मोदी सरकार इस कड़वी हकीकत को जानती है कि जब तक बिजली बचाने का कारगर उपाय नहीं किया जाता तब तक सभी को बिजली मुहैया कराने का लक्ष्य हासिल करना कठिन होगा। इसीलिए सरकार ने 5 जनवरी, 2015 को बिजली बचाने का राष्ट्रीय अभियान शुरू किया, जिसे उजाला नाम दिया गया। इसके तहत परंपरागत बल्बों व सीएफएल की जगह एलईडी बल्ब दिए जा रहे हैं, जो कि 80 फीसदी कम बिजली खपत करते हैं। ऊर्जा दक्ष बल्ब और उपकरणों के वितरण का दायित्व एनर्जी एफिशिएंसी सर्विसेज लिमिटेड (ईईएसएल) को सौंपा गया है। पहले जो एलईडी बल्ब 300 से 350 रूपये का मिलता था, वह अब 50 रूपये में मिल रहा है। उजाला योजना शुरू होने के बाद से अब तक 28 करोड़ से ज्यादा एलईडी बल्बों का वितरण किया गया है।
आजादी के बाद अन्य क्षेत्रों की भांति बिजली क्षेत्र का विकास भी विसंगतिपूर्ण रहा। गुणवत्तापूर्ण विद्युत् आपूर्ति हो या प्रति व्यक्ति खपत हर मामले में जमकर कागजी खानापूर्ति की गई। सबसे ज्यादा भेदभाव तो गांवों के साथ किया गया। बिजलीघर भले ही गांवों में लगे हों, लेकिन इनकी चारदीवारी के आगे अंधेरा ही छाया रहा। दूसरी ओर यहां से निकलने वाले खंभों व तारों के जाल से शहरों का अंधेरा दूर हुआ। इसी तरह उस गांव को विद्युतीकृत घोषित कर दिया गया जहां बिजली का एक खंभा लग गया हो। यही कारण है कि तकरीबन सभी गांवों तक बिजली पहुंच जाने के सरकारी दावों के बावजूद 30 करोड़ लोग अंधेरे में जीने को अभिशप्त हैं।
इन्हीं विडंबनाओं को देखते हुए प्रधानमंत्री बनने के बाद नरेंद्र मोदी ने बिजली क्षेत्र के सर्वांगीण विकास को प्राथमिकता देना आरम्भ किया। बिजली की मांग व आपूर्ति की खाई कम करने के लिए उत्पादन बढ़ाने के साथ-साथ ग्रामीण विद्युतीकरण का समयबद्ध लक्ष्य निर्धारित किया गया। इतना ही नहीं, अब सरकार देश के हर घर को सातों दिन-चौबीसों घंटे रोशन करने की मुहिम पर काम कर रही है।
हमारे देश की एक विडंबना यह रही कि यहां बिजली उत्पादन पर तो जोर दिया गया, लेकिन बिजली बचाने का अभियान नारा बनकर रह गया। इसके लिए जागरूकता का अभाव और राजनीतिक-प्रशासनिक इच्छाशक्ति की कमी जैसे कारण जिम्मेदार रहे। इसी का नतीजा है कि देश में बिजली की बरबादी बहुत ज्यादा होती है। जिन राज्यों में किसानों को मुफ्त में बिजली दी जा रही है, वहां उसका बड़े पैमाने पर दुरुपयोग होता है। देश में बिजली से चलने वाले उपकरणों, मशीनरी आदि को ऊर्जा दक्ष न बनाने से बिजली की खपत बहुत अधिक होती है।
मोदी सरकार इस कड़वी हकीकत को जानती है कि जब तक बिजली बचाने का कारगर उपाय नहीं किया जाता तब तक सभी को बिजली मुहैया कराने का लक्ष्य हासिल करना कठिन होगा। इसीलिए सरकार ने 5 जनवरी, 2015 को बिजली बचाने का राष्ट्रीय अभियान शुरू किया, जिसे उजाला नाम दिया गया। इसका उद्देश्य लोगों को बाजार मूल्य से कम कीमत पर ऊर्जा दक्ष उपकरण उपलब्ध कराना है। इसके तहत परंपरागत बल्बों व सीएफएल की जगह एलईडी बल्ब दिए जा रहे हैं जो कि 80 फीसदी कम बिजली खपत करते हैं।
ऊर्जा दक्ष बल्ब और उपकरणों के वितरण का दायित्व एनर्जी एफिशिएंसी सर्विसेज लिमिटेड (ईईएसएल) को सौंपा गया है। पहले जो एलईडी बल्ब 300 से 350 रूपये का मिलता था, वह अब 50 रूपये में मिल रहा है। उजाला योजना शुरू होने के बाद से अब तक 28 करोड़ से ज्यादा एलईडी बल्बों का वितरण किया गया है। इस अभियान के तहत मार्च 2019 तक 77 करोड़ एलईडी बल्ब लगाने की योजना है, जिससे हर साल 10,000 करोड़ यूनिट बिजली की बचत होगी तथा उपभोक्ताओं को बिजली के कम बिल के रूप में सालाना 40,000 करोड़ रूपये तक का फायदा होगा।
अभियान की शुरूआत करते हुए प्रधानमंत्री ने कहा कि बिजली पैदा करने से बिजली बचाना कठिन है, क्योंकि जहां एक उत्पादन इकाई भारी मात्रा में बिजली पैदा करती है, वहीं बिजली बचाने के लिए करोड़ों लोगों की सक्रिय भागीदारी का होना जरूरी है। स्पष्ट है, बिजली बचाने का अभियान तभी कामयाब होगा जब उसे जनअभियान बनाया जाए।
ईईएसएल पूरे देश में एलईडी बल्ब के अलावा कम ऊर्जा की खपत करने वाले ट्यूब लाइट और सिलिंग पंखों को भी उपलब्ध करा रहा है। अब तक उपभोक्ताओं को 31 लाख ट्यूबलाइट और 11.5 लाख ऊर्जा दक्ष पंखों का वितरण किया गया है। इन उत्पादों के वितरण से न केवल बिजली की खपत कम हुई, बल्कि देश में कार्बन डाइआक्साइड उत्सर्जन में भी कमी आई है।
इसी तरह सिंचाई के लिए इस्तेमाल होने वाले पुराने पंप सेटों की जगह नए ऊर्जा दक्ष पंप सेट मुफ्त में उपलब्ध कराए जा रहे हैं। नए ऊर्जा दक्ष पंप सेटों में स्मार्ट कंट्रोल पैनल और सिम कार्ड होता है, जिसे किसान घर से ही कंट्रोल कर सकते हैं। देश के पुराने पंप सेट हर साल 170 अरब यूनिट बिजली की खपत करते हैं। योजना के पहले चरण में 20 लाख पुराने पंप सेटों की जगह बीईई स्टार रेटेड पंप सेट वितरित करने का लक्ष्य रखा गया है। अगले चरण में एक करोड़ उन पंप सेटों को बदला जाएगा जो डीजल या दूसरे ईंधन से चलते हैं। सरकार ने अगले 3-4 साल में समूची सिंचाई व्यवस्था को आधुनिक व ऊर्जा दक्ष बनाने का लक्ष्य रखा है। सरकार ने 2019 तक सिंचाई क्षेत्र में खपत होने वाली बिजली में 30 फीसदी कमी करने का लक्ष्य निर्धारित किया है।
सरकार अब एलईडी बल्ब की तर्ज पर ऊर्जा दक्ष एयर कंडीशनर (एसी) बेचने की तैयारी कर रही है। कीमत थोड़ी ज्यादा होने के कारण ये एसी मासिक किश्तों पर दिए जाएंगे। फिलहाल ऐसे एसी सरकारी भवनों, एटीएम आदि में लगाए जा रहे हैं। जैसे-जैसे इनका प्रचलन बढ़ेगा, वैसे-वैसे इनकी कीमत कम होगी और आम जनता इन्हें खरीदने लगेगी। सरकार अब एलईडी बल्ब को भी अनिवार्य रूप से स्टार लेबलिंग कार्यक्रम के दायरे में लाने जा रही है। इस कार्यक्रम को जनवरी 2018 से लागू किया जाएगा।
बिजली बचाने की योजना के क्रियान्वयन के साथ-साथ मोदी सरकार ने देश की समूची अर्थव्यवस्था को बिजली आधारित करने का लक्ष्य रखा है। इसके तहत पूरे देश में रेल लाइनों का विद्युतीकरण किया जा रहा है। अर्थात आने वाले वर्षों में सभी रेलगाड़ियां बिजली से चलेंगी जिसमें सोलर पैनल आधारित रेलगाड़ियां भी शामिल होंगी। शत-प्रतिशत विद्युतीकरण होने के बाद रेलवे के ईंधन मद में हर साल 10,500 करोड़ रूपये की बचत होगी। इसी तरह सरकार ने 2030 के बाद पेट्रोल-डीजल कारों की बिक्री पर प्रतिबंध लगाने का भी लक्ष्य रखा है।
भारत अपनी जरूरत का 80 फीसदी पेट्रोलियम पदार्थ आयात करता है। ऐसे में ऊर्जा दक्ष उपकरणों से बिजली की बचत और परिवहन क्षेत्र में हो रही बिजली क्रांति से न केवल आयात पर निर्भरता घटेगी, बल्कि पर्यावरण प्रदूषण में भी कमी आएगी। स्पष्ट है, मोदी सरकार की यह मुहिम अर्थव्यवस्था के साथ-साथ पर्यावरण के लिए भी मुफीद साबित होगी।
(लेखक केन्द्रीय सचिवालय में अधिकारी हैं। ये उनके निजी विचार हैं।)