2013-14 में जहां देश में बिजली की कमी 4.2 फीसदी थी, वहीं 2016-17 में यह घटकर महज 0.7 फीसदी रह गई। इतना ही नहीं, 2016-17 में पहली बार ऐसा हुआ जब भारत बिजली का शुद्ध निर्यातक बना। मोदी सरकार ने वर्ष 2022 अर्थात आजादी की 75वीं वर्षगांठ तक देश के हर घर को सातों दिन-चौबीसों घंटे रोशन करने का जो लक्ष्य रखा है, सुभाग्य योजना उस लक्ष्य की दिशा में एक अहम पड़ाव साबित होगी।
हर गांव तक बिजली पहुंचाने के महत्वाकांक्षी लक्ष्य के करीब पहुंची मोदी सरकार अब देश के हर घर को रोशन करने के लिए “सुभाग्य योजना” लाने जा रही है। इसके तहत ग्रामीण इलाकों में हर घर को 2019 तक सब्सिडी देकर बिजली कनेक्शन मुहैया कराया जाएगा। गौरतलब है कि देश के चार करोड़ घरों में अभी भी बिजली के बल्ब जलने का इंतजार है। यह संख्या यूरोप की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था जर्मनी के कुल घरों से ज्यादा है। इन घरों में रहने वाले 24 करोड़ लोग आज भी अंधेरे में जीने को अभिशप्त हैं।
2014 में विश्व बैंक ने बताया था कि भारत दुनिया की सबसे ज्यादा बिजली विहीन आबादी का घर बना हुआ है। इसी को देखते हुए नरेंद्र मोदी ने प्रधानमंत्री बनते ही बिजली क्षेत्र में सुधार के लिए समयबद्ध लक्ष्य निर्धारित किया। इसके सकारात्मक नतीजे भी मिल रहे हैं। 2013-14 में जहां देश में बिजली की कमी 4.2 फीसदी थी वहीं 2016-17 में यह घटकर महज 0.7 फीसदी रह गई। इतना ही नहीं 2016-17 में पहली बार ऐसा हुआ जब भारत बिजली का शुद्ध निर्यातक बना। मोदी सरकार ने वर्ष 2022 अर्थात आजादी की 75वीं वर्षगांठ तक देश के हर घर को सातों दिन-चौबीसों घंटे रोशन करने का जो लक्ष्य रखा है, सुभाग्य योजना उस लक्ष्य की दिशा में एक अहम पड़ाव साबित होगी।
तकरीबन हर गांव तक बिजली पहुंचने के बावजूद आज देश के 24 करोड़ लोग बिजली सुविधा से वंचित हैं तो इसके लिए 2005 में बना नियम जिम्मेदार है। इसके तहत उस गांव को विद्युतीकृत घोषित किया जाता है जहां बिजली वितरण का ढांचा मौजूद हो; स्कूल, पंचायत, स्वास्थ्य व सामुदायिक केंद्रों में बिजली पहुंच चुकी हो और गांव की कुल आबादी के 10 फीसदी परिवारों को बिजली का कनेक्शन मिल गया हो। 2014 के आंकड़ों के मुताबिक देश के औसतन 71 फीसदी घरों को बिजली मिल रही थी, जिसमें शहर और गांव दोनों शामिल थे।
चूंकि शहरी इलाकों में बिजली कनेक्शन का कवरेज बहुत ज्यादा है, अत: यह स्पष्ट है कि अंधेरे में डूबे घरों की तादाद गांवों में ज्यादा है। उस समय अनुमान लगाया गया था कि 60 फीसदी ग्रामीण परिवारों को ही बिजली सुविधा मिल रही है। हालांकि इस अनुपात में भारी क्षेत्रीय अंतर विद्यमान है। 2015-16 के राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण की रिपोर्ट के मुताबिक बिजली विहीन परिवारों की सबसे ज्यादा संख्या उत्तर प्रदेश, बिहार और असम में पाई जाती है।
स्पष्ट है, हर घर को रोशन करने की चुनौती हर गांव तक बिजली पहुंचाने की चुनौती से कहीं ज्यादा कठिन है। यह लक्ष्य तभी हासिल होगा जब ठोस जमीनी कार्रवाई की जाए। विशेषज्ञों के मुताबिक सबसे पहला काम सभी अवैध कनेक्शनों को कानूनी रूप दिया जाए। जिन परिवारों को कनेक्शन नहीं मिले हैं, उन्हें प्राथमिकता के आधार पर कनेक्शन मुहैया कराया जाए। कनेक्शन लेने की लागत घटाई जाए। ज्यादा शुरूआती लागत से कनेक्शन लेने की संख्या नहीं बढ़ पाती है।
‘दीन दयाल उपाध्याय ग्रामीण विद्युतीकरण योजना’ के तहत गरीबी रेखा से नीचे रहने वाले परिवारों को मुफ्त में कनेक्शन दिए जा रहे हैं। गरीबी रेखा से उपर रहने वालों को कम कीमत और मासिक किश्तों में कनेक्शन दिए जाएं तो हर घर तक बिजली पहुंचाने का लक्ष्य आसानी से हासिल हो जाएगा। सबसे बड़ा काम यह है कि बिजली आपूर्ति में सुधार किया जाए ताकि लोगों को बिजली कनेक्शन लेने के लिए प्रोत्साहन मिले। इसी तरह की समस्या वोल्टेज उतार-चढ़ाव की है जिसे दूर करना होगा। परंपरागत ग्रिड प्रणाली से दूरदराज के गांवों तक बिजली पहुंचाना घाटे का सौदा रहा है। इस चुनौती पर काबू पाने के लिए मोदी सरकार इन गांवों तक मिनीग्रिड के जरिए बिजली पहुंचा रही है।
उत्तर प्रदेश में बिजली व्यवस्था में सुधार के लिए योगी सरकार ने जो शुरूआत की है, वह देश को सातों दिन-चौबीसों घंटे रोशन करने के लिए मार्गदर्शक का काम करेगा। सरकार ने प्रदेश के 1.12 करोड़ बिजली विहीन परिवारों तक बिजली पहुंचाने का अभियान युद्ध स्तर पर शुरू किया है। प्रदेश भर में कैंप लगाकर बिजली कनेक्शन दिए जा रहे हैं। कनेक्शन के लिए एकमुश्त धनराशि की बजाय किश्तों में भुगतान की व्यवस्था की गई है। ग्रामीण उपभोक्ताओं के लिए सुगम संयोजन योजना के तहत एक से पांच किलोवाट के बिजली कनेक्शन हेतु 75 से 375 रूपये की राशि 16 किश्तों में जमा करानी है।
2016-17 में उत्तर प्रदेश में 170 लाख उपभोक्ता थे, जिनमें 68 लाख अर्थात 40 फीसदी उपभोक्ता बिना मीटर वाले थे। सरकार द्वारा 2019 तक सभी कनेक्शन को मीटर युक्त करने का लक्ष्य रखा गया है। इसके लिए 40 लाख स्मार्ट मीटर खरीदने का टेंडर जारी किया गया है। प्रदेश में बिजली चोरी रोकने का अभियान चलाने के साथ-साथ पुराने मीटरों की जगह डिजिटल मीटर लगाए जा रहे हैं।
प्रदेश में एक बड़ी समस्या बिजली चोरी की रही है जिसे रोकने हेतु हर जिले में बिजली थानों की स्थापना की जा रही है। बिजली वितरण व्यवस्था को दुरूस्त करने के प्रयासों के फल मिलने शुरू हो गए हैं। 2017-18 की पहली तिमाही में उत्तर प्रदेश में बिजली बिल संग्रह में 28.5 फीसदी की बढ़ोत्तरी दर्ज की गई है। पीक मौसम में मांग और आपूर्ति में अंतर 4.1 फीसदी रह गया है। स्पष्ट है कि केंद्र में मोदी सरकार द्वारा जहां हर घर में बिजली पहुंचाने के लिए विभिन्न स्तरों पर प्रयास किए जा रहे हैं, वहीं यूपी जैसे राज्य में योगी सरकार भी इस दिशा में तत्परतापूर्वक कार्य कर रही है। इन प्रयासों को देखते हुए कह सकते हैं कि शीघ्र ही देश का हर घर बिजली से रोशन होगा।
(लेखक केन्द्रीय सचिवालय में अधिकारी हैं। ये उनके निजी विचार हैं।)