“बहुत हुई महंगाई की मार अबकी बार मोदी सरकार” नामक चुनावी वादे के साथ सत्ता में आई मोदी सरकार अपने वादे को पूरा करने में कामयाब रही। पेट्रोलियम पदार्थों की महंगाई और कुदरती कारणों से सब्जियों की कीमतों में होने वाली तात्कालिक तेजी को छोड़ दिया जाए तो कमोबेश महंगाई काबू में है। महंगाई पर चौतरफा नकेल कसने का ही नतीजा है कि पेट्रोल-डीजल की बढ़ी हुई कीमतों का असर दूसरे खाद्य पदार्थों पर बहुत कम पड़ रहा है। इसीका नतीजा है कि अगस्त में थोक मूल्य महंगाई घटकर 4.53 प्रतिशत रही। खाद्य पदार्थों विशेषकर सब्जियों के भाव में कमी से महंगाई दर में कमी आई है।
महंगाई पर भारत बंद का आयोजन करने वाले यह नहीं देख रहे हैं सैकड़ों जीवनोपयोगी वस्तुओं-सेवाओं की कीमतों भारी कमी दर्ज की गई है। जो दालें सौ से डेढ़ सौ रूपये किलो बिक रही थीं वे आज साठ से सत्तर रूपये किलो में प्रचुर मात्रा में उपलब्ध हैं। चीनी 45 रूपये किलो से घटकर 30 से 32 रूपये प्रति किलो तक आ गई है। जो एलईडी बल्ब साढ़े तीन सौ रूपये का मिल रहा था उसकी कीमत आज मात्र 70 रुपये रह गई है। इसी तरह होम व स्टूडेंन्ट लोन की ब्याज दर में कमी आई है। पहले एक जीबी मोबाइल डाटा के लिए जहां 269 रूपये खर्च करने पड़ते थे वहीं अब वह महज 19 रूपये में उपलब्ध है।
दवा कंपनियों पर नकेल कसने का नतीजा है कि अब उनकी कीमतें काबू में हैं। दिल की बीमारी से पीड़ित मरीजों की एंजियोप्लास्टी के दौरान डाले जाने वाले स्टेंट के लिए पहले जहां डेढ़ से दो लाख रूपये लगते थे, वहीं अब वह महज 25 से 30 हजार रूपये में ही उपलब्ध है। इतना ही नहीं, सरकार ने सेहत के लिए खतरनाक साबित हो रही 328 दवाओं पर प्रतिबंध लगा दिया है। जिस घुटना प्रत्यारोपण के लिए पहले डेढ़ लाख रुपये खर्च होते थे, अब वही प्रत्यारोपण महज 50,000 रूपये में हो रहा है।
जनता को यूपीए शासन काल की महंगाई याद है। उस दौर में महंगाई डायन का प्रकोप इतना अधिक था कि बिस्कुट कंपनियां पैकेट में बिस्कुटों की संख्या कम कर रही थीं तो साबुन-डिटरजेंट कंपनियां वजन घटा रही थीं ताकि उसी दाम में कम सामान के जरिए घाटे की भरपाई की जा सके। जमीन-जायदाद की कीमतें तो आसमान छू रही थीं।
दरअसल भ्रष्टाचार, दलाली, हवाला, सरकारी संरक्षण वाले गैर सरकारी संगठनों आदि के जरिए पैदा होने वाले काला धन ने जमीन जायदाद की कीमतों में आग लगा दी थी। मोदी सरकार ने इन सब पर नियंत्रण लगा दिया जिससे अचल संपत्तियों की कीमतों में तेजी से गिरावट दर्ज की गई।
चूंकि ये संपत्तियां अधिकतर कांग्रेसी नेताओं व उनके चंपुओं से जुड़ी थीं इसलिए कीमतों में आई इस गिरावट से उन्हें सबसे ज्यादा नुकसान उठाना पड़ा। यही लोग आज मोदी सरकार के सबसे बड़े विरोधी बने हुए हैं। मोदी सरकार के आने के बाद जमीन-जायदाद की कीमतों में गिरावट दर्ज होने का ही नतीजा है कि आम आदमी को अपनी छत नसीब होने लगी है।
देखा जाए तो देश में आजादी के बाद से ही आग लगे तो कुंआ खोदो वाली नीति चल रही है। चाहे महंगाई पर नियंत्रण हो या कृषि उपजों की खरीद। सबसे बड़ी बात यह है कि मोदी सरकार महंगाई पर दूरगामी उपयों के जरिए नकेल कस रही है। दूसरी ओर कांग्रेसी और गठबंधन सरकारों ने आयात करने की रणनीति पर काम किया।
इसे दालों के उदाहरण से समझा जा सकता है। मोदी सरकार के पहले तक दालों की घरेलू मांग को पूरा करने के लिए सरकारें आयात का सहारा लेती थीं। बढ़ती आबादी, मध्य वर्ग का विस्तार, शहरीकरण, प्रति व्यक्ति आय में बढ़ोत्तरी जैसे कारणों से देश में दालों की खपत लगातार बढ़ी। लेकिन भ्रष्टाचार में डूबी कांग्रेसी और जातिवादी गठबंधन सरकारों के दौर में घरेलू उत्पादन पर फोकस करने के बजाए आयात के जरिए इस बढ़ती को पूरा करने का प्रचलन बढ़ा। इसका नतीजा यह हुआ कि देश में दालों का आयात तेजी से बढ़ा। मोदी सरकार ने दलहन के घरेलू उत्पादन पर फोकस किया जिसका परिणाम घरेलू उत्पादन बढ़ोत्तरी और घटते आयात के रूप में सामने आया।
अब मोदी सरकार तिलहनों के घरेलू उत्पादन पर फोकस कर रही है। गौरतलब है कि आज देश हर साल एक लाख करोड़ रुपये का खाद्य तेल आयात कर रहा है। देश में तिलहनी फसलों के उत्पादन को प्रोत्साहन देने से हर साल एक लाख करोड़ रूपये सीधे किसानों की जेब में जाएंगे जिसमें कोई घोटाला नहीं होगा। इसी तरह सब्जियों-फलों की महंगाई थामने और किसानों को उपज की वाजिब कीमत दिलाने के लिए मोदी सरकार खपत केंद्रों के पास क्लस्टर विकसित कर रही है। इससे न सिर्फ सब्जियों-फलों की बर्बादी रुकेगी बल्कि किसानों को वाजिब कीमत भी मिलेगी।
समग्रत: दूरगामी उपायों के जरिए मोदी सरकार महंगाई को काबू करने में कामयाब रही है। जैसे ही कृषि उपज की खरीद, भंडारण, विपणन का राष्ट्रीय नेटवर्क बन जाएगा वैसे ही किसानों की बदहाली दूर हो जाएगी। मोदी सरकार की यही कामयाबी विरोधियों की नींद हराम किए हुए है।
(लेखक केन्द्रीय सचिवालय में अधिकारी हैं। ये उनके निजी विचार हैं।)