मोदी सरकार मोटे अनाजों को वैश्विक ब्रांड बना रही है। इसके लिए विश्व के कई देशों में मोटे अनाज आधारित प्रदर्शनियां आयोजित की गई हैं। नाबार्ड ने एपीडा के साथ मिलकर मोटे अनाजों के निर्यात को बढ़ावा देने की कार्य योजना तैयार की है। नाबार्ड ने कृषि, ग्रामीण स्टार्टअप के लिए 600 करोड़ रुपये का कैपिटल फंड बनाया है। इस फंड का इस्तेमाल मोटे अनाज आधारित स्टार्टअप को बढ़ावा देने के लिए किया जा रहा है। इसके लिए नाबार्ड ने “नबवेंचर” नामक कंपनी बनाई है।
“पुरुष बली नहीं होत है, समय होत बलवान” सैकड़ों वर्ष पूर्व कही गई यह कहावत आज मोटे अनाजों पर पूरी तरह चरितार्थ होती है। हरित क्रांति के दौर में जो मोटे अनाज गरीबों की थाली तक सिमट कर रह गए थे, आज वही मोटे अनाज विदेशी मेहमानों को सोने-चांदी की थाली में परोसे जा रहे हैं।
उल्लेखनीय है कि हाल में संपन्न जी-20 सम्मेलन में भारत आए मेहमानों के स्वागत से लेकर होटल के खाने-पीने तक हर जगह देसी टच दिया गया। सभी विदेशी नेताओं को सोने-चांदी के चमचमाते बर्तनों में मोटे अनाज जैसे ज्वार, बाजरा, रागी से बनी डिश परोसी गई। इतना ही नहीं विदेशी मेहमानों ने मोटे अनाज से बने स्नैक्स का मजा देसी चाय के साथ उठाया। इससे मोटे अनाजों की अंतरराष्ट्रीय स्तर पर ब्रांडिंग भी हुई।
मोटे अनाजों के प्रति लोगों को जागरूक करने के लिए 2023 को इंटरनेशनल ईयर ऑफ मिलेट्स थीम दिया गया है। इससे पहले 2018 में भारत ने राष्ट्रीय स्तर पर मोटा अनाज वर्ष मनाया था। मिलेट में मोटे व छोटे दानों वाले अनाज शामिल होते हैं। प्रमुख मोटे अनाजों में ज्वार, बाजरा, रागी का नाम आता है तो वहीं छोटे अनाजों में कुटकी, कांगनी, कोदो और सावां शामिल हैं।
इनमें कैल्शियम, आयरन, फाइबर समेत ढेरों पोषक तत्व पाए जाते हैं। इसीलिए मोटे अनाजों को सुपरफूड का दर्जा दिया गया है और यही कारण है कि आज मोटे अनाज आकर्षक पैकिंग में बड़े-बड़े शॉपिंग मॉल में बिक रहे हैं। दुनिया के कई देशों में इन अनाजों को बड़े चाव से खाया जाता है।
पोषक तत्वों की भरपूर मौजूदगी और बीमारियों से लड़ने की अद्भुत क्षमता को देखते हुए मोटे अनाज देश की पोषण सुरक्षा के लिए महत्वपूर्ण हैं। इसीलिए चिकित्सा जगत मोटे अनाजों को भोजन में शामिल करने की लगातार पैरवी कर रहा है। अब सरकार ने मोटे अनाजों से बने प्रसंस्कृत उत्पादों को नाश्ते और भोजन की थाली में शामिल करने की योजना बनाई है।
प्रसंस्कृत उत्पादों को स्थानीय लोगों की उम्र व स्वाद के अनुरूप बनाया जाएगा। उल्लेखनीय है कि देश की 42 प्रतिशत जनसंख्या का मुख्य आहार स्टार्च युक्त भोजन है और 60 करोड़ लोग गंभीर रूप से कुपोषित हैं। मोटे अनाज से बने आहार को भोजन में शामिल करने से कुपोषण की समस्या का अपने आप समाधान हो जाएगा।
मोटे अनाजों को उगाने के लिए कम पानी की जरूरत पड़ती है और ये फसलें मौसमी उतार-चढ़ाव को आसानी से झेल लेती हैं। ये फसलें कार्बन अवशोषण में भी सहायक हैं। सबसे बड़ी बात है कि गेहूं-धान की तुलना में इन फसलों के तैयार होने की अवधि 60 प्रतिशत ही है। इसीलिए जलवायु परिवर्तन के दौर में मोटे अनाज उम्मीद की किरण जगाते हैं।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी मन की बात कार्यक्रम में किसानों की आय बढ़ाने में मोटे अनाजों की भूमिका का उल्लेख कर चुके हैं। प्रधानमंत्री ने आंध्र प्रदेश के नांदयाल जिले के केवी राम सुब्बा रेड्डी का उल्लेख किया जो लोगों को मोटे अनाजों के फायदे बताने के साथ ही इसे आम जन को उपलब्ध करा रहे हैं। इसी तरह प्रधानमंत्री मोदी ने छत्तीसगढ़ के रायपुर में खुले मोटे अनाज कैफे का भी उल्लेख किया है। मोटे अनाजों के महत्व को बताते हुए प्रधानमंत्री मोदी ने इसे लोगों का एक आंदोलन बनाने और भारत को मिलेट का ग्लोबल हब बनाने की वकालत की।
प्रधानमंत्री द्वारा मोटे अनाज को अपनाने की मुहिम शुरू करने के बाद संसद भवन की कैंटीन में खाने की सूची में मोटे अनाज से बने व्यंजनों को शामिल किया गया है। मोटे अनाज के पौष्टिक गुणों को देखते हुए 50 साल बाद सैनिकों के आहार में मोटे अनाज की वापसी हुई है। इस मामले में उत्तर प्रदेश सरकार अनूठी पहल करते हुए मोटे अनाजों को आम और खास की थाली का हिस्सा बनाने में जुटी है।
योगी सरकार मिलेट की प्रसंस्कृत इकाइयां लगाने वालों को 100 प्रतिशत अनुदान दे रही है। मंडियों में मोटे अनाजों के लिए अलग से बिक्री केंद्र बनाए जाएंगे। ग्राम्य विकास विभाग इसका ब्लॉक से लेकर ग्राम पंचायतों एवं वहां के हाट बाजारों तक विस्तार देगा। इनके डिश होटल व रेस्तरां के मीनू में शामिल किए जाएंगे। बच्चों को मोटे अनाजों के बारे में जानकारी हो इसके लिए मोटे अनाजों को प्राइमरी स्कूलों के पाठ्यक्रम में शामिल किया जाएगा। मध्यान्ह भोजन, पुष्टाहार, सार्वजनिक वितरण प्रणाली में मोटे अनाज शामिल कर लिए गए हैं। स्वयं सहायता समूहों को मोटे अनाजों के उत्पाद तैयार करने के लिए प्रशिक्षित किया जाएगा।
जलवायु परिवर्तन के कारण गेहूं-धान की खेती में बढ़ती कठिनाइयों और बढ़ती लागत को देखते हुए सरकार समर्थन मूल्य पर मोटे अनाजों की देशव्यापी सरकारी खरीद और उन्हें सार्वजनिक वितरण प्रणाली के तहत वितरित करने की योजना पर काम कर रही है।
मोदी सरकार मोटे अनाजों को वैश्विक ब्रांड बना रही है। इसके लिए विश्व के कई देशों में मोटे अनाज आधारित प्रदर्शनियां आयोजित की गई हैं। नाबार्ड ने एपीडा के साथ मिलकर मोटे अनाजों के निर्यात को बढ़ावा देने की कार्य योजना तैयार की है। नाबार्ड ने कृषि, ग्रामीण स्टार्टअप के लिए 600 करोड़ रुपये का कैपिटल फंड बनाया है। इस फंड का इस्तेमाल मोटे अनाज आधारित स्टार्टअप को बढ़ावा देने के लिए किया जा रहा है। इसके लिए नाबार्ड ने “नबवेंचर” नामक कंपनी बनाई है।
(लेखक केन्द्रीय सचिवालय में अधिकारी हैं। वरिष्ठ टिप्पणीकार हैं। प्रस्तुत विचार उनके निजी हैं।)