प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सिंगापुर में पूर्वी एशिया शिखर सम्मेलन के आयोजन और मंच का बेहतरीन उपयोग किया। 18 देशों के नेताओं से मिलने के अलावा उन्होंने क्षेत्रीय और वैश्विक मुद्दों की ओर ध्यान खींचा। यही कारण था कि मोदी को सिंगापुर में सर्वाधिक अहमियत मिली।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सिंगापुर यात्रा मात्र छत्तीस घण्टे की थी, लेकिन यह द्विपक्षीय व क्षेत्रीय सहयोग की दिशा में उपयोगी साबित हुई। यहां मोदी ने मेजबान सिंगापुर, ऑस्ट्रेलिया और जापान के प्रधानमंत्री तथा अमेरिका के उपराष्ट्रपति आदि से वार्ता की। इसमें अनेक द्विपक्षीय मसलों पर सहमति बनी तथा क्षेत्रीय स्तर पर आपसी संपर्क के साथ-साथ हिन्द प्रशांत क्षेत्र में साझा रणनीति बनाने पर भी विचार किया गया। अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर आतंकवाद को खतरा व आपसी सहयोग में बाधक मानते हुए इसके विरुद्ध रणनीति बनाने का विचार व्यक्त हुआ।
इस सम्मेलन में दस आसियान सदस्य देश ब्रुनेई, कंबोडिया, इंडोनेशिया, लाओस, मलेशिया, म्यांमार, सिंगापुर, थाईलैंड, फिलीपींस और वियतनाम शामिल है। इसके अलावा भारत, चीन, जापान, कोरिया गणराज्य, ऑस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड, संयुक्त राज्य अमरीका और रूस को साझेदार के रूप में स्थान मिला है। इस प्रकार अठारह देशों के शासकों ने सिंगापुर में अनेक विषयों पर विचार-विमर्श किया।
‘पूर्वी एशिया शिखर सम्मेलन’ दक्षिणी एशिया और पूर्वी एशिया के देशों का मंच है। प्रारम्भ में इसमें सोलह देश सम्मिलित थे। 2011 के छठे सम्मेलन में संयुक्त राज्य अमेरिका और रूस भी इसमें सम्मिलित हो गए। इस शिखर सम्मेलन में सूचना एचं संचार प्रौद्योगिकी, स्मार्ट शहर, समुद्री सहयोग तथा सीमा पार के आतंकवाद पर चर्चा हुई। इस दौरान भारत-सिंगापुर हैकाथन के प्रतिभागियों की सचिव स्तरीय बैठक भी हुई।
मोदी ने कहा कि ऐसे लोगों को औपचारिक रूप से वित्तीय बाजार में लाना ही होगा जिनके पास अब तक बैंक खाता नहीं है। विश्व में असंगठित क्षेत्र के एक अरब से अधिक ऐसे मजदूरों को बीमा एवं पेंशन की सुरक्षा के दायरे में लाना होगा। वित्त के अभाव में किसी उद्यम को बंद करने की नौबत नहीं आनी चाहिए। बैंकों व वित्तीय संस्थानों को जोखिम का प्रबंधन करने, धोखाधड़ी से निपटने और पारंपरिक पद्धतियों में बदलाव करने में अधिक सक्षम बनाना आवश्यक है।
इस सम्मेलन से पहले प्रधानमंत्री मोदी ने सुबह नाश्ते के समय आसियान-भारत शिखर बैठक में भाग लिया। फिर उन्होंने ट्वीट किया, ‘‘आसियान-भारत शिखर बैठक में आसियान देशों के नेताओं से बातचीत हुई। हमें इस बात की खुशी है कि आसियान के साथ संबंध मजबूत हैं और शांत एवं समृद्ध विश्व के लिये हम योगदान दे रहे हैं।’’ भारत और आसियान के बीच व्यापारिक एवं आर्थिक संबंध हैं। चालू वर्ष में करीब इक्यासी अरब डॉलर से ज्यादा का व्यापार हुआ था, जो भारत के कुल व्यापार का साढ़े दस प्रतिशत है। भारत ग्यारह प्रतिशत से ज्यादा निर्यात आसियान देशों को करता है।
भारत और अमेरिका हिंद-प्रशांत क्षेत्र में सहयोग बढ़ाने पर सहमत हुए। इसकी रणनीति बनाई जाएगी। इस क्षेत्र में चीन अपना प्रभाव बढ़ाने का प्रयास कर रहा है। इससे क्षेत्रीय सुरक्षा और संतुलन के लिए खतरा पैदा हुआ है। मोदी ने इस बात पर जोर दिया कि अमेरिका अब भारत में रक्षा उपकरण और उद्योग स्थापित करे और यहीं पर इसे तैयार करे। वहीं आतंकवाद के मुद्दे पर भी चर्चा हुई। उप-राष्ट्रपति पेंस ने अमेरिका और भारत के बीच सहयोग को बेहतर बताया।
मोदी ने आस्ट्रेलिया के प्रधानमंत्री स्कॉट मॉरीसन के साथ द्विपक्षीय संबंधों को और मजबूत करने पर भी चर्चा की। पूर्वी एशिया शिखर सम्मेलन के मौके पर दोनों नेताओं के बीच अलग से हुई बैठक में व्यापार, रक्षा और सुरक्षा जैसे क्षेत्रों में द्विपक्षीय संबंधों को और मजबूत करने पर बातचीत हुई। मोदी ने प्रतिष्ठित फिनटेक फेस्टिवल में मुख्य व्याख्यान भी दिया। वह फिनटेक फेस्टिवल को संबोधित करने वाले विश्व के पहले नेता हैं।
कुल मिलाकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सिंगापुर में पूर्वी एशिया शिखर सम्मेलन के आयोजन और मंच का बेहतरीन उपयोग किया। 18 देशों के नेताओं से मिलने के अलावा उन्होंने क्षेत्रीय और वैश्विक मुद्दों की ओर ध्यान खींचा। यही कारण था कि मोदी को सिंगापुर में सर्वाधिक अहमियत मिली।
(लेखक हिन्दू पीजी कॉलेज में एसोसिएट प्रोफेसर हैं। ये उनके निजी विचार हैं।)