यही मोदी की शैली है। खुद उनके शब्दों में “जब मैं काम करता हूँ तो राजनीति नहीं करता।” और यही उनकी खासियत है कि उनके काम उनके विरोधियों को राजनीति करने लायक छोड़ते नहीं। अब देखिए ना चुनाव जीतते ही साढ़े चार साल उन्होंने सख्त प्रशासन, नोटबन्दी, जीएसटी जैसे कठोर फैसले लेकर अर्थव्यवस्था की सेहत सुधारी। और अब चुनाव से पहले जीएसटी में छूट, सवर्ण आरक्षण जैसे कदमों के बाद अब बजट में किसानों और असंगठित क्षेत्र के श्रमिकों समेत मध्यमवर्ग के लिए सौगातों की झड़ी लगा कर अपनी धारदार किन्तु सकरात्मक राजनीति से विपक्ष के वोटबैंक को भी धराशायी कर दिया।
विपक्ष भले ही वर्तमान सरकार के इस आखिरी बजट को चुनावी बजट कहे और कार्यवाहक वित्तमंत्री पीयूष गोयल के बजट भाषण को चुनावी भाषण की संज्ञा दे, लेकिन सच तो यह है कि ‘आम’ कहे जाने वाले इस बजट ने अपने नाम के अनुरूप देश के आम आदमी के दिल को जीत लिया है। जैसा कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने कहा, ‘यह सर्वस्पर्शी, सर्वसमावेशी, सर्वोत्कर्ष को समर्पित बजट है’ निस्संदेह ये बजट भारत के भविष्य को नई ऊंचाइयों पर ले जाने के सपने जगाता है।
यह पहली बार नहीं है जब किसी सरकार ने चुनावी साल में बजट प्रस्तुत किया हो। लेकिन हाँ, यह पहली बार है जब भारत की लोकतांत्रिक प्रणाली में जहाँ अब तक लगभग हर सरकार चुनावी साल के बजट में केवल आगामी लोकसभा चुनावों को ही ध्यान में रखकर बजट प्रस्तुत करती थी, इस सरकार ने आगामी दस सालों को ध्यान में रखकर बजट प्रस्तुत किया है।
यही मोदी की शैली है। खुद उनके शब्दों में “जब मैं काम करता हूँ तो राजनीति नहीं करता।” और यही उनकी खासियत है कि उनके काम उनके विरोधियों को राजनीति करने लायक छोड़ते नहीं। अब देखिए ना चुनाव जीतते ही साढ़े चार साल उन्होंने सख्त प्रशासन, नोटबन्दी, जीएसटी जैसे कठोर फैसले लिए। और अब चुनाव से पहले जीएसटी में छूट, सवर्ण आरक्षण जैसे कदमों के बाद अब बजट में किसानों और असंगठित क्षेत्र के श्रमिकों समेत मध्यमवर्ग के लिए सौगातों की झड़ी लगा कर अपनी धारदार किन्तु सकरात्मक राजनीति से विपक्ष के वोटबैंक को भी धराशायी कर दिया।
वित्तमंत्री ने यह कहकर कि इस देश के संसाधनों पर पहला हक गरीबों का है, ना सिर्फ गरीबों को साधा बल्कि कांग्रेस पर भी प्रहार किया जिसकी सरकार में तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने कहा था कि इस देश के संसाधनों पर पहला हक अल्पसंख्यकों का है।
मोदी सरकार के इस बजट में समाज के हर वर्ग के लिए कुछ न कुछ है यहां तक कि विपक्ष के लिए भी। इस बजट से उन्होंने राहुल के कई चुनावी वादों का जवाब भी दे दिया है। जैसे ‘प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि’ के जरिए किसानों को हर साल 6 हज़ार रुपए तीन किश्तों में सीधे उनके खाते में डालने के प्रस्ताव से उन्होंने कांग्रेस की कर्ज़ माफी योजना पर वार किया है।
इससे एक तरफ उन्होंने ना सिर्फ राहुल के मोदी पर किसानों के प्रति असंवेदनशील होने के आरोप को ध्वस्त कर दिया बल्कि रकम सीधे किसानों के खातों में डलवाकर कांग्रेस की कर्जमाफी के लॉलीपॉप की हवा भी निकाल दी। क्योंकि जिस प्रकार एक महीने के भीतर ही मध्यप्रदेश और राजस्थान से करोड़ों के कर्जमाफी घोटाले सामने आ रहे हैं, खुद राहुल भी अब समझ चुके हैं कि लोकसभा चुनावों में कर्जमाफी का कार्ड नहीं चलने वाला।
इसलिए तीन राज्यों में जीत के तुरंत बाद जो राहुल यह कह रहे थे कि 2019 में कर्जमाफी महत्वपूर्ण मुद्दा होगा और मैं नरेंद्र मोदी को तब तक नहीं सोने दूंगा जब तक वो पूरे देश में कर्जमाफी नहीं कर देते, आज वो राहुल कर्जमाफी की नहीं बल्कि “न्यूनतम आय” की बात करने लगे हैं। लेकिन मोदी सरकार ने इस बजट से राहुल की इस घोषणा की भी हवा निकाल दी। क्योंकि सरकार ने बजट में संभवतः विश्व की सबसे बड़ी पेंशन योजना का प्रस्ताव पेश किया है। ‘प्रधानमंत्री श्रम योगी मान धन योजना’ के तहत असंगठित क्षेत्र के कर्मियों को 60 वर्ष की आयु के बाद हर माह तीन हज़ार रुपए पेंशन का प्रावधान है। इसके लिए उन्हें हर महीने मात्र 100 रुपये जमा करने होंगे।
इसके अलावा इस बजट में पहली बार मत्स्यपालन और पशुपालन के लिए भी किसान क्रेडिट कार्ड का प्रावधान करके इन व्यवसायों में रोजगार बढ़ाने की कोशिश की गयी है। देश की सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए रक्षा बजट में बढ़ोत्तरी करके सेना का मनोबल ऊंचा किया गया है। इसके अलावा प्रदूषण कम करने के लिए इलेक्ट्रॉनिक वाहन, सौर ऊर्जा जैसे विषयों पर ध्यान दिया जाना निश्चित ही महत्वपूर्ण एवं सराहनीय कदम हैं।
लेकिन सबसे बड़ा और सराहनीय कदम है – पांच लाख तक की आय पर इनकम टैक्स खत्म करना। विपक्ष भले ही इसे चुनावी साल का सियासी कदम कहे, लेकिन हकीकत यह है कि यह देश की अर्थव्यवस्था को गति देने वाला एक ठोस कदम है। क्योंकि, एक तो इससे मध्यम वर्ग के हाथ में पैसा बचेगा जिसेस उनका लिविंग स्टैंडर्ड बढेगा, वहीं यह पैसा देश की अर्थव्यवस्था को गति भी देगा। दूसरा इस प्रकार का कदम कालांतर में देश की अर्थव्यवस्था को भ्रष्टाचार मुक्त करने की दिशा में भी कारगर सिद्ध होगा।
खास बात यह है कि वित्तमंत्री ने इस बात को भी स्पष्ठ कर दिया है कि इतने खर्चों के बावजूद राजकोषीय घाटे को जीडीपी के मात्र 3.4% रखा गया है और यही इस बजट की विशेषता है। उन्होंने बताया कि सात साल पहले राजकोषीय घाटा छ प्रतिशत के उच्च स्तर पर था। 2018-19 में हम इसे 3.4% पर लाने में कामयाब रहे हैं। पिछले वर्ष के कुल बजट का आकार 24,42,213 करोड़ रुपये से बढ़ाकर इस साल 27,84,200 करोड़ रुपए कर दिया गया है। और यह संभव हुआ क्योंकि इन चार सालों में देश को टैक्स से मिलने वाले राजस्व में रिकॉर्ड बढ़ोत्तरी हुई है क्योंकि नोटबन्दी और जीएसटी के बाद लगभग एक करोड़ नए करदाता जुड़े हैं।
और विपक्ष जितना भी सवाल पूछे कि चार साल पहले क्यों ऐसा बजट नहीं पेश किया गया? सच तो वो भी जानते हैं कि तब देश के बैंक एनपीए से खाली थे और अर्थव्यवस्था घोटालों और भ्रष्टाचार से बदहाल। लेकिन आज जब हमारा देश विश्व की तेजी से बढ़ती हुई छ्ठी अर्थव्यवस्था बन गया है तो न सिर्फ ऐसी घोषणाएं की जा सकती हैं बल्कि अमल में भी लायी जा सकती हैं।
(लेखिका स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं। ये उनके निजी विचार हैं।)