भारत खुद कई चुनौतियों से घिरा हुआ है, उत्तर पूर्वी हिस्सा और जम्मू कश्मीर का हिस्सा सेना और आतंकी तत्वों के मुठभेड़ से अशांत रहता है। रोहिंग्या मुसलमानों के आश्रय लेने की स्थिति में ऐसे स्थानों में शांति लाने का लक्ष्य और कठिन हो जाने की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता। सेना के बड़े अधिकारियों की माने तो इन सब क्षेत्रों में एक बड़ा खतरा पनप रहा है रोहिंग्या मुसलमानों के वजह से। भारत ने हमेशा शरणार्थियों को आश्रय दिया है, लेकिन खुद को ख़तरे में डालके किसीको शरण में लेना चाणक्य के सिद्धांतों वाले देश में कोई होशियारी नहीं होगी। इस नाते सरकार द्वारा रोहिंग्याओं को शरण न देने का रुख सर्वथा उचित है।
भारत कभी भी शरण देने में पीछे नहीं हटा है; यहूदी, पारसी जैसे कई धर्म यहाँ बसते हैं। लेकिन, राष्ट्रीय सुरक्षा को संकट में डालकर किसीको शरण देना किसी लिहाज से उचित नहीं है। रोहिंग्याओं के प्रति भारत सरकार ने शरण न देने का जो स्पष्ट और सख्त रुख अख्तियार किया है, वो न केवल उचित बल्कि प्रशंसनीय भी है।
गृह मंत्री राजनाथ सिंह ने रोहिंग्या मामले पर कहा कि देश की सुरक्षा के लिए हर मुमकिन कदम उठाए जाएंगे। ग़ैरकानूनी रूप से प्रवेश किये आश्रितों को वापस भेजने पर मुहर लगा दी गई है, उन्हें यहाँ नहीं रखा जाएगा। उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि सरकार का पहला कर्तव्य देश के नागरिकों के प्रति है। केंद्र ने उच्च न्यायालय में लिखित निवेदन में कहा है कि रोहिंग्या देश की सुरक्षा के लिए ख़तरा हैं।
केन्द्रीय गृह राज्य मंत्री किरण रिजिजू ने कहा है कि सरकार जो भी करेगी वो राष्ट्र हित के लिए होगा। आर्टिकल 19 के तहत कोई भी ग़ैरकानूनी शरणार्थी बिना क़ानूनी दस्तावेज़ों के भारत में रह नहीं सकता है और इसपर फैसला लेने का केंद्र को पूरा अधिकार है। आतंकवादी गतिविधियों से रोहिंग्या मुस्लिमों के जुड़े होने की बात केंद्र शुरू से कर रहा है, क्योंकि आईसिस जैसे संगठनो से इनका सम्बन्ध कई जगह स्पष्ट देखा गया है।
म्यांमार में रोहिंग्या और सेना के बीच मुठभेड़ का सिलसिला ख़त्म नहीं होता, लेकिन अरकान रोहिंग्या साल्वेशन आर्मी द्वारा सेना पर हमला एक बड़ी घटना थी, जिससे म्यांमार में काफी हिंसा पैदा हो चुकी है। आतंकवादी संगठन आईएस से रोहिंग्या मुसलमानों के जुड़े होने की बात पर विदेशी अनुसन्धान कार्यालओं ने मुहर लगाई है, जिसकी वजह से ये जहाँ भी जा रहे हैं, इन्हें निकालने की पूरी कोशिश की जा रही है।
भारत खुद कई चुनौतियों से घिरा हुआ है, उत्तर पूर्वी हिस्सा और जम्मू कश्मीर का हिस्सा सेना और आतंकी तत्वों के मुठभेड़ से अशांत रहता है। रोहिंग्या मुसलमानों के आश्रय लेने की स्थिति में ऐसे स्थानों पर शांति लाने का लक्ष्य और कठिन हो जाने की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता। सेना के बड़े अधिकारियों की माने तो इन सब क्षेत्रों में एक बड़ा खतरा पनप रहा है रोहिंग्या मुसलमानों के वजह से। भारत ने हमेशा शरणार्थियों को आश्रय दिया है, लेकिन खुद को ख़तरे में डालके किसीको शरण में लेना चाणक्य के सिद्धांतों वाले देश में बेवकूफ़ी होगी।
अगर विश्व की बाकी घटनाओं पर नज़र डालें और हमलों के इतिहास को पढ़ें, तब रोहिंग्या को एक बड़े खतरे का दर्जा दिया जा सकता है। फ्रांस में लगातार इतने हमलों का कारण शरणार्थी संकट ही रहा है। सीरिया, इराक़ से हो रहे प्रवास चर्चित हैं। यूरोप में कई शरणार्थियों ने पनाह लिया है। फ्रांस भी उनमें से एक देश है, जहाँ शरणार्थियों ने आश्रय लिया, उसके बाद वहाँ हुए हमलों की पूरी एक कड़ी है। तालिबान की रचना में भी ग़ौर करना आवश्यक है। ऐसे ही शरणार्थी शिविरों में तालिबान ने जन्म लिया था, जिससे अफ़ग़ानिस्तान आज तक त्रस्त है।
इन सब मामलों को देखते हुए भारत ऐसी स्थिति में रोहिंग्या जैसे ग़ैरकानूनी प्रवासियों को आश्रय दे, जब आईएस का ख़तरा विश्व भर में बढ़ता जा रहा है, तो ये किसी लिहाज से बुद्धिमत्ता पूर्ण निर्णय नहीं कहा जा सकता। हालांकि भारत ने इस संकट से मुँह नहीं फेरा है। बांग्लादेश में रोहिंग्या मुस्लिमों के लिए खाना और अन्य सामग्री भेजने की व्यवस्था भारत कर रहा है। गृहमंत्री राजनाथ सिंह ने कहा है कि हम असंवेदनशील नहीं हो रहे, लेकिन राष्ट्रीय सुरक्षा हमारे लिए महत्वपूर्ण है। सरकार की ये नीति शुरू से ही साफ़ है कि सुरक्षा को लेकर किसी भी बात से समझौता नहीं किया जाएगा।
किसी भी सफल देश की नींव उस देश की सुरक्षा है। अगर प्रवासी इसी तरह ख़तरे को साथ लाते रहे और घुसपैठ द्वारा नवयुवकों का कट्टरता के तरफ झुकाव होता गया तो देश के विकास में बाधाएं आती रहेंगी। भारत अभी सुरक्षा और विकास को प्राथमिकता मानता है। इस लिहाज से रोहिंग्याओं को शरण न देने की सरकार की नीति सर्वथा उचित है।
(लेखिका आरआईएस में इंटर्न हैं। ये उनके निजी विचार हैं।)