पेट्रोल में एथेनॉल मिलाने की योजना दशकों से बन रही है लेकिन सरकारों की इच्छाशक्ति की कमी के चलते जमीन पर आते-आते योजनाएं दम तोड़ देती थीं। इसी का नतीजा रहा कि एथनॉल उत्पादन भारत की प्राथमिकता सूची में कभी जगह नहीं बना पाया। प्रधानमंत्री पद की शपथ लेते ही नरेंद्र मोदी ने इस ओर ध्यान देना शुरू किया जिससे एथनॉल उत्पादन में तेजी आई। अब तो एथनॉल ऊर्जा विशेषज्ञों के बीच राष्ट्रीय विमर्श का मुद्दा बन चुका है।
पेट्रोलियम पदार्थों के भारी-भरकम आयात, बढ़ते प्रदूषण, चीनी मिलों के घाटे, किसानों को गन्ना मूल्य के भुगतान में देरी जैसी समस्याओं को देखते हुए विशेषज्ञ लंबे अरसे से सुझाव देते रहे हैं कि पेट्रोल में एथनॉल मिश्रण को बढ़ाया जाए। दुर्भाग्यवश पिछली कांग्रेसी सरकारों के दौर में सत्ता पक्ष से जुड़े पेट्रोलियम आयातकों की मजबूत लॉबी ने एथनॉल उत्पादन को बढ़ावा देने के सरकारी योजनाओं को पूरी तरह लागू नहीं होने दिया।
गौरतलब है कि एथनॉल पर्यावरण मित्र ईंधन है। पेट्रोल में एथेनॉल मिलाने से पेट्रोल के उपयोग में होने वाले प्रदूषण को कम करने में मदद मिलती है। इसके इस्तेमाल से गाड़ियां 35 प्रतिशत कम कार्बन मोनोऑक्साइड का उत्सर्जन करती हैं। सल्फर डाइऑक्साइड और हाइड्रोकार्बन का उत्सर्जन भी एथेनॉल कम करता है। एथनॉल में उपलब्ध 35 प्रतिशत ऑक्सीजन के कारण यह ईंधन नाइट्रोजन ऑक्साइड के उत्सर्जन को भी कम करता है।
एथनॉल का उत्पादन मुख्यत: गन्ने से होता है लेकिन जैसे-जैसे तकनीक विकसित हो रही है वैसे-वैसे अन्य अनाजों, फसल अवशेषों से भी एथनॉल बनने लगा है। स्पष्ट है पेट्रोल में एथेनॉल मिलाने से पेट्रोल आयात पर निर्भरता कम होने, किसानों की आमदनी बढ़ने के साथ-साथ पर्यावरण प्रदूषण में भी कमी आएगी।
पेट्रोल में एथेनॉल मिलाने की योजना दशकों से बन रही है लेकिन सरकारों की इच्छाशक्ति की कमी के चलते जमीन पर आते-आते योजनाएं दम तोड़ देती थीं। इसी का नतीजा रहा कि एथनॉल उत्पादन भारत की प्राथमिकता सूची में कभी जगह नहीं बना पाया। प्रधानमंत्री पद की शपथ लेते ही नरेंद्र मोदी ने इस ओर ध्यान देना शुरू किया जिससे एथनॉल उत्पादन में तेजी आई। अब तो एथनॉल ऊर्जा विशेषज्ञों के बीच राष्ट्रीय विमर्श का मुद्दा बन चुका है।
मोदी सरकार के प्रयासों का ही नतीजा है कि 2014 में जहां 38 करोड़ लीटर एथनॉल की खरीद हो रही थी वहीं अब हर साल 320 करोड़ लीटर एथनॉल खरीदा जा रहा है। पिछले साल पेट्रोलियम कंपनियों में 21,000 करोड़ रूपये का एथनॉल खरीदा और इसका अधिकांश हिस्सा देश के किसानों की जेब तक पहुंचा।
स्पष्ट है, गन्ना किसानों को समय से भुगतान और चीनी मिलों की अतिरिक्त आमदनी का कारगर हथियार बन चुका है एथनॉल। इसी को देखते हुए मोदी सरकार ने पेट्रोल में 20 प्रतिशत एथनॉल मिलने के लक्ष्य को पांच साल पहले अर्थात 2030 के बजाए 2025 कर दिया है।
इतना ही नहीं किसानों को उनकी उपज की लाभकारी कीमत दिलाने के लिए मोदी सरकार गन्ने के साथ-साथ गेहूं, चावल, मक्का और दूसरे खाद्यान्नों से भी एथनॉल उत्पादन को मंजूरी दे दी है। इससे न सिर्फ अतिरिक्त अनाज की खपत हो जाएगी बल्कि पेट्रोलियम के आयात पर निर्भरता घटाने में भी मदद मिलेगी।
गौरतलब है कि भारत दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा तेल आयातक देश है और अपनी मांग के 85 प्रतिशत हिस्से के लिए विदेशी आपूर्तिकर्ताओं पर निर्भर है। आयात पर अत्यधिक निर्भरता के कारण भारत को कई बार दबाव का भी सामना करना पड़ता है।
समग्रत: मोदी सरकार एथनॉल उत्पादन के जरिए ऊर्जा आत्मनिर्भरता हासिल करने के साथ-साथ किसानों की आमदनी बढ़ाने, पर्यावरण प्रदूषण कम करने के बहुआयामी उपाय कर रही है।
(लेखक केन्द्रीय सचिवालय में अधिकारी हैं। वरिष्ठ टिप्पणीकार हैं। प्रस्तुत विचार उनके निजी हैं।)