देश के समूचे परिवहन तंत्र को बिजली आधारित करने की नीति पर काम कर रही मोदी सरकार

भारत अपनी जरूरत का 80 फीसदी पेट्रोलियम पदार्थ आयात करता है। ऐसे में परिवहन क्षेत्र में हो रही बिजली क्रांति से न केवल आयात पर निर्भरता घटेगी बल्‍कि पर्यावरण प्रदूषण में भी कमी आएगी। नीति आयोग की रिपोर्ट के मुताबिक इलेक्‍ट्रिक वाहनों के इस्‍तेमाल से 2030 तक सड़क परिवहन में खपत होने वाली ऊर्जा में 64 फीसदी और कार्बन उत्‍सर्जन में 37 फीसदी की कमी आएगी। स्‍पष्‍ट है, बिजली से चलने वाले वाहन अर्थव्‍यवस्‍था के साथ-साथ पर्यावरण के लिए भी मुफीद साबित होंगे।

हर गांव तक बिजली पहुंचाने के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अब देश के समूचे परिवहन तंत्र को पेट्रोल-डीजल के बजाय बिजली आधारित करने की महत्‍वाकांक्षी योजना पर काम कर रहे हैं। रेल लाइनों का विद्युतीकरण और 2030 के बाद पेट्रोल-डीजल कारों की बिक्री पर प्रतिबंध इसी योजना के अहम पड़ाव हैं। गौरतलब है कि सौ साल लंबे सफर के बाद वाहन उद्योग अब आंतरिक दहन वाले इंजन की जगह लीथियम ऑयन बैटरी से चलने वाले इलेक्‍ट्रिक वाहन की ओर बढ़ रहा है।

दुनिया भर की दिग्‍गज ऑटोमोबाइल कंपनियों ने पेट्रोल-डीजल वाहनों से तौबा करना शुरू कर दिया है। इसी को देखते हुए मोदी सरकार वाहन तकनीक में हो रहे परिवर्तन के साथ कदमताल कर रही है। यदि भारत इस वैश्‍विक मुहिम में पिछड़ता है, तो न सिर्फ वाहन उद्योग व निर्यात बल्‍कि 30 अरब डॉलर सालाना राजस्‍व देने वाला घरेलू कल-पुर्जा उद्योग भी पिछड़ जाएगा।

गौरतलब है कि पूर्ववर्ती सरकारों द्वारा वक्‍त पर नीतिगत बदलाव न करने का ही नतीजा है कि आज भारत सोलर सेल, वैफर्स और इलेक्‍ट्रानिक उपरकणों का सबसे बड़ा आयातक बना हुआ है। यदि केवल इलेक्‍ट्रानिक सामानों की बात की जाए तो भारत का सालाना आयात 100 अरब डॉलर से ज्‍यादा का है। इसमें सिमकार्ड,सेट टॉप बॉक्‍स, एलसीडी, एसी, माइक्रोवेव, वाशिंग मशीन, म्‍यूजिक सिस्‍टम आदि शामिल हैं। यह आयात पेट्रोलियम पदार्थ और सोना के बाद देश का तीसरा सबसे बड़ा आयात है।

सांकेतिक चित्र

अब से मात्र 13 साल बाद तक पूरे परिवहन ढांचे को विद्युतीकृत करना आसान काम नहीं है, लेकिन बिजली उत्‍पादन में जिस रफ्तार से कामयाबी मिल रही है, उससे यह लक्ष्‍य असंभव भी नहीं दिख रहा। 2014 में जब प्रधानमंत्री ने 2022 तक एक लाख मेगावाट सौर उर्जा पैदा करने का लक्ष्‍य रखा था, तो बहुत से लोगों ने इस पर आश्‍चर्य व्‍यक्‍त किया था। हालांकि शुरू में इसमें धीमी प्रगति हुई, लेकिन बाद में इसने रफ्तार पकड़ लिया।

गौरतलब है कि 2015 में जहां सौर ऊर्जा में महज 2133 मेगावाट की बढोत्‍तरी दर्ज की गई, वहीं 2017 में इसके 10,000 मेगावाट से ज्‍यादा की वृद्धि का अनुमान है। इसे देखते हुए अगले चार वर्षों में सौर ऊर्जा में 84,000 मेगावाट बढ़ोत्‍तरी का लक्ष्‍य असंभव नहीं रह गया है। सोलर पैनल में हो रही तकनीकी उन्‍नति और सौर ऊर्जा की घटती लागत को देखते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 2030 तक सौर ऊर्जा के लक्ष्‍य को बढ़ाकर 2,50,000 मेगावाट कर दिया है। इसी तरह की प्रगति बिजली उत्‍पादन के अन्‍य क्षेत्रों में भी हो रही है। संचरण व वितरण हानि कम करने में भी उल्‍ल्‍ेखनीय सफलता मिली है। स्‍पष्‍ट है कि देश में बिजली किल्‍लत अब इतिहास के पन्‍नों में दफन होने वाली है।

अधिक से अधिक लोग पेट्रोल-डीजल के बजाय बिजली से चलने वाले वाहन अपनाएं, इसके लिए सरकार खुद पहल कर रही है। हाल ही में सरकार ने टाटा मोटर्स से 10,000 इलेक्‍ट्रिक वाहन खरीदने का समझौता किया है। सरकार की योजना है कि अगले पांच वर्षों के भीतर 50 फीसदी सरकारी वाहन बिजली से चलने लगें। बिजली मंत्रालय के मुताबिक इस दिशा में सबसे बड़ी बाधा कीमत है, लेकिन एलईडी बल्‍ब का उदाहरण सरकार के लिए प्रेरणा का काम कर रहा है।

गौरतलब है कि शुरू में एलईडी बल्‍ब बहुत महंगे पड़ते थे, लेकिन जब देश में इनका बड़े पैमाने पर उत्‍पादन होने लगा तब इनकी कीमतों में तेजी से कमी आई। इसी तरह बैटरी रिक्‍शा व सोलर पंप को मिल रही लोकप्रियता भी सरकार का उत्‍साह बढ़ा रहे हैं। फिर लीथियन ऑयन आधारित बैटरी की कीमतों में गिरावट से इलेक्‍ट्रिक वाहनों की लागत कम हो रही है। दूसरी ओर कठोर उत्‍सर्जन मानकों के कारण पेट्रोल-डीजल वाहनों की कीमत लगातार बढ़ रही है।

सांकेतिक चित्र

मौजूदा अनुसंधान को देखें तो अगले पांच वर्षों में डीजल-पेटोल व बिजली से चलने वाले वाहनों की लागत लगभग एक समान हो जाएगी। स्‍पष्‍ट है, यदि भारत ढांचागत बदलाव नहीं करता तो उसे बड़े पैमाने पर इलेक्‍ट्रिक वाहन व संबंधित कल-पुर्जा आयात करना पड़ेगा। जर्मनी, चीन, अमेरिका जैसे देश पेट्रोल-डीजल की जगह इलेक्‍ट्रिक वाहन पर फोकस कर चुके हैं। इन देशों में वाहन निर्माताओं को 30-40 फीसदी सब्‍सिडी मिल रही है। भारत में इतनी सब्‍सिडी संभव नहीं है। इसलिए उसे समय पर कदम उठाना पड़ेगा।

2030 तक पेट्रोल-डीजल वाली कारों की बिक्री पर पूरी तरह प्रतिबंध लगाने की नीति तभी कामयाब होगी जब बैटरी और चार्जिंग संबंधी आधारभूत ढांचा का विकास हो जाए। भारत का संभावित बैटरी बाजार 40 से 55 अरब डॉलर का है, जिसे वह आयात के सहारे पूरा नहीं कर पाएगा। स्‍पष्‍ट है, देश को बैटरी तकनीक में आत्‍मनिर्भरता हासिल करनी ही होगी। इसी तरह देश भर में वाहन चार्जिंग संबंधी ढांचा बनाना होगा। इस साल नागपुर में पहला चार्जिंग स्‍टेशन स्‍थापित किया गया।

इलेक्‍ट्रिक वाहनों की बढ़ती मांग को देखते हुए एनटीपीसी देश भर में चार्जिंग स्‍टेशन बनाने की दिशा में काम कर रही है। महिंद्रा एंड महिंद्रा का बंगलूर में बैटरी असेंबलिंग प्‍लांट है, अब कंपनी चाकन (महाराष्‍ट्र) में एक नया प्‍लांट लगा रही है जहां हर साल 60,000 इलेक्‍ट्रिक वेहिकल निकलेंगे। टाटा मोटर्स अपनी दो सस्‍ती कारों नैनो और टियागो के इलेक्‍ट्रिक संस्‍करण निकाल रही है। टेक्‍सला कंपनी इसी साल बिजली से चलने वाली कार लांच करने की तैयारी में है। छह से ज्‍यादा शहरों और राज्‍यों में या तो पहले से ही ई-बसें चल रही हैं या वे इस दिशा में बहुत आगे बढ़ चुके हैं। कर्नाटक सरकार हाल ही में इलेक्‍ट्रिक वाहन नीति लाई है जो सार्वजनिक परिवहन में इलेक्‍ट्रिक वाहन चलाने वाला पहला राज्‍य है।

भारत अपनी जरूरत का 80 फीसदी पेट्रोलियम पदार्थ आयात करता है। ऐसे में परिवहन क्षेत्र में हो रही बिजली क्रांति से न केवल आयात पर निर्भरता घटेगी बल्‍कि पर्यावरण प्रदूषण में भी कमी आएगी। नीति आयोग की रिपोर्ट के मुताबिक इलेक्‍ट्रिक वाहनों के इस्‍तेमाल से 2030 तक सड़क परिवहन में खपत होने वाली ऊर्जा में 64 फीसदी और कार्बन उत्‍सर्जन में 37 फीसदी की कमी आएगी।

स्‍पष्‍ट है, बिजली से चलने वाले वाहन अर्थव्‍यवस्‍था के साथ-साथ पर्यावरण के लिए भी मुफीद साबित होंगे। इसी प्रकार इलेक्‍ट्रिक वाहन पेरिस जलवायु समझौते की शर्तों के अनुपालन में भी मददगार बनेंगे। इतना ही नहीं इलेक्‍ट्रिक वाहनों के साथ आने वाली स्‍वचालन तकनीक से सड़क दुर्घटनाओं में भी कमी आएगी। स्‍पष्‍ट है मोदी सरकार ने जो कदम उठाया है वह देश में अहम बदलाव लाने वाला साबित होगा।

(लेखक केन्द्रीय सचिवालय में अधिकारी हैं। ये उनके निजी विचार हैं।)