बैंकिंग क्षेत्र में सख्ती बरतने एवं विविध उपायों को अमल में लाने से फंसे कर्ज की वसूली में तेजी आई है। एनपीए की राशि में 1 लाख करोड़ रूपये की कमी आई है। बैंकों में विगत 4 सालों में 4 लाख करोड़ रूपये की वसूली हुई है, जिससे खस्ताहाल बैंकिंग क्षेत्र को काफी राहत मिली है। जिस रफ्तार से भारतीय दिवाला और शोधन अक्षमता कोड (आईबीसी) की मदद से बैंकों द्वारा वसूली की जा रही है, उससे लगता है कि आगामी महीनों में बैंकों का स्वास्थ्य और भी बेहतर होगा।
सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों के स्वास्थ्य को बेहतर करने के लिए 70,000 करोड़ रुपये पुनर्पूंजीकरण के तौर पर देने का प्रस्ताव बजट में किया गया है। वित्त वर्ष 2018-19 के दौरान मोदी सरकार ने सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों को 1.6 लाख करोड़ रूपये पुनर्पूंजीकरण के तौर पर उपलब्ध कराये थे, जो अब तक में सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों को दी गई अधिकतम सहायता है। सरकार की इस पहल से 5 सार्वजनिक क्षेत्रों को “प्रॉम्प्ट करेक्टिव एक्शन” (पीसीए) फ्रेमवर्क से बाहर आने में मदद मिली है।
आईबीसी के प्रावधाओं से वसूली में आई तेजी
बैंकिंग क्षेत्र में सख्ती बरतने एवं विविध उपायों को अमल में लाने से फंसे कर्ज की वसूली में तेजी आई है। एनपीए की राशि में 1 लाख करोड़ रूपये की कमी आई है। बैंकों में विगत 4 सालों में 4 लाख करोड़ रूपये की वसूली हुई है, जिससे खस्ताहाल बैंकिंग क्षेत्र को काफी राहत मिली है। जिस रफ्तार से भारतीय दिवाला और शोधन अक्षमता कोड (आईबीसी) की मदद से बैंकों द्वारा वसूली की जा रही है, उससे लगता है कि आगामी महीनों में बैंकों का स्वास्थ्य और भी बेहतर होगा।
भ्रष्टाचार पर लगाम लगाने के लिये बजट में यह प्रावधान भी किया गया है कि कोई व्यक्ति किसी दूसरे व्यक्ति के खाते में नकदी जमा नहीं करेगा। प्रस्तावित प्रावधान से खाताधारक अपने खातों में नकदी का प्रबंधन कर सकेंगे और बेवजह अनचाही परेशानी से बच सकेंगे।
विलय से होगा फायदा
बैंकिंग क्षेत्र को और सशक्त बनाने के लिये बैंकों का विलय किया जाना प्रस्तावित है। भविष्य में केवल 8 बड़े सरकारी बैंक देश में रहेंगे। इससे बैंकों को पीसीए फ्रेमवर्क से बाहर निकलने में मदद मिलेगी। पीसीए फ्रेमवर्क में बैंकों को तभी डाला जाता है, जब भारतीय रिजर्व बैंक को लगता है कि किसी बैंक के पास जोखिम का सामना करने के लिये पर्याप्त पूंजी उपलब्ध नहीं है और उधार दिए धन से आय नहीं हो रही है।
कोई बैंक कब पीसीए फ्रेमवर्क में डाला जायेगा, इसका पता रिजर्व बैंक को कुछ निर्धारित मानकों जैसे, नकदी आरक्षी अनुपात (सीआरएआर), निवल एनपीए और सम्पत्ति पर प्राप्ति आदि के प्रदर्शन से चलता है। गौरतलब है कि जून, 2019 के अंत तक 5 सार्वजनिक क्षेत्र के बैंक पीसीए फ्रेमवर्क में थे। पीसीए फ्रेमवर्क में आने के बाद बैंक ग्राहकों को कर्ज नहीं दे पाते हैं। चूँकि, बैंकों की आय का मुख्य स्रोत कर्ज बांटना है, लिहाजा, इस पर रोक लगने से बैंकों की आय बुरी तरह से प्रभावित होती है। इसी वजह से पंजाब नेशनल बैंक और यूनियन बैंक ऑफ इंडिया को जून तिमाही में घाटा हुआ है।
5 लाख करोड़ डॉलर की अर्थव्यवस्था बनाने का लक्ष्य
बजट भाषण में वित्त मंत्री ने कहा कि भारत 5 लाख करोड़ डॉलर की अर्थव्यवस्था बनाने के लक्ष्य को हासिल कर सकता है। इसके लिये आधारभूत संरचना को मजबूत करना होगा और सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) दर को 8 प्रतिशत के स्तर पर बनाये रखना होगा। जिस रफ्तार से भारतीय अर्थव्यवस्था अभी आगे बढ़ रही है, उसके अनुसार चालू वित्त वर्ष में भारतीय अर्थव्यवस्था 3 लाख करोड़ डॉलर की बन सकती है।
वित्त मंत्री के अनुसार 5 साल पहले भारतीय अर्थव्यवस्था का आकार 1,850 अरब डॉलर का था, जो अब बढ़कर 2,700 अरब डॉलर का हो गया है। बजट भाषण में वित्त मंत्री ने कहा कि इस लक्ष्य को हासिल करने के लिए सरकार को निजी निवेश बढ़ाने, बचत एवं खपत में बढ़ोतरी, रोजगार सृजन, राजकोषीय प्रबंधन आदि उपायों का सहारा लेना होगा।
चार जुलाई को पेश किये गये आर्थिक सर्वेक्षण में वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने कहा कि वर्ष 2019 में भारत के जीडीपी में बढ़ोतरी हो सकती है। वित्त मंत्री के अनुसार चालू वित्त वर्ष में भारत ब्रिटेन को पीछे छोड़कर विश्व की पाँचवीं बड़ी अर्थव्यवस्था बन सकता है, क्योंकि दुनियाभर में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश में पिछले तीन सालों के दौरान गिरावट आने के बावजूद भारत में वित्त वर्ष 2018-19 में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश 6 प्रतिशत बढ़कर 64 अरब डालर से अधिक रहा है। हाल में प्रत्यक्ष कर में भी बढ़ोतरी हुई है। यह 6.8 लाख करोड़ रूपये से बढ़कर 11.37 लाख करोड़ रूपये हो गया है।
निष्कर्ष
कहा जा सकता है कि मोदी सरकार बैंकिंग क्षेत्र में सुधार लाने के लिये गंभीरता से प्रयास कर रही है। वह जानती है कि बिना बैंकिंग क्षेत्र में सुधार लाये भारतीय अर्थव्यवस्था को 5 लाख करोड़ डॉलर का नहीं बनाया जा सकता है। सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों का पुनर्पूंजीकरण हेतु पूँजी उपलब्ध कराने, आईबीसी के तहत वसूली में तेजी लाने और बैंकों के एकीकरण से बैंकों की सेहत में सुधार आयेगा साथ ही साथ कर्ज वितरण में तेजी आने, विविध उत्पादों की मांग में वृद्धि होने, रोजगार सृजन में बढ़ोतरी होने, बुनियादी सुविधाओं में इजाफा होने आदि से भारतीय अर्थव्यवस्था को 5 लाख करोड़ डॉलर की बनाने की दिशा में सरकार तेजी से अग्रसर होगी।