जो देश पांच साल पहले रक्षा उत्पादों का अग्रणी आयातक था, अब वह हर साल हजारों करोड़ रूपये का रक्षा उत्पाद निर्यात कर रहा है। वह दिन दूर नहीं जब भारत रक्षा क्षेत्र में न सिर्फ आत्मनिर्भरता हासिल कर लेगा बल्कि दुनिया का अग्रणी निर्यातक बन जाएगा।
जिस देश में एक पर्व (विजयदशमी) विशेष रूप में शस्त्र पूजन के लिए हो वह देश दुनिया में हथियारों का अग्रणी आयातक हो तो इसे विडंबना ही कहा जाएगा। देश में अस्त्र-शस्त्र निर्माण की बहुत पुरानी परंपरा रही है। आधुनिक संदर्भ में देखें तो भारतीय रक्षा उद्योग की नींव 200 साल पहले ब्रिटिश काल में रखी गई।
अंग्रेजों ने बंदूक और गोला बारूद तैयार करने के लिए आयुध कारखानों की स्थापना की। 1947 में देश में 18 आयुध कारखाने थे। वर्तमान में 41 आयुध कारखाने, 9 रक्षा क्षेत्र के र्साजनिक उपक्रम, 200 से अधिक निजी कंपनियां और बड़े निर्माता हैं जो रक्षा उत्पादन की गतिविधियों में संलग्न हैं। इसके अतिरिक्त रक्षा उत्पादन एवं विकास संगठन (डीआरडीओ) की 50 से अधिक प्रयोगशालाएं भी देश के रक्षा विनिर्माण में अपना योगदान कर रही हैं।
आजादी के बाद रक्षा उत्पादन की ओर उतना ध्यान नहीं दिया गया जितना दिया जाना चाहिए था। इसका कारण यह रहा कि सत्ता पक्ष से जुड़े हथियारों के बड़े-बड़े डीलर सक्रिय हो गए और हथियारों की खरीद में मिलने वाली दलाली की मोटी रकम सत्ता में बैठे शीर्ष लोगों तक पहुंचने लगी। संकट के समय तो यह खरीद कई गुना बढ़ जाती थी और उसी अनुपात में दलाली की रकम भी। बोफोर्स तोप, अगस्ता वेस्टलैंड हेलीकॉप्टर और पनडुब्बी खरीद में हुए घोटाले तो अभी तक चर्चा में बने हुए हैं।
रक्षा खरीद सौदों में मिलने वाली दलाली की मोटी रकम ने घरेलू रक्षा उत्पादन को अपेक्षित रफ्तार नहीं पकड़ने दिया। इससे धीरे-धीरे रक्षा क्षेत्र में आत्मनिर्भरता खत्म हो गई। इसका दुष्परिणाम यह हुआ कि दुनिया का पांचवां सबसे बड़ा रक्षा बजट होने के बावजूद भारत अपनी जरूरत की 60 प्रतिशत रक्षा प्रणालियां विदेशी बाजारों से खरीदने लगा।
2014 में प्रधानमंत्री बनने के बाद नरेंद्र मोदी ने न केवल आयात घटाने बल्कि रक्षा उत्पादों का निर्यात बढ़ाने के लिए घरेलू उत्पादन की ओर ध्यान दिया। लेकिन आयातकों की मजबूत कांग्रेसी लॉबी ने इसमें हर कदम पर अवरोध पैदा किया जिससे उत्पादन में बहुत धीमी गति से बढ़ोत्तरी हुई।
आयातकों की लॉबी को कमजोर करने के लिए मोदी सरकार ने कई नीतिगत परिवर्तन किया और निजी कंपनियों को भागीदार बनाया। इसके सकारात्मक परिणाम अब मिलने लगे हैं। 2018-19 में भारत ने 80,000 करोड़ रूपये के रक्षा संबंधी उपकरणों का उत्पादन किया। इसमें से 10,745 करोड़ रूपये के रक्षा उपकरणों का निर्यात किया गया। 2017-18 में यह निर्यात 4,682 करोड़ रूपये और 2016-17 में 1500 करोड़ रूपये था। स्पष्ट है, देश के रक्षा निर्यात में तेजी से बढ़ोत्तरी हो रही है।
रक्षा मंत्रालय ने रक्षा उत्पादन से जुड़ी नई रूपरेखा को ध्यान में रखते हुए एक नया ओपन जनरल एक्सपोर्ट लाइसेंस प्लान बनाया है, जिससे भारतीय कंपनियां रक्षा उपकरणों का चुने हुए देशों को आसानी से निर्यात कर पाएंगी। इसके साथ ही भारत को कुछ चुनिंदा उपकरणों पर खुली छूट मिल जाएगी जिससे अंतरराष्ट्रीय रक्षा बाजार में उसका दखल और बढ़ जाएगा।
मोदी सरकार की पहल से रक्षा उत्पादन में बढ़ रही निजी क्षेत्र की भागीदारी को देखते हुए सरकार ने 2019-20 में रक्षा उत्पाद निर्यात का लक्ष्य 20,000 करोड़ रूपये रखा है, वहीं 2024-25 तक 35,000 करोड़ रूपये के रक्षा उत्पाद निर्यात का लक्ष्य रखा गया है। सबसे बड़ी उपलब्धि यह है कि भारत के रक्षा निर्यात में एक बड़ी हिस्सेदारी उस अमेरिका की है जिससे हम बड़े पैमाने पर हथियार खरीदते रहे हैं। इतना ही नहीं अमेरिका भारत को अपने हथियार बेचने के लिए अनाप-शनाप शर्तें भी थोपता रहा है।
निर्यात में बढ़ोत्तरी के साथ-साथ भारत ने अगले पांच वर्षों में रक्षा निर्माण के क्षेत्र में पूरी तरह आत्मनिर्भर होने का लक्ष्य रखा है। इसके बाद भारत को बाहरी तकनीक या प्रणाली की तरफ नहीं देखना होगा। गौरतलब है कि भारत रडार, इलेक्ट्रानिक युद्ध प्रणाली, तारपीडो और संचार प्रणालियों जैसे कई क्षेत्रों में आत्मनिर्भर है। आज देश के पास अपना विमानवाहक पोत है और हम अपने टैंक बना रहे हैं।
घरेलू रक्षा उत्पादन को बढ़ावा देने के लिए सरकार ने दो रक्षा गलियारों की स्थापना की है। पहले रक्षा गलियारे की शुरूआत उत्तर प्रदेश के अलीगढ़ में हुई तो दूसरे की तमिलनाड़ के तिरूचिरापल्ली में। कोयम्बटूर में रक्षा क्षेत्र के लिए नए इनेवेशन सेंटर की शुरूआत भी की गई है। इसके अलावा मोदी सरकार सार्वजनिक क्षेत्र की रक्षा उत्पादन इकाइयों को व्यावसायिक रूप दे रही है ताकि वे राजनीतिक दबाव से मुक्त होकर उत्पादन कर सकें।
समग्रत: जो देश अब तक अग्रणी आयातक था, वह अब अग्रणी रक्षा निर्यातक बनने की ओर अग्रसर है। इसमें मोदी सरकार के नीतिगत परिवर्तन और निजी कंपनियों से गठजोड़ की मुख्य भूमिका रही है। वह दिन दूर नहीं जब पूरी दुनिया भारत की रक्षा तकनीक और प्रणाली की ओर देखेगी।
(लेखक केन्द्रीय सचिवालय में अधिकारी हैं। ये उनके निजी विचार हैं।)