जिस देश में चुनावी वायदों को अगले चुनाव तक के लिए भुला दिया जाता हो, वहां कैबिनेट की पहली बैठक में ही चुनावी वायदे को पूरा करने का समयबद्ध कार्यक्रम तय कर दिया जाए तो इसे आश्चर्य ही माना जाएगा। भारतीय जनता पार्टी ने 17वीं लोकसभा के चुनाव से पहले जारी संकल्प पत्र में वादा किया था कि सत्ता में वापसी पर जल प्रबंधन के लिए नए मंत्रालय का गठन किया जाएगा। सत्ता में आते ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने चुनावी वादे को अमलीजामा पहनाते हुए जल संसाधन, नदी विकास और गंगा संरक्षण मंत्रालय के साथ-साथ पेयजल और स्वच्छता मंत्रालय का विलय कर नए जलशक्ति मंत्रालय का गठन किया।
देश में समाजवादी चिंतक डॉक्टर राम मनोहर लोहिया का नाम लेकर राजनीति करने वाले नेताओं-दलों की कमी नहीं है लेकिन लोहिया जी के सपनों को साकार करने का श्रेय तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को ही जाता है। लोहिया जी ने कहा था देश की महिलाओं की दो समस्याएं हैं- पहला शौचालय और दूसरा पानी की। अपने पहले कार्यकाल में मोदी ने महिलाओं को शौचालय उपलब्ध करा दिया। गौरतलब है कि 2014 में जहां 33 फीसद परिवारों तक शौचालय सुविधा थी वहीं 2019 में यह अनुपात बढ़कर 99 फीसद तक पहुंच गया। अब प्रधानमंत्री का जोर हर गांव तक पाइपलाइन से साफ पानी पहुंचाने पर है।
जिस देश में चुनावी वायदों को अगले चुनाव तक के लिए भुला दिया जाता हो, वहां कैबिनेट की पहली बैठक में ही चुनावी वायदे को पूरा करने का समयबद्ध कार्यक्रम तय कर दिया जाए तो इसे आश्चर्य ही माना जाएगा। भारतीय जनता पार्टी ने 17वीं लोकसभा के चुनाव से पहले जारी संकल्प पत्र में वादा किया था कि सत्ता में वापसी पर जल प्रबंधन के लिए नए मंत्रालय का गठन किया जाएगा।
सत्ता में आते ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने चुनावी वादे को अमलीजामा पहनाते हुए जल संसाधन, नदी विकास और गंगा संरक्षण मंत्रालय के साथ-साथ पेयजल और स्वच्छता मंत्रालय का विलय कर नए जलशक्ति मंत्रालय का गठन किया। मंत्रालय ने अपनी पहली ही बैठक में 2024 तक देश के हर घर तक “नल से जल” पहुंचाने का महत्वाकांक्षी लक्ष्य तय कर दिया।
अगले पांच साल में हर घर को नल से जल मुहैया कराने के लिए मोदी सरकार ने जल शक्ति अभियान शुरू किया है। संचय जल, बेहतर कल थीम के साथ शुरू होने वाल जल शक्ति अभियान दो चरणों में लागू होगा। पहला चरण एक जुलाई से 15 सितंबर तक चलेगा जबकि दूसरा चरण एक अक्टूबर से 30 नवंबर तक होगा। सरकारी ने पानी की कमी का सामना कर रहे 255 जिलों के लिए प्रभारी अधिकारियों की नियुक्ति कर दी है। जमनी स्तर पर अभियान सुचारू रूप से चले इसके लिए ब्लॉक स्तर पर भी अधिकारियों की टीम तैनात की जा रही है।
जिस देश में 82 फीसद ग्रामीण परिवारों की साफ पेयजल की पहुंच न हो वहां पांच साल के अंदर 14 करोड़ घरों तक नल से जल पहुंचाना असंभव नहीं, तो मुश्किल कार्य जरूर है। इसका कारण है कि देश के ग्रामीण इलाकों में स्वच्छ पेयजल की स्थिति बेहद गंभीर है। सरकारी आंकड़ों के मुताबिक देश के 22 फीसद ग्रामीण परिवारों को पानी लाने के लिए आधा किलोमीटर और इससे अधिक दूर पैदल चलना पड़ता है। इसमें से अधिकतर बोझ महिलाओं को ढोना पड़ता है।
गांवों में 15 फीसद परिवार बिना ढके कुओं पर निर्भर हैं तो अन्य लोग दूसरे अपरिष्कृत पेयजल संसाधनों जैसे नदी, झरने, तालाबों आदि पर निर्भर करते हैं। महज 18 फीसद परिवारों तक ही पाइपलाइन से स्वच्छ पेयजल की सुविधा है। उत्तर प्रदेश, बिहार, पश्चिम बंगाल, छत्तीसगढ़ और ओडिशा जैसे कुछ राज्यों में जलापूर्ति की स्थिति बेहद खराब है जहां पाइलाइन से आपूर्ति 5 प्रतिशत से भी कम है।
अभी देश के एकमात्र राज्य सिक्किम के 99 फीसद घरों में नलों से जलापूर्ति की जाती है। इसके बाद गुजरात का स्थान है जहां 75 फीसद लोगों को पाइपलाइन से पेयजल मिलता है। जलापूर्ति की इन भयावह स्थितियों के बावजूद कई राज्य सरकारें केंद्र सरकार द्वारा विभिन्न राष्ट्रीय ग्रामीण पेयजल कार्यक्रम के तहत आवंटित धनराशि का भी उपयोग नहीं कर पाती हैं।
आजादी के बाद गांवों में पेयजल पहुंचाने की जो योजनाएं बनी वे सब कांग्रेसी करप्शन की भेंट चढ़ गईं। ग्रामीण इलाकों में पेयजल की समस्या दूर करने के लिए भारत सरकार ने पहला ठोस प्रयास 1986 में किया जब राष्ट्रीय पेयजल मिशन की शुरूआत की गई। आगे चलकर इसका नाम बदलकर राजीव गांधी राष्ट्रीय पेयजल मिशन कर दिया गया। इस कार्यक्रम को अपेक्षित सफलता न मिलने पर 2009 में राष्ट्रीय ग्रामीण पेयजल कार्यक्रम शुरू हुआ लेकिन राजनीतिक-प्रशासनिक इच्छाशक्ति की कमी के चलते इसे भी सफलता नहीं मिली।
2014 में मोदी सरकार ने राष्ट्रीय ग्रामीण पेयजल कार्यक्रम को पुनर्गठित करते हुए इसे परिणामोन्मुखी और प्रतिस्पर्धी बनाया। इसका नतीजा यह हुआ कि जहां 2013-14 में गांवों में पाइपलाइन के जरिए पानी पहुंचाने की वृद्धि दर 12 फीसद थी, वहीं 2017-18 में बढ़कर 17 फीसद हो गई।
इस कार्यक्रम के तहत फरवरी 2017 में राष्ट्रीय जल गुणवत्ता उप योजना शुरू की गई। इसमें 2020 तक आर्सेनिक और फ्लोराइड प्रभावित 28000 बस्तियों को साफ पानी देने के लिए योजना चल रही है। इसके अलावा 2018-19 से 2022-23 तक पांच वर्षों के लिए विश्व बैंक के सहयोग से भूजल प्रबंधन के लिए 6000 करोड़ रूपये की लागत से अटल भूजल योजना लागू की गई। इसमें उन इलाकों को फोकस किया जा रहा है जहां भूजल का अतिदोहन किया गया है।
राजनीतिक-प्रशासनिक प्रतिबद्धता और सतत निगरानी से हर घर तक नल से जल पहुंचाने में सरकार भले ही कामयाब हो जाए लेकिन इन नलों से जलापूर्ति होती रहे इसके लिए अलग से प्रयास करने होंगे। गौरतलब है कि देश में औसत 117 सेंटीमीटर बारिश होती है जिसमें महज 6 प्रतिशत का भंडारण हो पाता है। इसके अलावा कई तरह की भौगोलिक, तकनीकी और आर्थिक कठिनाइयां आएंगी जैसे ग्रामीण इलाकों में वोल्टेज के उतार-चढ़ाव से मोटर की खराबी, पाइपलाइन का रखरखाव, पानी का लीकेज आदि।
इसी को देखते हुए नल से जल को पूरा करने के लिए सरकार ने लचीला दृष्टिकोण अपनाने का निश्चय किया है। इसके तहत भूजल और सतही जल दोनों का ही इस्तेमाल किया जाएगा जो क्षेत्र विशेष की परिस्थितियों पर निर्भर करेगा। सबसे बढ़कर इस योजना में आपूर्ति में संतुलन बनाए रखने के लिए जल संरक्षण पर जोर दिया जाएगा। जाहिर है, सरकार हर घर तक पानी की पहुँच सुनिश्चित करने के लिए लगी है और उम्मीद है कि आने वाले समय में इस लक्ष्य को प्राप्त भी कर लिया जाएगा।