मोदी सरकार बड़े बांधों के साथ-साथ छोटी सिंचाई परियोजनाओं और रोक बांधों के निर्माण पर जोर दे रही है ताकि सिंचित क्षमता में बढ़ोत्तरी तेजी से हो सके। सबसे बढ़कर इनसे देश के बहुसंख्यक छोटे व सीमांत किसान लाभान्वित होते हैं। यहां गुजरात का उदाहरण प्रासंगिक है। मोदी के मुख्यमंत्री काल में गुजरात में 2002 से 2008 तक 1,13,738 रोक बांध, 55,914 बोरी बांध और 2,40,199 खेत तालाबों का निर्माण किया। इससे वर्षा जल के भूजल बनने के रास्ते खुले और राज्य के ज्यादातर हिस्सों में जल स्तर 3 से 5 मीटर बढ़ गया और 8 लाख हेक्टेयर अतिरिक्त कृषि भूमि की सिंचाई संभव हुई।
इसे पिछले साठ सालों में सरकारों की नाकामी ही माना जाएगा कि अमेरिकी उपग्रहों को अंतरिक्ष में प्रक्षेपित करने वाले देश की खेती-किसानी अभी भी “मानसून का जुआ” बनी हुई है। हर साल देश का कोई न कोई इलाका सूखे की चपेट में रहता है और सिंचाई के लिए पानी की किल्लत तो कमोबेश हर जगह बनी रहती है। इस विडंबना को दूर करने का बीड़ा प्रधानमंत्री मोदी ने उठाया है।
हर खेत तक पानी पहुंचाने की “प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना” के बाद नरेंद्र मोदी कैबिनेट ने वर्षों से अटकी सिंचाई परियोजनाओं को पूरा करने का समयबद्ध कार्यक्रम तय किया है। सिंचाई परियोजनाओं को शीघ्रता से पूरी करने के लिए बनी त्वरित सिंचाई लाभ परियोजना (एआईबीपी) की वित्तीय क्षमता बढ़ाने के साथ-साथ परियोजनाओं को पूरा करने के लिए राज्यों को अतिरिक्त वित्तीय संसाधन भी दिए गए हैं।
अब तक सरकारें बड़े-बड़े बांध व सिंचाई परियोजनाओं का उद्घाटन तो बड़े जोर-शोर के साथ करती थीं, लेकिन उनके पूरा करने पर ध्यान नहीं देती थीं। यही कारण है कि देश में नहरी सिंचाई का विस्तार नहीं हो पाया। उदाहरण के लिए 1990-91 में सभी स्रोतों से शुद्ध सिंचित क्षेत्र 4.8 करोड़ हेक्टेयर था जो कि 2006-07 में बढ़कर 6.08 करोड़ हेक्टेयर हो गया। लेकिन, इस दौरान नहर से सिंचित क्षेत्र 1.77 करोड़ हेक्टेयर से घटकर 1.65 करोड़ हेक्टेयर रह गया।
भारी-भरकम धनराशि खर्च करने के बावजूद नहर सिंचित क्षेत्र में कमी का एक कारण यह है कि बड़ी सिंचाई परियोजनाओं को आसानी से पास कराने के लिए उनसे होने वाले लाभों को भ्रष्ट सरकारें और ठेकेदार बढ़ा-चढ़ा कर दिखाते हैं। दूसरे, कई परियोजनाओं में बांध तो बन गए लेकिन नहरें बनाने के लिए सरकारों ने उदासीन रवैया अपना लिया। तीसरे, कई परियोनाएं विवादों के घेरे में आने के कारण अधूरी पड़ी हैं। बांधों व नहरों में गाद का जमा होना, सिंचाई की संरचनाओं के रख-रखाव की कमी, जल भराव व रिसाव, नदियों में पानी की कमी भी इसके लिए उत्तरदायी रहे हैं।
सिंचाई परियोजनाओं पर पिछली सरकारों के सुस्ते रवैये को “उत्तर कोयल परियोजना” के उदाहरण से समझा जा सकता है। यह परियोजना 1972 में शुरू की गई थी। तब इसे अविभाजित बिहार की खुशहाली की गारंटी माना गया था, लेकिन तत्कालीन केंद्र व राज्य सरकारों की सुस्ती के कारण यह परियोजना लटकती गई। 1993 में इस पर काम भी बंद हो गया। यदि यह परियेाजना समय पर पूरी हो जाती तो पलामू, गढ़वा, औरंगाबाद, गया जिलों की स्थिति दूसरी होती और इन जिलों में नक्सलियों की पैठ इतना गंभीर रूप धारण न करती।
अब 45 वर्ष बाद मोदी सरकार ने इस परयोजना की सुध ली है और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इससे जुड़े सभी संबंधित कामों को वर्ष 2019 तक पूरा करने का निर्देश दिया है। कैबिनेट के फैसले के अनुसार उत्तर कोयल परियोजना पर कुल 2300 करोड़ रूपये की लागत आएगी। इसमें से 700 करोड़ रूपये खर्च हो चुके हैं। शेष बची 1600 करोड़ रूपये की राशि का बड़ा हिस्सा केंद्र देगा। इतना ही नहीं, दोनों राज्यों (बिहार व झारखंड) के पास शेष बचे काम पर जो लागत आएगी, उसका भी 60 फीसदी केंद्र की तरह से देने की व्यवस्था की गई है ताकि धन के अभाव में परियोजना का काम न रूके। इससे लंबित परियोजनाओं को पूरी करने की मोदी सरकार की प्रतिबद्धता का पता चलता है।
बड़ी परियोजनाओं के साथ-साथ मोदी सरकार लघु सिंचाई परियोजनाओं को पूरा करने पर ध्यान दे रही है। पिछले साल सरकार ने 106 सिंचाई परियोजनाओं का चयन किया था, जिनसे 1.18 करोड़ हेक्टेयर भूमि की सिंचाई होगी। एक वर्ष के भीतर इनमें से 18 पूरी हो चुकी हैं। इस वर्ष 36 का काम पूरा हो जाएग। शेष के लिए भी वित्त सुविधा उपलब्ध कराई जा रही है ताकि उन्हें भी वर्ष 2019 तक पूरा किया जा सके।
मोदी सरकार बड़े बांधों के साथ-साथ छोटी सिंचाई परियोजनाओं और रोक बांधों के निर्माण पर जोर दे रही है ताकि सिंचित क्षमता में बढ़ोत्तरी तेजी से हो सके। सबसे बढ़कर इनसे देश के बहुसंख्यक छोटे व सीमांत किसान लाभान्वित होते हैं। यहां गुजरात का उदाहरण प्रासंगिक है। मोदी के मुख्यमंत्री काल में गुजरात में 2002 से 2008 तक 1,13,738 रोक बांध, 55,914 बोरी बांध और 2,40,199 खेत तालाबों का निर्माण किया। इससे वर्षा जल के भूजल बनने के रास्ते खुले और राज्य के ज्यादातर हिस्सों में जल स्तर 3 से 5 मीटर बढ़ गया और 8 लाख हेक्टेयर अतिरिक्त कृषि भूमि की सिंचाई संभव हुई।
वैश्विक तापवृद्धि, मौसमी उतार-चढ़ाव में इजाफा, बारिश के बदलते पैटर्न आदि को देखते हुए कृषि विशेषज्ञ लंबे समय से सिंचाई तंत्र को सुदृढ़ बनाने पर बल देते रहे लेकिन भ्रष्टाचार और जातिवाद की राजनीति करने वाली सरकारों ने इन पर ध्यान नहीं दिया। जमीनी हकीकत यह है कि सिंचाई परियोजनाओं की सफलता का सीधा संबंध किसानों की माली हालत से होता है। प्रधानमंत्री ने स्वतंत्रता दिवस के भाषण में कहा था कि किसान को सिंचाई के लिए पानी मिल जाए तो वह माटी से सोना उगा देगा। स्पष्ट है प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी राहुल गांधी की तरह किसानों को आलू से सोना बनाने के बजाए सिंचाई क्षमता में विस्तार के जरिए किसानों को सोना उगाने लायक बना रहे हैं।
(लेखक केन्द्रीय सचिवालय में अधिकारी हैं। ये उनके निजी विचार हैं।)