तकनीकी उन्नति के कारण सौर परियोजनाओं की लागत में आ रही निरंतर गिरावट भी उत्साह बढ़ा रही है। सौर ऊर्जा की एक खासियत यह है कि एक बार ग्रिड से जुड़ जाने के बाद लागत निकलनी शुरू हो जाती है। प्रधानमंत्री की पहल को वैश्विक स्तर पर भी मान्यता मिल रही है। उदाहरण के लिए दिसंबर 2015 में पेरिस जलवायु सम्मेलन में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के सूर्य नमस्कार पहल को अभूतपूर्व कामयाबी मिली जब दुनिया के 120 देशों ने इंटरनेशनल सोलर एलाएंस बनाने की घोषणा की।
आजादी के 70 साल होने को हैं, लेकिन ये आजादी के बाद लम्बे समय तक शासन में रही कांग्रेसी सरकारों की नाकामी ही है कि आज भी करोड़ों लोगों की जिंदगी सूरज की रोशनी में ही चहलकदमी करती है। इनके लिए रात में लालटेन व दीये की टिमटिमाती रोशनी ही सहारा है। लेकिन अब यह अतीत की बात होने वाली है, क्योंकि मोदी सरकार जिस रफ्तार से सौर ऊर्जा के जरिए अंधेरा मिटाने में जुटी है, उससे हर घर चौबीसों घंटे रोशन रहेगा।
गौरतलब है कि आज भी देश में तीस करोड़ लोग बिजली सुविधा से वंचित हैं। इसी को देखते हुए प्रधानमंत्री बनने के बाद से ही नरेंद्र मोदी सौर ऊर्जा के विकास पर जोर दे रहे हैं। फिर, सौर ऊर्जा ही वह स्रोत है जो दुनिया को कम कार्बन वाले भविष्य की ओर ले जाएगा। इस प्रकार जलवायु परिवर्तन की समस्या का भी समाधान हो जाएगा।
तकनीकी उन्नति के कारण सौर परियोजनाओं की लागत में आ रही निरंतर गिरावट भी उत्साह बढ़ा रही है। सौर ऊर्जा की एक खासियत यह है कि एक बार ग्रिड से जुड़ जाने के बाद लागत निकलनी शुरू हो जाती है। प्रधानमंत्री की पहल को वैश्विक स्तर पर भी मान्यता मिल रही है। उदाहरण के लिए दिसंबर 2015 में पेरिस जलवायु सम्मेलन में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के सूर्य नमस्कार पहल को अभूतपूर्व कामयाबी मिली जब दुनिया के 120 देशों ने इंटरनेशनल सोलर एलाएंस बनाने की घोषणा की।
देखा जाए तो सौर ऊर्जा के मामले में भारत को कुदरत का पिटारा हासिल है। देश में साल भर में बिजली की जितनी खपत होती है, उतनी सिर्फ एक दिन की सूरज की रोशनी से पैदा की जा सकती है। इसे देखते हुए भारत को सौर ऊर्जा का सउदी अरब कहा जाए तो अतिशयोक्ति नहीं होगी। यहां के हिमालयी राज्यों को छोड़ दिया जाए तो पूरे देश में 300 दिन धूप खिली रहती है, जिससे 5000 ट्रिलियन किलोवाट बिजली पैदा की जा सकती है।
देश की महज 0.5 फीसदी जमीन का इस्तेमाल करके 1000 गीगावाट बिजली आसानी से बनाई जा सकती है। सबसे बढ़कर सौर परियोजनाओं की स्थापना में बहुत कम समय लगता है। उदाहरण के लिए गुजरात में चरंका पावर प्लांट महज 16 महीने में बनकर तैयार हो गया। इसी को देखते हुए मोदी सरकार ने 2022 तक 1,75,000 मेगावाट बिजली अपरंपरागत स्रोतों से पैदा करने का लक्ष्य रखा है, जिसमें एक लाख मेगावाट सौर ऊर्जा से हासिल होगी।
सौर ऊर्जा का 40 प्रतिशत हिस्सा सोलर पार्क और अल्ट्रा मेगा सोलर परियोजनाओं से हासिल किया जाएगा। इतना ही नहीं, प्रधनमंत्री ने देश में मॉडल सौर शहरों की स्थापना करने का भी आह्वान किया है, जिनमें शहर की सभी ऊर्जा जरूरतें सौर ऊर्जा से पूरी हों। प्रधानमंत्री ने सौर ऊर्जा संबंधी उपकरणों के निर्माण में तेजी लाने पर जोर दिया है ताकि रोजगार सृजन एवं नवीकरणीय ऊर्जा का लाभ लोगों को मिल सके।
मोदी सरकार जनभागीदारी से सौर ऊर्जा क्रांति की ओर अग्रसर है। सरकार विकेंद्रित बिजली ग्रिड बना रही है, जिसमें सौर व पवन ऊर्जा की अहम भागीदारी होगी। जापान ने ऐसा ही ग्रिड बनाया है। यह देखा गया है कि सरकारी स्तर पर सौर ऊर्जा का बड़े पैमाने पर इस्तेमाल आम आदमी के लिए प्रेरणा का काम करता है।
इसी को देखते हुए मोदी सरकार ने अगले पांच वर्षों में सभी केंद्रीय मंत्रालयों, विभागों, सार्वजनिक क्षेत्र उपक्रमों की छतों और खाली जगहों पर सौर ऊर्जा पैनल लगाने का फैसला किया है। केंद्र सरकार ने सभी राज्य सरकारों को भी सरकारी भवनों और खाली जगहों पर सौर ऊर्जा पैनल लगाने की सलाह दी है। इतना ही नहीं, निजी कंपनियों और आम लोगों को भी इसके लिए प्रोत्साहित किया जा रहा है।
सौर ऊर्जा उत्पादन के लिए सरकार ने जो भारी-भरकम लक्ष्य निर्धारित किया है, उसकी राह में बाधाएं भी कम नहीं हैं। एक लाख मेगावाट सौर ऊर्जा के लिए 6.5 लाख करोड़ रूपये के निवेश की जरूरत है। इसके अलावा ग्रिड आधुनिकीकरण के लिए 7 लाख करोड़ रूपये चाहिए। गौरतलब है कि ग्रिड कनेक्टीविटी के बिखरी हुई होने के कारण ही सौर ऊर्जा देश के कुछ ही हिस्सों में व्यवहार्य है।
एक अनुमान के मुताबिक मौजूदा समय में विचाराधीन परियोजनाओं को अमलीजामा पहनाने के लिए 5 लाख एकड़ जमीन की जरूरत पड़ेगी। देश में छोटी जोतों की अधिकता और जटिल भूमि अधिग्रहण कानून को देखते हुए यह मुश्किल काम है। सौर ऊर्जा के क्षेत्र में एक बड़ी बाधा उत्पादित बिजली के संग्रहण की है। रात के समय बिजली आपूर्ति के लिए उत्पादित बिजली को बैटरियों में संग्रहित कर रखे जाने की जरूरत होती है। इस समय जो बैटरियां प्रचलित हैं, वे बहुत महंगी हैं और उनका जीवन काल बहुत कम है। अत: बैटरी तकनीक में सुधार जरूरी है।
सरकार इन समस्याओं को दूर करने के लिए प्रयासरत है। देश में मौजूद एक फीसदी गैर कृषि योग्य व बंजर जमीन 80,000 मेगावाट ग्रिड परियोजना के लिए पर्याप्त होगी। राज्य सरकारें भूमि अधिग्रहण में आ रही दिक्कत को भूमि बैंक बनाकर दूर कर सकती हैं। गुजरात व कर्नाटक में ऐसा किया जा चुका है। राजस्थान सरकार 25 साल के लिए जमीन पट्टे पर दे रही है। छत्तीसगढ़ में अलग-अलग घरों को पीवी पैनल दिलाने के बजाए गांव-गांव में छोटे-छोटे ग्रिड स्थापित किए गए हैं। जमीन की कमी को घरों की छत पर प्लांट लगाकर पूरी की जा सकती है। इसी तरह सरकारी उपक्रमों, विभागों, सेना की खाली पड़ी जमीन, स्कूलों-कॉलेजों में ऐसे प्लांट लगाए जाएंगे।
(लेखक केन्द्रीय सचिवालय में अधिकारी हैं। ये उनके निजी विचार हैं।)