मोदी सरकार ने मेक इन इंडिया मुहिम के तहत देश को दुनिया का टॉप 5 मेडिकल डिवाइस मैनुफैक्चरिंग हब बनाने की पहल की है। इससे न सिर्फ आयात पर निर्भरता घटेगी बल्कि देशवासियों को सस्ता इलाज भी उपलब्ध होगा। इसके साथ-साथ आगे चलकर भारत बल्क दवाओं और मेडिकल उपकरणों का अग्रणी निर्यातक बनकर उभरेगा।
भले ही भारतीय डॉक्टरों का दुनिया भर में डंका बज रहा हो लेकिन बल्क दवाएं और मेडिकल उपकरण दो ऐसे क्षेत्र हैं जहां भारत की आयात पर निर्भरता बहुत अधिक है। गौरतलब है कि भारत बल्क दवाओं की अपनी जरूरतों का 70 प्रतिशत आयात करता है जिसमें सबसे ज्यादा आयात चीन से होता है।
मेडिकल उपकरणों का आयात 85 से 90 प्रतिशत तक होता है जो कि मुख्यत: अमेरिका से होता है। इसके बावजूद वोट बैंक की राजनीति करने वाली सरकारों ने इस ओर कभी ध्यान ही नहीं दिया। इसका कारण है कि सरकारों की निष्क्रियता और आयातकों की तगड़ी लॉबी ने घरेलू उत्पादन को बढ़वा देने वाली नीति बनने ही नहीं दिया।
लंबे अरसे की उपेक्षा के बाद मोदी सरकार ने इस ओर ध्यान दिया है। स्थानीय विनिर्माण को बढ़ावा देने और आयात में कमी लाने के लिए सरकार ने देश में आठ मैन्युफैक्चरिंग पार्क बनाने की अनुमति दी है जिसमें से चार में बल्क दवाओं और चार में मेडिकल उपकरणों का निर्माण होगा। बल्क दवाओं के पार्क आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, हिमाचल प्रदेश और असम में बनाए जाएंगे जबकि मेडिकल उपकरण पार्क आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, तमिलनाडु और केरल में बनाए जाएंगे। इसके लिए विशेष उद्देश्य इकाई (एसपीवी) जरूरी बुनियादी ढांचा तैयार करेगी और इन पार्कों के लिए स्वीकृति लेगी जहां कंपनियां आकर विनिर्माण इकाई लगाएंगी।
सरकार प्रत्येक बल्क दवा पार्क के लिए परियोजना लागत का 70 प्रतिशत या 100 करोड़ रूपये एकमुश्त अनुदान मुहैया कराएगी। वहीं मेडिकल उपकरण पार्कों के लिए 25 करोड़ रूपये मुहैया कराया जाएगा। इसके अलावा दवा विभाग फार्मूलेशन (मेडिसिन) विनिर्माताओं के लिए ब्याज छूट योजना भी बना रहा है।
चिकित्सा उपकरणों के वैश्विक बाजार का आकार 220 अरब डॉलर का है। कुल बाजार में 40 प्रतिशत चिकित्सीय डिस्पोजेबल्स, 18 प्रतिशत नेत्र उपकरणों, 16 प्रति इमेजिंग उपकरणों, 12 प्रतिशत निदान उपकरणों तथा 8 प्रतिशत दंत चिकित्सीय उपकरणों का हिस्सा है।
वर्तमान में भारतीय चिकित्सीय उपकरण उद्योग को लघु एवं मध्यम उद्यम श्रेणी में विभाजित किया गया है जो कि मुख्य रूप से डिस्पोजेबल्स/चिकित्सीय आपूर्ति के उत्पादों का निर्माण कर रहा है। उच्च स्तर के चिकित्सीय उपकरणों की आपूर्ति बहुराष्ट्रीय कंपनियों द्वारा की जाती है। इनमें जीई, जॉनसन एंड जॉनसन, फिलीप्स, विप्रो, एबॉट, सिमेंस, बैक्टर जैसी कंपनियां शामिल हैं।
स्पष्ट है, मोदी सरकार द्वारा बल्क दवाओं और मेडिकल उपरकणों के घरेलू विनिर्माण से बहुराष्ट्रीय कंपनियों पर निर्भरता घटेगी और हर साल हजारों करोड़ रूपये की विदेशी मुद्रा की बचत होगी। सबसे बढ़कर देशवासियों को सस्ता इलाज मिलेगा। इसके साथ-साथ आगे चलकर भारत बल्क दवाओं और मेडिकल उपकरणों का अग्रणी निर्यातक बनकर उभरेगा।
(लेखक केन्द्रीय सचिवालय में अधिकारी हैं। ये उनके निजी विचार हैं।)