प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के इस ऐतिहासिक कदम की जहाँ चारो तरफ सराहना हो रही है, वहीं कांग्रेस हर मामले की तरह इसमें भी ओछी राजनीति पर उतर आई है। कहा जा रहा है कि मोदी, नेताजी की विरासत पर अपना कब्ज़ा जमा रहे हैं। सवाल है कि आखिर आज़ादी के बाद सर्वाधिक समय तक कांग्रेस जब सत्ता में थी, तब उसे ऐसा करने से कौन रोक रहा था?
नेताजी सुभाष चन्द्र बोस द्वारा आज़ाद हिंद सरकार के गठन की पचहत्तरवीं वर्षगाँठ पर दिल्ली के लाल किले पर एक अलग ही दृश्य देखने को मिला। भारत रत्न नेताजी सुभाष चन्द्र बोस का सपना था कि देश जब आज़ाद होगा उस दिन वह लाल किले से तिरंगा फहराएंगे, उस सपने को नेताजी की आजाद हिन्द सरकार की पचहत्तरवीं वर्षगाँठ पर पूरा कर दिखाया प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने, जब उन्होंने लाल किले के प्राचीर से तिरंगा फहराया।
‘आज़ाद हिन्द फौज’ की टोपी पहने प्रधानमंत्री मोदी की तस्वीर ने ही सब कुछ कह दिया। स्स्वल उठता है कि क्या नेताजी सुभाष चन्द्र बोस को यह सम्मान वर्षों पहले ही नहीं मिल जाना चाहिए था? जिस सपने को आँखों में लिए नेताजी शहीद हो गए, उसे पूरा करने में आजाद भारत के 71 साल क्यों बीत गए?
क्या नेताजी किसी पार्टी के नेता थे या किसी ख़ास विचारधारा से ताल्लुक रखते थे? वह तो आम देशवासियों के दिलों में बसे एक ऐसे महान विभूति हैं, जिनकी यादों को कोई आने वाले हजारों सालों तक मिटा ही नहीं सकता। लाल किला ही वह जगह थी, जहाँ आज़ाद हिन्द फौज के सिपाहियों पर ब्रिटिश सरकार ने मुक़दमा चलाया था और उन्हें सजा दी गई थी। 21 अक्टूबर, 1943 को नेताजी ने सिंगापुर में ‘आज़ाद हिन्द सरकार’ का गठन कर उस ब्रिटिश सरकार की औपनिवेशिक सत्ता को चुनौती दी थी, जिसके राज में कभी सूर्यास्त न होने का दम भरा जाता था। आज का ध्वजारोहण उसीकी याद में था।
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के इस ऐतिहासिक कदम की जहाँ चारो तरफ सराहना हो रही है, वहीं कांग्रेस हर मामले की तरह इसमें भी ओछी राजनीति पर उतर आई है। कहा जा रहा है कि मोदी, नेताजी की विरासत पर अपना कब्ज़ा जमा रहे हैं। सवाल है कि आखिर आज़ादी के बाद सर्वाधिक समय तक कांग्रेस जब सत्ता में थी, तब उसे ऐसा करने से कौन रोक रहा था?
दरअसल कांग्रेस के ऐसा न कर पाने के पीछे उसका अपना डर था। जिस कांग्रेस में नेहरू-गांधी परिवार के लोगों के अलावा किसी को सम्मान नहीं दिया गया, उसमें भला यह कैसे संभव था कि वो नेताजी के सम्मान में ऐसा कोई कार्यक्रम करने की सोच भी पाती। प्रधानमंत्री मोदी ने ठीक ही कहा कि एक परिवार को बड़ा बनाने के लिए नेताजी के योगदान को भुलाया गया।
दरअसल, नेताजी की सोच और विरासत को सहेजना तो दूर की बात, आजादी के बाद कांग्रेसी सरकारों द्वारा ऐसी कोशिशें होती रहीं कि नेताजी की याद से जुड़ी हर छोटी-बड़ी बात पर धुल की एक मोटी चादर जमी रहे। केंद्र में जब नरेन्द्र मोदी की सरकार बनी, उसके बाद ही नेताजी से जुड़ी तमाम फाइलों को सार्वजानिक किया गया, उनके परिवारवालों को सम्मानित किया गया। मोदी ने वही किया जो कि एक महान राष्ट्रभक्त के प्रति एक कृतज्ञ राष्ट्र को करना चाहिए।
यह सच्चाई है कि मोदी सरकार के दौरान न सिर्फ नेताजी को बल्कि बाबा साहब आंबेडकर और सरदार पटेल जैसी विभूतियों को भी सम्मान दिया गया, अगर कोई इसे सियासत से जोड़कर देखता है तो इसे उसका मानसिक दिवालियापन ही कहा जाएगा। नेताजी के परिवार के लोग कांग्रेस सरकार के रहते खुलकर अपनी बात नहीं रखते थे, क्योंकि उन्हें पता था कि उनकी बात सुनी नहीं जाएगी। लेकिन अब वह समय आ गया है, जब नेताजी से जुड़ी बातों और और उनके विचारों को पाठ्यक्रमों का नियमित हिस्सा बनाया जाए।
इतिहास में नेताजी सुभाष चन्द्र बोस को सही स्थान मिले, इसकी पहल वर्तमान सरकार ने कर दी है और उम्मीद है कि आगे इस दिशा में और भी काम किए जाएंगे जिससे देश के सच्चे सपूत नेताजी सुभाष चन्द्र बोस को उनके देश सेवा के लिए समुचित सम्मान मिले।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं। ये उनके निजी विचार हैं।)