पाकिस्तान के प्रति शानदार कूटनीति, जिसने उसे न केवल एशिया बल्कि पूरे विश्व में भी अलग-थलग करके रख दिया है, का परिचय देने के बाद बाद अब मोदी सरकार चीन के प्रति भी पूरी तरह से कठोर रुख अख्तियार करने के मूड में दिख रही है। अब भारत दक्षिणी चीन सागर में चीन की मनमानियों पर लगाम लगाने के लिए कमर कस चुका है। इसीलिए चीन के बड़े प्रतिद्वंद्वी जापान के साथ मिलकर दक्षिणी चीन सागर में चीनी कारिस्तानियों को उजागर करने जा रहा है।
मोदी सरकार ने पहले चीन से मधुर संबंधों के लिए प्रयत्न कर एक अच्छे पड़ोसी का धर्म निभाया। लेकिन, अब जब वो अपनी बदमाशियों से बाज नहीं आ रहा तो सरकार ने उसके प्रति कठोर रुख का परिचय देना आरम्भ कर दिया है। अपनेकठोर रुख के जरिये मोदी सरकार ने चीन को यह बताने की कोशिश की है कि ये भारत सन 1962 का कमजोर भारत नहीं है और न ही अभी देश में वैसी कमजोर व नीतिहीन सरकार ही है, जिसका फायदा उठाकर तब चीन जीत गया था। आज देश में एक मजबूत सरकार है, अतः अब अगर वो भारत की ईंट उछालेगा तो इसका जवाब उसे पत्थर से मिलेगा।
प्रधानमंत्री मोदी की आगामी जापान यात्रा के दौरान दोनों देशों के प्रधानमंत्री साझा बयान जारी कर दक्षिणी चीन सागर में चीनी कारिस्तानियों का विरोध करते हुए उसकी तरफ विश्व बिरादरी का ध्यान आकर्षित करेंगे। यह भी स्पष्ट करेंगे कि कैसे दक्षिण चीन सागर पर चीन न केवल अंतरराष्ट्रीय पंचाट के फैसले की अवहेलना कर रहा है बल्कि क्षेत्रीय स्थायित्व के लिए खतरा भी बन रहा है। भारत का यह रुख निश्चित तौर पर चीन की परेशानी बढ़ाने वाला होगा और ये उसे वैश्विक रूप से दबाव की स्थिति में भी लाएगा। दरअसल, एनएसजी से लेकर मसूद अज़हर तक चीन के भारत के प्रति असहयोगी रुख को देखते हुए अब भारत ने भी चीन को खुलकर जवाब देने का मन बना लिया है तथा उसके प्रति अब कठोर रुख अख्तियार करने लगा है। दक्षिणी चीन सागर मामले में जापान के साथ जाना भी भारत के इसी कठोर रुख की ही एक कड़ी है।
इसके अलावा अभी हाल ही में भारत सरकार ने अरुणाचल में चीनी सीमा पर ब्रह्मोस मिसाइलों की तैनाती को मंजूरी दे दी थी, जिसका जल्द ही क्रियान्वयन भी हो जाएगा। ब्रह्मोस की रेंज 290 किमी है, मगर इसकी गति लगभग एक किमी प्रति सेकेण्ड है। यह गति ही चीन के लिए समस्या है, क्योंकि चीन के पास इससे अधिक गति वाली किसी मिसाइल के होने की बात अभी सामने नहीं आई है। ऊपर से इस मिसाइल को बहुत जल्दी छोड़ा जा सकता है। इसके अलावा अरुणाचल सीमा से ब्रह्मोस के जरिये चीन के तमाम क्षेत्र भारत की जद में होंगे। साथ ही, फ़्रांस से ख़रीदे गए रफाल विमान जो कुछ समय में भारत को प्राप्त हो जाएंगे, की तैनाती भी चीनी सीमा के निकट करने जैसी बातें भी सामने आई हैं।
स्पष्ट है कि मोदी सरकार ने पहले चीन से मधुर संबंधों के लिए प्रयत्न कर एक अच्छे पड़ोसी का धर्म निभाया। लेकिन, अब जब वो अपनी बदमाशियों से बाज नहीं आ रहा तो सरकार ने उसके प्रति कठोर रुख का परिचय देना आरम्भ कर दिया है। अपने उक्त निर्णयों से मोदी सरकार ने चीन को यह बताने की कोशिश की है कि ये भारत सन 1962 का कमजोर भारत नहीं है और न ही अभी देश में वैसी कमजोर व नीतिहीन सरकार ही है, जिसका फायदा उठाकर तब चीन जीत गया था। आज देश में एक मजबूत सरकार है, अतः अब अगर वो भारत की ईंट उछालेगा तो इसका जवाब उसे पत्थर से मिलेगा।
(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं। ये उनके निजी विचार हैं।)