वर्ल्ड डेटा लैब के अनुसार भारत में वर्ष 2019 के अंत तक लगभग 4 करोड़ आबादी गरीब रह जायेगी, जिनकी प्रतिदिन की आय 135 रूपये है। उल्लेखनीय है कि वर्ष 2011 में भारत में गरीबों की संख्या लगभग 27 करोड़ थी। सरकार के प्रयासों से देश में गरीबी कम हो रही है। वर्ल्ड डेटा लैब कहना है कि भारत में गरीबों की संख्या वर्ष 2030 तक कम होकर 30 लाख रह जायेगी। कहने का अर्थ है कि स्वच्छता में वृद्धि से बीमारियों पर होने वाले लोगों के खर्च में कमी आई है, जो कि उनकी आर्थिक दशा में सुधार आने की एक प्रमुख वजह है।
महात्मा गांधी का कहना था कि राजनीतिक स्वतंत्रता से ज्यादा जरूरी है स्वच्छता। स्वच्छता को सुनिश्चित करके ही हम स्वस्थ रह सकते हैं और एक सशक्त देश का निर्माण करने में समर्थ हो सकते हैं। स्वच्छता से ग्रामीण भारत को भी मजबूत बनाया जा सकता है। नदियों एवं पर्यावरण को स्वच्छ बनाकर हम नई पीढ़ी को जीवनदान दे सकते हैं।
महात्मा गांधी खुले में शौच करने को समाज के लिये कलंक मानते थे। वे चाहते थे कि हर घर में शौचालय हो और उसे साफ-सुथरा रखा जाये। अपने घर एवं आसपास की गंदगी की सफाई देशवासी खुद से करें। उनका विचार था कि गंदगी से बीमारी फैलती है और लोग असमय ही काल-कवलित हो जाते हैं। बीमारी को ठीक करने में लोगों को अपनी जमा-पूँजी खर्च करनी पड़ती है।
मोदी सरकार इस तथ्य से अच्छी तरह से वाकिफ है और गांधी के स्वच्छता के सपने को पूरा करने की दिशा में प्रधानमंत्री मोदी पूरी सक्रियता से जुटे हुए हैं। इसीके मद्देनजर स्वच्छ भारत मिशन आगाज वर्ष 2014 में गांधी जयंती के अवसर पर किया गया।इसके जरिये शहरों के गली-मोहल्लों, सड़क आदि को स्वच्छ बनाने का काम किया जा रहा है। इसके तहत अब तक 10 करोड़ 7 लाख 50 हजार शौचालय बनाये जा चुके हैं। आज देश के 6 लाख गाँवों के हर घर में शौचालय है। सभी राज्यों एवं केंद्र शासित प्रदेशों में शौचालय की उपलब्धता सुनिश्चित की गई है। वर्ष 2014 में देश के लगभग 39 प्रतिशत गाँवों में शौचालय की सुविधा थी, जो आज बढ़कर 100 प्रतिशत हो गई है।
वर्ल्ड डेटा लैब के अनुसार भारत में वर्ष 2019 के अंत तक लगभग 4 करोड़ आबादी गरीब रह जायेगी, जिनकी प्रतिदिन की आय 135 रूपये है। उल्लेखनीय है कि वर्ष 2011 में भारत में गरीबों की संख्या लगभग 27 करोड़ थी। सरकार के प्रयासों से देश में गरीबी कम हो रही है। वर्ल्ड डेटा लैब कहना है कि भारत में गरीबों की संख्या वर्ष 2030 तक कम होकर 30 लाख रह जायेगी। कहने का अर्थ है कि स्वच्छता में वृद्धि से बीमारियों पर होने वाले लोगों के खर्च में कमी आई है, जो कि उनकी आर्थिक दशा में सुधार आने की एक प्रमुख वजह है।
बीमारियों की एक बड़ी वजह दूषित जल पीना है।“वाटर एड” की एक रिपोर्ट के मुताबिक भारत में 16.3 करोड़ लोग स्वच्छ जल पीने से महरूम हैं। भारत की ग्रामीण इलाकों में एक बड़ी आबादी आज भी दूषित जल पीने के लिए मजबूर है, जबकि वर्ष 2017 में विश्व जल दिवस के दिन संयुक्त राष्ट्र संघ ने स्वच्छ जल पीना इंसान का बुनियादी हक बताया था। मोदी सरकार इस बात को समझती है, इसलिए सरकार नल से जल अभियान के माध्यम से हर घर तक स्वच्छ जल पहुंचाने की दिशा में काम कर रही है।
सरकार ने गंगा को स्वच्छ बनाने के लिये एक अलग से मंत्रालय बनाया है। नमामि गंगे के नाम से गंगा की सफाई योजना शुरू की गई है, जिसके तहत गंगा को स्वच्छ बनाने की कोशिश की जा रही है और धीरे-धीरे इसका भी दिख रहा है। प्लास्टिक के कचरे के उन्मूलन के लिए भी सरकार ने कमर कसी है। लेकिन ऐसे अभियान तभी अपना पूरा प्रभाव दिखा पाएंगे जब आम जन भी अपनी जिम्मेदारी को समझेगा।
वित्त वर्ष 2019-20 के बजट में सरकार ने पर्यावरण को स्वच्छ बनाने के लिये 2954.72 करोड़ रूपये का प्रावधान किया है, जो पिछले साल की बजट से 10.4 प्रतिशत अधिक है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इसे ग्रीन बजट का नाम दिया है। कहा जा सकता है कि आज स्वच्छता का अर्थ व्यापक हो गया है। अब हमें स्वच्छता को केवल गंदगी से जोड़कर नहीं देखना होगा। गंदगी को तो साफ करें ही साथ ही पर्यावरण को भी स्वच्छ बनायें।
देश और धरती को बचाने के लिये यह जरूरी है और यह महत्ती कार्य सबके योगदान से ही संभव है। महात्मा गांधी की इस 150वीं जयंती देश के लोगों के लिए इस संकल्प की होनी चाहिए कि उनके स्वच्छ भारत के सपने को पूरा करने में सरकार के प्रत्येक प्रयास में लोग अपना पूरा समपर्ण व सहयोग देंगे। राष्ट्रपिता के प्रति यही हमारा सबसे बड़ा सम्मान होगा।