मूडीज के मुताबिक राजस्व के मोर्चे पर सरकार ने माल एवं सेवा कर (जीएसटी) तथा पेट्रोलियम उत्पादों के उत्पाद शुल्क से राजस्व का जो अनुमान रखा है, उसके कुछ नीचे रहने की आशंका है, लेकिन बाद के महीनों में इसमें सुधार आने की संभावना है। मई, 2018 में जीएसटी से राजस्व प्राप्ति पहले की तुलना में बढ़ी है। निवेश और उपभोग में सुधार से इस साल की पहली छमाही में सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) की औसत वृद्धि दर 7.8 प्रतिशत रहेगी। जापान की वित्तीय सेवा क्षेत्र की कंपनी नोमूरा के अनुसार निवेश और उपभोग माँग में बढ़ोतरी से मुख्य रूप से वृद्धि दर को रफ्तार मिलेगी।
मूडीज इनवेस्टर्स सर्विस के अनुसार भारत चालू वित्त वर्ष में राजकोषीय घाटे को जीडीपी के 3.3 प्रतिशत पर रखने के लक्ष्य को हासिल कर लेगा। बजटीय लक्ष्य को पाने के लिए सरकार पूँजीगत खर्च में कटौती कर सकती है। सरकार द्वारा ऐसा पूर्व के वर्षों में किया भी गया है। चूँकि, सरकार ने कच्चे तेल के दाम में वृद्धि होने पर भी पेट्रोल एवं डीजल पर उत्पाद शुल्क में कटौती नहीं की है। इसलिये, राजकोषीय घाटे पर ज्यादा दबाव नहीं है।
गौरतलब है कि मूडीज ने 13 सालों में पहली बार पिछले साल देश की साख को बढ़ाकर स्थिर परिदृश्य के साथ बीएए 2 किया था। मूडीज के अनुसार निरंतर आर्थिक और संस्थागत सुधारों से वृद्धि की संभावना सुधरी है। रेटिंग एजेंसी के अनुसार सरकार धीरे-धीरे राजकोषीय मजबूती तथा बजटीय लक्ष्य की ओर बढ़ रही है। इस आधार पर वित्त वर्ष 2018-19 के लिये राजकोषीय घाटे के 3.3 प्रतिशत का लक्ष्य हासिल कर लिये जाने की उम्मीद जताई जा सकती है।
मूडीज के मुताबिक राजस्व के मोर्चे पर सरकार ने माल एवं सेवा कर (जीएसटी) तथा पेट्रोलियम उत्पादों के उत्पाद शुल्क से राजस्व का जो अनुमान रखा है, उसके कुछ नीचे रहने की आशंका है, लेकिन बाद के महीनों में इसमें सुधार आने की संभावना है। मई, 2018 में जीएसटी से राजस्व प्राप्ति पहले की तुलना में बढ़ी है। निवेश और उपभोग में सुधार से इस साल की पहली छमाही में सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) की औसत वृद्धि दर 7.8 प्रतिशत रहेगी। जापान की वित्तीय सेवा क्षेत्र की कंपनी नोमूरा के अनुसार निवेश और उपभोग माँग में बढ़ोतरी से मुख्य रूप से वृद्धि दर को रफ्तार मिलेगी।
देखा जाये तो चक्रीय सुधार की शुरुआत वर्ष 2017 की दूसरी छमाही से हुई है, जिसके वर्ष 2018 की पहली छमाही तक जारी रहने का अनुमान है। वर्ष 2018 की पहली छमाही के अंत में जीडीपी की औसत वृद्धि सालाना आधार पर 7.8 प्रतिशत पर पहुँच सकती है, जो अक्तूबर से दिसंबर, 2017 में 7.2 प्रतिशत थी। माना जा रहा है कि नये वित्त वर्ष में सुचारु गति से विकासात्मक गतिविधियाँ जारी रहेंगी। उम्मीद की जा रही है कि अर्थव्यवस्था की वृद्धि दर 7 प्रतिशत से बेहतर रहेगी।
वर्तमान में मुद्रास्फीति रिजर्व बैंक द्वारा तय दायरे के भीतर है। मॉनसून के सामान्य रहने का अनुमान जताया गया है। तेल कीमतों में जरूर इजाफा हुआ है, लेकिन जल्द ही इसके कम होने के आसार हैं। रुपये पर कुछ दबाव है, लेकिन मुद्रा के अधिमूल्यित होने के कारण इस दबाव को बहुत असहज नहीं माना जा सकता है। विदेशी मुद्रा भंडार में निरंतर बढ़ोतरी हो रही है। औद्योगिक उत्पादन के आंकड़ों में पहले से सुधार देखने को मिला है। नवंबर के बाद से इसमें 7 प्रतिशत से अधिक की दर से वृद्धि हो रही है, जबकि पहले यह दर आधी थी। गैर तेल निर्यात पिछले 5-6 सालों में पहली बार बढ़ा है।
बैंकों और कंपनियों की समस्याओं का समाधान करना सरकार के लिये एक बड़ी चुनौती है। नई दिवालिया प्रक्रिया के जरिये समस्या के समाधान की कोशिश की जा रही है। इस मोर्चे पर तेजी लाने के लिये अभी कुछ और समय की दरकार है। समस्या के समाधान के लिये 8 जून को मुंबई में वित्त मंत्री पीयूष गोयल ने कुछ प्रमुख बैंकों के शीर्ष प्रबंधन से चर्चा की है।
मामले में कमजोर बैंकों के एकीकरण का भी प्रस्ताव है। पिछले वित्त वर्ष के अंत में ऋण वृद्धि दर 10.3 प्रतिशत थी, जो पिछले साल की फरवरी में तकरीबन 5 प्रतिशत थी। स्पष्ट है, ऋण के मोर्चे पर बैंकों को अभी भी बहुत मेहनत करने की जरूरत है। ऐसा करने से ही विकास को बढ़ावा मिल सकता है। फिलवक्त, बैंकिंग व्यवहार, नियमन और निगरानी में सुधार की सख्त आवश्यकता है।
कहा जा सकता है कि आर्थिक क्षेत्र में अभी भी कुछ समस्याएँ हैं, लेकिन उनके समाधान के लिये सरकार निरंतर कोशिश कर रही है। सरकार की कोशिशों का ही नतीजा है कि विदेशी एजेंसियां जैसे, मूडीज, विश्व बैंक, अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा बैंक एवं अन्य संस्थान भारत में चल रहे आर्थिक सुधारों की तारीफ़ कर रहे हैं। साथ ही, भारत के विकास की गति में और भी तेजी आने का अनुमान लगा रहे हैं।
(लेखक भारतीय स्टेट बैंक के कॉरपोरेट केंद्र मुंबई के आर्थिक अनुसन्धान विभाग में कार्यरत हैं। ये उनके निजी विचार हैं।)