श्रम एवं रोजगार मंत्री संतोष कुमार गंगवार ने ‘श्रमिकों के हितों से जुड़े ‘व्यावसायिक सुरक्षा, स्वास्थ्य एवं कार्यस्थल स्थिति, 2019 विधेयक’ को 23 जुलाई को लोक सभा में पेश किया है। इस विधेयक के प्रावधानों के मुताबिक नियोक्ता किसी भी श्रमिक की लिखित सहमति के बिना उससे ओवरटाइम नहीं करा पायेगा। विधेयक के प्रस्ताव के मुताबिक केंद्र या राज्य सरकार एक अधिसूचना के जरिये ओवरटाइम की अवधि निर्धारित कर सकती है। इससे राज्य सरकारें अपने सुविधानुसार ओवरटाइम की अवधि निर्धारित कर सकती हैं। विधेयक में कहा गया है कि अगर किसी श्रमिक से ओवरटाइम कराया जाता है तो उसे दोगुना वेतन देना होगा, जिसमें मूल वेतन, महंगाई भत्ता आदि शामिल होंगे।
श्रम अधिकार कार्यकर्ता रॉबर्ट ओवेन ने श्रमिकों के लिये 888 मॉडल पेश किया था, जिसके अनुसार एक श्रमिक 8 घंटे काम करता है, 8 घंटे आराम करता है और 8 घंटे अन्य कार्य करता है। इसके ठीक उलट ई-कॉमर्स कंपनी अलीबाबा के संस्थापक जैक मा ने 996 मॉडल पेश किया, जिसके अनुसार श्रमिक को सप्ताह में 6 दिन सुबह 9 बजे से रात के 9 बजे तक काम करना चाहिये।
हालाँकि, काम करने के इस मॉडल की अनेक देशों में आलोचना की जा रही है। कुछ लोगों ने ऐसे कार्य संस्कृति को अमानवीय बताया। जापान, चीन आदि देशों में तो ज्यादा काम करने की वजह से श्रमिकों की मौत हो रही है। वहाँ, श्रमिक काम से उपजे तनाव से जुड़ी बीमारियों से मर रहे हैं या काम के भारी दबाव के चलते आत्महत्या कर रहे हैं। गौरतलब है कि जापान में 4 में से 1 कंपनी में कार्यरत श्रमिक महीने में 80 घंटे से अधिक काम करते हैं।
भारत में भी 996 मॉडल कुछ कंपनियों को पसंद आ रहा है। यूबीएस के एक अध्ययन के मुताबिक मुंबई के निवासी साल में औसतन 3,315 घंटे काम करते हैं, जबकि पेइचिंग में एक श्रमिक साल में औसतन 2,096 घंटे काम करता है। एक रिपोर्ट से यह भी पता चलता है कि भारत के लोग सबसे कम छुट्टियां लेते हैं। सबसे कम छुट्टियां लेने वाले देशों की सूची में भारत वर्ष 2017 में 5वें स्थान पर था, लेकिन वर्ष 2018 में वह शीर्ष पर आ गया। इस सर्वे के मुताबिक 68 प्रतिशत लोगों ने वर्ष 2018 में कामकाज से जुड़ी व्यस्तताओं के चलते या तो छुट्टियों पर जाने का कार्यक्रम स्थगित कर दिया या वे छुट्टी पर नहीं गये।
शोधों से पता चलता है कि सप्ताह में 50 घंटे से अधिक काम करने वाले श्रमिक की उत्पादकता घट जाती है और 55 घंटे से अधिक काम करने पर उत्पादकता में और भी कमी आ जाती है। अगर कोई कर्मचारी सप्ताह में 70 घंटे काम करता है तो आखिरी 15 घंटों में उसकी उत्पादकता शून्य के बराबर हो जाती है। इन शोध परिणामों से साफ हो जाता है कि कारखाने या कार्यालय में देर तक बैठने का यह मतलब नहीं है कि श्रमिक उत्पादक काम कर रहे हैं। देखा गया है कि ऐसे श्रमिक देर रात तक सिर्फ निरर्थक कार्य करते हैं।
नई-नई तकनीकों के आने की वजह से श्रमिकों की स्थिति और भी ज्यादा खराब हुई है। आजकल बॉस का कभी भी फोन या मेल या व्हाट्सएप आ जाता है और अपेक्षा की जाती है कि श्रमिक निर्देश का अविलंब पालन करें। हालाँकि, बदलते परिवेश में कुछ कंपनियां तकनीक की नकारात्मक्ता को समझते हुए सरकार मानव संसाधन के अनुकूल नीति बना रही है। हाँ, पर सवाल का उठना लाजिमी है कि काम करने का कौन सा मॉडल अच्छा है, 996 या फिर 888॰ आज श्रमिक बॉस को खुश करने के लिये 24 घंटे काम करने की नीति पर काम कर रहे हैं।
इन दो तरह की कार्य संस्कृतियों के बीच श्रम एवं रोजगार मंत्री संतोष कुमार गंगवार ने ‘श्रमिकों के हितों से जुड़े ‘व्यावसायिक सुरक्षा, स्वास्थ्य एवं कार्यस्थल स्थिति, 2019 विधेयक’ को 23 जुलाई को लोक सभा में पेश किया है। इस विधेयक के प्रावधानों के मुताबिक नियोक्ता किसी भी श्रमिक की लिखित सहमति के बिना उससे ओवरटाइम नहीं करा पायेगा। विधेयक के प्रस्ताव के मुताबिक केंद्र या राज्य सरकार एक अधिसूचना के जरिये ओवरटाइम की अवधि निर्धारित कर सकती है। इससे राज्य सरकारें अपने सुविधानुसार ओवरटाइम की अवधि निर्धारित कर सकती हैं। विधेयक में कहा गया है कि अगर किसी श्रमिक से ओवरटाइम कराया जाता है तो उसे दोगुना वेतन देना होगा, जिसमें मूल वेतन, महंगाई भत्ता आदि शामिल होंगे।
हालाँकि, उद्योगों के मालिकों ने मांग की थी कि सरकार को ओवरटाइम से संबंधित प्रावधानों को बाजार की शक्तियों पर छोड़ देना चाहिए। राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय द्वारा वित्त वर्ष 2017-18 के लिये जारी सामयिक श्रम बल सर्वेक्षण के अनुसार देश में अधिकांश श्रमिक हर सप्ताह 48 घंटे से अधिक काम करते हैं, जो अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन द्वारा निर्धारित कार्यावधि से अधिक है।
सच कहा जाये तो मौजूदा समय में भारत में मानव संसाधन का तार्किक तरीके से इस्तेमाल नहीं किया जा रहा है, जिसके कारण कंपनियाँ अपेक्षित लक्ष्य को हासिल नहीं कर पा रही हैं। साथ ही उन्हें मानव संसाधन के ऊपर ज्यादा खर्च करना पड़ रहा है। इस वजह से श्रमिकों का भी शोषण हो रहा है। देश में संगठित क्षेत्र में भी श्रमिकों की स्थिति बहुत अच्छी नहीं है। श्रमिक बिना काम के देर रात तक कार्यालय में बैठे रहते हैं। इस क्षेत्र में श्रमिक बंधुआ मजदूर की तरह कार्य कर रहे हैं। ऐसे में प्रस्तावित श्रम विधेयक के कानून बनने से देश के संगठित और असंगठित क्षेत्र में श्रमिकों के हालात बेहतर होंगे, ऐसी उम्मीद की जा सकती है।