राष्ट्रीय जांच एजेंसी और प्रवर्तन निदेशालय की कार्रवाई ने अलगाववादी नेताओं को हिलाकर रख दिया है। यूपीए सरकार के समय ये नेता पनप रहे थे, लेकिन एनडीए सरकार की आतंकवाद विरोधी नीतियों व आतंकवाद के खात्मे की प्रतिबद्धता के चलते आज ये अराजकता मचाने वाले नेता हवालात में नज़र आ रहे हैं। यह भी केवल एक शुरुआत भर है। उम्मीद है कि पूछताछ में अहम तथ्यों का खुलासा होने के बाद न केवल इन सभी हुर्रियत नेताओं पर कठोर दंडात्मक कार्रवाई होगी बल्कि इनके ऊपरी आकाओं को भी सलाखों के पीछे पहुँचाया जाएगा ताकि जम्मू-कश्मीर में हिंसा और आतंक का जहर घोलने वाले ये तत्व जड़ से नेस्तनाबूद हो जाएं।
राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) इन दिनों अलगाववादी नेताओं की धरपकड़ की कार्रवाई में लगी है। यह कार्रवाई कश्मीर में आतंकवाद को लेकर की जा रही फंडिंग की जांच के तहत की गई है। कुछ महीनों पहले एक चैनल के स्टिंग में अलगाववादी नेता नईम ने कश्मीर में हिंसा फैलाने के लिए अलगाववादियों को पाकिस्तान से फंडिंग होने की बात कही थी, जिसके बाद एनआईए इस मामले की जांच में लग गयी थी। अब इसी मामले में कार्रवाई हो रही है।
एजेंसी ने हुर्रियत नेता सैयद अली शाह गिलानी के दामाद समेत 7 अलगाववादी नेताओं को गिरफ्तार किया। इस कार्रवाई के कुछ ही समय बाद आतंकियों को फंडिंग कर कश्मीर में हालात बिगाड़ने के मामले में अलगाववादी नेता शब्बीर शाह को भी गिरफ्तार कर लिया गया, जिसे कोर्ट ने सात दिन की रिमांड पर भी भेज दिया है। उसके पास से दो करोड़ रुपए, कुछ साहित्य और आतंकी सगंठनों के लेटर हेड भी जब्त किए गए। यह देखते हुए ये बात पुख्ता हो गई कि शब्बीर लंबे समय से घाटी में आतंकी गतिविधियों को पनपाने में आर्थिक मदद कर रहा था।
हुर्रियत नेता नईम स्वयं एक दशक से अधिक समय तक पाकिस्तान में रहकर 2010 में भारत आया था। घाटी में आतंकियों को फंडिंग कराने में नईम की भूमिका बेहद संदिग्ध है। सवाल ये उठता है कि 2010 से 2014 तक पूरे चार साल तक वह संदेहास्पद स्थिति में पर्दे के पीछे से अपनी गतिविधियों को अंजाम देता रहा लेकिन तत्कालीन संप्रग सरकार द्वारा उसकी धरपकड़ तो दूर, उससे सवाल जवाब तक नहीं किए गए। यहां यह जान लेना जरूरी है कि तहरीक-ए-हुर्रियत का उत्तराधिकारी नईम को ही माना जा रहा है।
गिलानी के दामाद अलताफ अहमद को इसी मामले में एजेंसी ने गिरफ्तार भी किया था। इससे पहले गिलानी के खासमखास रहे अयाज अकबर, पीर सैफुल्लाह को भी गिरफ्तार किया जा चुका है। और अब तो गिलानी के बेटे तक भी अब एजेंसी के हाथ पहुँच चुके हैं। चूंकि, जांच एजेंसी ने हुर्रियत कांफ्रेंस के प्रवक्ता शहीद-उल-इस्लाम, मेहराजुद्दीन कलवाल, नईम खान व फारुख अहमद डार को भी गिरफ्त में लिया है, ऐसे में समझा जा सकता है कि यह एक बड़े स्तर की कार्रवाई है जो अलगावादियों की कमर तोड़कर रख देगी।
यह मामला तब और गंभीर हो जाता है जब पाकिस्तान के जमात-उद-दावा के मुखिया हाफिज सईद जैसे खूंखार आतंकी का भी नाम इन प्रकरणों में शामिल मिलता है। राष्ट्रीय जांच एजेंसी का मानना है कि घाटी में सक्रिय इन संगठनों ने विभिन्न तरीकों से पैसे जुटाए और आतंकियों को आर्थिक सहायता मुहैया कराई। इसी धन से पत्थरबाजी का लगातार सिलसिला जारी रखा गया जिससे कि बड़े पैमाने पर सरकारी व सार्वजनिक संपत्ति को नुकसान पहुंचा। चूंकि आतंकी फंडिंग को लेकर पहली बार इस तीव्रता के साथ, निर्णायक स्थिति में बड़े स्तर पर कार्रवाई की गई है, लिहाजा फिलहाल तो यही माना जा रहा है कि आतंकवाद की जड़ों पर इसका गहरा असर होगा।
एजेंसी ने अल्ताफ अहमद फंतोश, पूर्व आतंकी कमांडर फारुक अहमद डार, वरिष्ठ अलगाववादी नेता नईम अहमद खान, अयाज अकबर, पीर सैफुल्ला, मीरजुद्दीन कलवल और एसयू इस्लाम को गिरफ्तार किया है। विदित हो कि बीते मई माह में हुर्रियत के बड़े नेता नईम अहमद खान का टीवी पर वीडियो वायरल हुआ था, जिसमें वे लगभग पकड़े जाने के अंदाज में कुतर्कों से अपनी बौखलाहट प्रकट करते नज़र आ रहे थे।
हुआ ये था कि एक चैनल ने स्टिंग ऑपरेशन किया था, जिसमें कि नईम और एक अन्य कमांडर बिट्टा कराटे कथित तौर पर ऐसा दावा करते नज़र आए कि कश्मीर में आतंकी हिंसा व अलगाववादी गतिविधियों के लिए पाकिस्तान से हवाला के जरिए पैसा आता है। इन नेताओं ने यह भी दावा किया था कि कश्मीर में बीते साल में स्कूल जलाने की साजिशों में भी इनका हाथ रहा है। चूंकि इस ऑपरेशन में नईम पाकिस्तान से धन लेने की बात पर साफ तौर पर पकड़ा गया था, इसलिए यह खबर तेजी से चर्चा में आई।
कश्मीर में हालात बिगाड़ने में इन लोगों का बहुत बड़ा हाथ है, इसलिए अब जांच एजेंसी ने कमर कस ली है। इधर, राष्ट्रीय जांच एजेंसी के अलावा प्रवर्तन निदेशालय ने भी सख्ती बरतना शुरू कर दी है। लंबे समय से निदेशालय अलगाववादी नेता शब्बीर शाह को समन भेज रहा था। शाह पर मनी लांड्रिंग का एक दशक पुराना एक मामला भी लंबित है। बार-बार तलब करने के बावजूद शाह कभी हाजिर नहीं हुआ तो आखिर उसके खिलाफ गैर जमानती वारंट जारी किया गया और उसकी धरपकड़ कर ली गई। उसे फिलहाल एक सप्ताह के लिए हिरासत में भेजा गया है। इस पूरे घटनाक्रम में जो सबसे अधिक ध्यान देने योग्य बात है, वह ये कि इन नेताओं की गिरफ्तारी के बाद कश्मीर में माहौल खराब होने का अंदेशा था, लेकिन ऐसा नहीं हुआ।
कश्मीर में राष्ट्रीय जांच एजेंसी द्वारा की गई कार्रवाई का कोई विशेष विरोध नहीं हुआ और कश्मीर बंद का आह्वान भी खास नहीं रहा। यह दिखाता है कि कश्मीर की आवाम धीरे-धीरे इन अलगाववादियों के असली चेहरे को पहचानने लगी है। हालांकि पुलिस ने सजगता का परिचय देते हुए गिलानी व उमर फारूक को नज़रबंद करके रखा है ताकि फिजा ना बिगड़े। जम्मू-कश्मीर में हालात फिलहाल सामान्य हैं। असल में, ये पकड़े गए नेता ही घाटी में हालात बिगाड़ने के लिए आतंकी संगठनों को शह देते रहे हैं।
एनआईए ने आतंकी फंडिंग के मामले में 30 मई को अलगाववादी नेताओं और हुर्रियत के सदस्यों पर केस दर्ज किया था। अलगाववादी नेताओं पर इस प्रकार से नकेल शायद पहली बार ही कसी गयी है, क्योंकि अभी तक इनके कृत्यों, इरादों और नीयत पर सवाल तो उठे थे, मगर ऐसी कार्रवाई कभी नहीं हुई थी। पूर्ववर्ती संप्रग सरकार के समय से यह सब चला आ रहा था, लेकिन हैरत है कि इन भीतरघातियों पर उस सरकार द्वारा कार्रवाई करना तो दूर, इन्हें कभी संदेह की दृष्टि से भी नहीं देखा गया। मगर मौजूदा मोदी सरकार के आतंक के विरुद्ध सख्त रुख का ही असर है कि महज एक स्टिंग के आने के बाद अब इन अलगाववादी नेताओं पर अब इतने बड़े स्तर पर कार्रवाई होने लगी है।
यह स्पष्ट है कि राष्ट्रीय जांच एजेंसी और प्रवर्तन निदेशालय की कार्रवाई ने अलगाववादी नेताओं को हिलाकर रख दिया है। यूपीए सरकार के समय ये नेता पनप रहे थे, लेकिन एनडीए सरकार की आतंकवाद विरोधी नीतियों व आतंकवाद के खात्मे की प्रतिबद्धता के चलते आज ये अराजकता मचाने वाले नेता हवालात में नज़र आ रहे हैं। यह भी केवल एक शुरुआत भर है। उम्मीद है कि पूछताछ में अहम तथ्यों का खुलासा होने के बाद न केवल इन सभी हुर्रियत नेताओं पर कठोर दंडात्मक कार्रवाई होगी बल्कि इनके ऊपरी आकाओं को भी सलाखों के पीछे पहुँचाया जाएगा ताकि जम्मू-कश्मीर में हिंसा और आतंक का जहर घोलने वाले ये तत्व जड़ से नेस्तनाबूद हो जाएं।
(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं। ये उनके निजी विचार हैं।)