के प्रयासों को तीन भागों में बांटकर देखा जा सकता है। प्रथम, राज्य में आतंकियों को खात्मे के लिए सेना को खुली छूट दी गयी, जिसका असर यह हुआ है कि ऑपरेशन आल आउट के तहत कई बड़े आतंकियों का सफाया किया जा चुका है। राष्ट्रपति शासन के दौरान आतंकवादियों के खिलाफ कार्रवाई में और तेजी आई है, जिससे राज्य में स्थिति काफी सुधरी है।
दूसरा, राज्य का वातावरण बिगाड़ने और स्थानीय लोगों का स्वघोषित रहनुमा बनकर उन्हें भड़काने वाले अलगाववादियों पर सरकार ने सख्ती दिखाई है। यासीन मालिक, मसरत आलम जैसे अलगाववादी नेताओं पर कार्रवाई इसका उदाहरण है। तीसरा, राज्य के लोगों को विकास प्रक्रिया से जोड़ने के लिए सरकार विभिन्न मोर्चों पर प्रयास कर रही है। इसमें केन्द्रीय स्तर पर राज्य को आर्थिक सहयोग देने से लेकर वहाँ निचले स्तर तक संवैधानिक व्यवस्था को जीवंत करने जैसे कदम शामिल हैं।
राज्य में पंचायत चुनाव कराकर निचले स्तर पर लोकतान्त्रिक व्यवस्था की स्थापना एक बड़ा कदम है। आंकड़ों के मुताबिक इस समय जम्मू-कश्मीर में चालीस हजार सरपंच काम कर रहे हैं। सात सौ करोड़ की विकास-निधि इनके खातों में पहुँच चुकी है। आगे और धनराशी की मदद दी जाएगी। सरकार का ये कदम बड़े बदलाव का द्योतक बनेगा।
कुल मिलाकर कह सकते हैं कि सरकार कश्मीर पर अब निर्णायक कार्रवाई का मन बना चुकी है और इस दिशा में उसने चरणबद्ध ढंग से कदम बढ़ाने शुरू कर दिए हैं। उम्मीद की जा सकती है कि सरकार की पहलों से आजादी के बाद से ही देश के लिए नासूर बनी हुई कश्मीर समस्या अपने अंजाम तक पहुंचेगी।