‘मेक इन इंडिया’ का सपना साकार करने के लिए ‘स्टार्ट अप इंडिया’ की जरूरत है। प्रधानमंत्री इस योजना की मदद से देश की अर्थव्यवस्था में मजबूती, रोजगार के अवसरों में बढ़ोतरी, विकास दर में इजाफा आदि लाना चाहते हैं। यह योजना उन लोगों के लिए है जो अपना कारोबार शुरू करना चाहते हैं, लेकिन देश में अनुकूल माहौल नहीं होने या कारोबार शुरू करने में आने वाली बाधाओं को देखते हुए वे ऐसा नहीं कर पा रहे हैं। लिहाजा, कारोबारियों की समस्याओं को दृष्टिगत करते हुए सरकार भारत में कारोबार करना आसान कर रही है, ताकि कारोबार के साथ-साथ रोजगार के अवसरों में भी बढ़ोतरी हो।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी लगातार रोजगार सृजन के लिए प्रयास कर रहे हैं। वे जानते हैं कि सभी को रोजगार मुहैया कराकर ही विकास की रफ्तार को तेज किया जा सकता है। ‘मेक इन इंडिया’ की संकल्पना का आगाज इसी दिशा में उठाया गया एक कदम है, जिसकी घोषणा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने वर्ष 2014 के स्वतन्त्रता दिवस पर की थी। ‘मेक इन इंडिया’ का अर्थ वैसे वस्तुओं या उत्पादों से है जिसका निर्माण भारत में किया गया हो। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी चाहते हैं कि भारत में बिकने वाली हर वस्तु पर ‘मेड इन इंडिया’ लिखा हुआ हो। यह तभी संभव हो सकता है जब सभी वस्तुओं का निर्माण भारत में किया जाये।
‘स्टार्ट अप इंडिया’ को ‘मेक इन इंडिया’ की अगली कड़ी के रूप में देखा जा सकता है। ‘मेक इन इंडिया’ का सपना साकार करने के लिए ‘स्टार्ट अप इंडिया’ की जरूरत है। दरअसल, प्रधानमंत्री इस योजना की मदद से देश की अर्थव्यवस्था में मजबूती, रोजगार के अवसरों में बढ़ोतरी, विकास दर में इजाफा आदि लाना चाहते हैं। यह योजना उन लोगों के लिए है जो अपना कारोबार शुरू करना चाहते हैं, लेकिन देश में अनुकूल माहौल नहीं होने या कारोबार शुरू करने में आने वाली बाधाओं को देखते हुए वे ऐसा नहीं कर पा रहे हैं। लिहाजा, कारोबारियों की समस्याओं को दृष्टिगत करते हुए सरकार भारत में कारोबार करना आसान कर रही है, ताकि कारोबार के साथ-साथ रोजगार के अवसरों में भी बढ़ोतरी हो।
‘स्टैंड अप इंडिया’ की घोषणा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 2015 में राष्ट्र को संबोधित करते हुए की थी। इस घोषणा का मकसद समाज के सभी लोगों को मुख्यधारा से जोड़ना था। इसलिये, इस योजना के तहत अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति एवं महिला कारोबारियों को बढ़ावा दिया जा रहा है। बैंकों को समाज के हाशिये में रहने वाले इन तीनों वर्गों के लिये वित्तीय सहायता उपलब्ध कराने के लिए निर्देशित किया गया है। इस योजना के तहत तकरीबन 2.5 लाख लोगों को ऋण सुविधा वर्ष 2018 तक उपलब्ध कराया जायेगा। इस आलोक में अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति एवं महिला कर्जदारों को बैंकों द्वारा तकनीकी सुविधा भी उपलब्ध कराई जायेगी, जिससे समाज के हाशिये के लोग स्वरोजगार के जरिये मुख्यधारा में शामिल होकर अर्थव्यवस्था को मजबूत करने में अपना योगदान दे सकेंगे।
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का मानना है कि छोटे उद्यमियों की सहायता करने से भारतीय अर्थव्यवस्था का विकास होना निश्चित है। अस्तु, उन्होंने प्रधानमंत्री मुद्रा योजना को शुरू किया है। प्रधानमंत्री का कहना है कि बड़े उद्योगों के जरिये लगभग 1 करोड़ 25 लाख लोगों को रोजगार मिल सकता है, जबकि छोटे उद्यमों के जरिये 12 करोड़ लोगों को रोजगार दिया जा सकता है, क्योंकि छोटे उद्योगों खास करके असंगठित क्षेत्र में बड़ी संख्या में लोग काम कर रहे हैं। आज बड़े उद्योगों को कई सुविधाएं उपलब्ध करायी जा रही हैं, लेकिन स्वरोजगार से जुड़े लगभग 6 करोड़ लोगों पर ध्यान नहीं दिया जा रहा है, जो औसतन 17,000 रुपये प्रति इकाई कर्ज के साथ 11 लाख करोड़ की राशि का उपयोग करते हुए 12 करोड़ लोगों को रोजगार उपलब्ध कराते हैं।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के मुताबिक छोटे कारोबारियों को छोटी सी मदद करके उनकी क्षमता को कई गुणा ज्यादा बढ़ाया जा सकता है। उनके अनुसार प्रधानमंत्री मुद्रा योजना का लक्ष्य है आर्थिक रूप से कमजोर तबके को स्वावलंबी बनाना। दरअसल, छोटे उद्यमी ही आज महाजनों के हाथों सबसे ज्यादा शोषित हैं। प्रधानमंत्री मुद्रा योजना की मदद से उन्हें शोषण से बचाया जा सकता है। इस क्रम में स्व-सहायता समूह कमोबेश पूरे देश में अच्छा काम कर रहे हैं। जिन समूहों से महिलाएँ जुड़ी हैं, उनका प्रदर्शन और भी बढ़िया है। अगर इन्हें प्रधानमंत्री मुद्रा योजना के तहत सहायता दी जाये तो ये और भी बेहतर तरीके से ग्रामीण अर्थव्यवस्था को मजबूत कर सकेंगे।
गौरतलब है कि वित्त वर्ष 2015-16 में कुल 1.33 लाख करोड़ रूपये प्रधानमंत्री मुद्रा योजना के लाभर्थियों के बीच वितरित किये गये थे, जो सरकार द्वारा निर्धारित लक्ष्य से अधिक थे। इस सफलता से उत्साहित होकर सरकार ने वित्त वर्ष 2017-18 में प्रधानमंत्री मुद्रा योजना के लाभार्थियों को 2.66 लाख करोड़ रूपये वितरित करने का लक्ष्य रखा है। उम्मीद है कि बैंक इस लक्ष्य को भी प्राप्त कर लेंगे।
युवाओं को रोजगार मुहैया कराने के लिए प्रधानमंत्री कौशल विकास योजना का शुभारंभ किया गया है। इस योजना का मकसद है युवाओं के कौशल को विकसित करके उन्हें स्वरोजगार शुरू करने के काबिल बनाना। स्पष्ट है यदि कोई युवा हुनरमंद है, तो वह आसानी से जीवकोपार्जन कर सकता है। इस युक्ति से नवाचार आधारित उद्यमिता की संस्कति को बढ़ावा मिले, सरकार का ऐसा उद्देश्य है।
राष्ट्रीय ग्रामीण जीविकोपार्जन मिशन की इकाई के रूप में गावों के गरीब युवाओं के लिए दीनदयाल उपाध्याय ग्रामीण कौशल योजना को भी शुरू किया गया है। इस योजना के तहत वित्त वर्ष 2015-16 में 1.75 लाख लोगों को कुशल बनाया गया था। दिव्यांगों को ज्यादा से ज्यादा रोजगार मिले इसके लिये राष्ट्रीय कार्य योजना बनाई गई है, जिसके अंतर्गत दिव्यांगों को प्रशिक्षित किया जा रहा है। इसके बरक्स प्रत्येक वर्ष 5 लाख लोगों के लिए ऑन लाइन कौशल प्रशिक्षण देने की भी व्यवस्था की गई है।
महात्मा गाँधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना (मनरेगा) एक ऐसी योजना है, जिसकी मदद से ग्रामीण क्षेत्र में सभी को 100 दिनों तक रोजगार मुहैया कराया जा सकता है। भले ही भ्रष्टाचार के कारण इस योजना के अपेक्षित परिणाम पहले नहीं निकल पा रहे थे, लेकिन इस तथ्य से इंकार नहीं किया जा सकता है कि आज इसकी मदद से लोगों को रोजगार मिल रहा है। इस योजना के कारण ही काम की तलाश में राज्यों से होने वाले पलायन में उल्लेखनीय कमी आई है। घर में रोजगार मिलने एवं गाँवों में विकासात्मक कार्य होने से ग्रामीण भारत की सूरत एवं सीरत दोनों बदल रही है। वित्त वर्ष 2017-18 के बजट में इस योजना के लिए 48,000 करोड़ रुपये का प्रावधान किया गया है, जबकि वित्त वर्ष 2016-17 में इसके तहत 38,500 करोड़ रुपये आवंटित किये गये थे। इस योजना हेतु बजट में बढ़ोतरी करने का कारण इसके तहत आवंटित की गई राशि का शत प्रतिशत इस्तेमाल किया जाना है।
कहा जा सकता है कि मौजूदा समय में पहले की अपेक्षा ज्यादा प्रभावशाली एवं रोजगारोन्मुखी योजनाएँ सरकार द्वारा चलायी जा रही हैं। आज असंगठित क्षेत्र में काम करने वालों की संख्या ज्यादा है। इसलिये, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने प्रधानमंत्री मुद्रा योजना की शुरुआत की है, जिससे लोग लाभान्वित भी हो रहे हैं। हालांकि अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि इस वर्ष भारत में बेरोजगारी बढ़ेगी, मगर अपने इन दावों की पुष्टि हेतु संगठन के पास ऐसे कोई आंकड़े उपलब्ध नहीं हैं। देखा जाये तो असंगठित क्षेत्र से जुड़े आंकड़ों को सर्वे कराने वाले संस्थानों के लिए संकलित करना आसान नहीं होता है। जाहिर है, ऐसे में आईएलओ द्वारा जारी आंकड़ों पर विश्वास करने का कोई आधार नहीं है। वैसे, एसबीआई इकोफ्लेश की एक हालिया रिपोर्ट के मुताबिक़ देश में बेरोजगारी दर में कमी आयी है। ऐसे में. कह सकते हैं कि देश में इस वक़्त सरकार बेरोजगारी उन्मूलन के लिए व्यापक रूप से क्रमबद्ध प्रयास कर रही है, जिसके परिणाम भी दिखने लगे हैं।
(लेखक भारतीय स्टेट बैंक के कॉरपोरेट केंद्र, मुंबई के आर्थिक अनुसंधान विभाग में मुख्य प्रबंधक हैं। स्तंभकार हैं। ये विचार उनके निजी हैं।)