कहा जाता है कि संकट की स्थिति में ही नेतृत्व की पहचान होती है. पीएम मोदी न सिर्फ़ कोरोना से लड़ाई में अपनी जिम्मेदारी को बखूबी निभा रहे बल्कि जनता के अन्दर भी इस तरह की भावना पैदा किए हैं कि वह अपने घर-परिवार के साथ-साथ देश और समाज की भी सोचे। इसी सोच का नतीजा है कि कोरोना संकट से लड़ने में मोदी की हर आवाज़ पर देश की जनता उनके साथ खड़ी है।
पूरी दुनिया पहली बार विषाणुजनित महामारी के बहुत बड़े संकट से जूझ रही है। अमेरिका और चीन जैसे देश पस्त हो चुके हैं। लेकिन पूरी दुनिया की नजर एक ही शख्स पर है। लोग उम्मीद लगाये बैठे थे कि दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी आबादी वाले देश के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी इस महामारी से कैसे निपटते हैं।
संतोषजनक है कि मोदी अबतक इस विषय में एकदम सजग और तत्परतापूर्वक निर्णय लेने वाले प्रधानमंत्री सिद्ध हुए हैं। उनके नेतृत्व में न केवल भारत खुद इस महामारी का बेहतर ढंग से सामना कर रहा है बल्कि दुनिया के अन्य देशों की सहायता भी कर रहा है। कहना गलत नहीं लगता कि इस मोर्चे पर मोदी दुनिया के सबसे बेहतर नेता सिद्ध हो रहे हैं।
आतंरिक मोर्चे पर नरेन्द्र मोदी के सामने चुनौती थी कि कैसे आम लोगों तक कोरोना वायरस के सामुदायिक संक्रमण की स्थिति को पैदा होने से रोका जाए। इसके लिए जनता से घर में रहने की अपील की गई। आईडिया क्लिक कर गया। लॉकडाउन की अपील को भारत की जनता ने सर माथे पर लिया और वही किया जिसकी जनता से उम्मीद थी।
इस तरह का प्रयोग भारत जैसे देश में, जिसकी आबादी 130 करोड़ के करीब है, के लिए बिलकुल नया था। लेकिन इसके कारण ही अबतक देश में कोरोना अपना भयावह रूप नहीं ले सका है। दुनिया के अन्य देशों के मुकाबले हमारी स्थिति बेहतर है। ऑक्सफ़ोर्ड यूनिवर्सिटी ने भी भारत के लॉकडाउन को सौ प्रतिशत कामयाब बताया है।
इस कठिन समय में लोगों का मनोबल कमजोर न हो और वे निराशा व अवसाद का शिकार न हो जाएं, इसके लिए प्रधानमंत्री ने कभी थाली-घंटी बजाकर कोरोना योद्धाओं के प्रति सम्मान व्यक्त करने तो कभी प्रकाश करके अपनी राष्ट्रीय एकता दिखाने जैसे आह्वान किए जिसका असर देश भर में देखने को मिला।
अमेरिका, जो दुनिया की महाशक्ति है, उसके सामने समस्या थी कि भारत उसे जीवन रक्षक दवाइयों की खेप दे। इस पशोपेश में मोदी ने जो फैसला किया वह अपने आप में कमाल का था। उन्होंने न सिर्फ़ लोगों की जान बचने के लिए न सिर्फ़ अमेरिका को अपितु दुनिया के कम कम से पचास देशों में दवाई की खेप पहुंचवाई।
कहा जाता है कि संकट की स्थिति में ही नेतृत्व की पहचान होती है, पीएम मोदी ने न सिर्फ़ इस जिम्मेदारी को बखूबी निभाया बल्कि जनता के अन्दर भी इस तरह की भावना पैदा की, कि वह अपने घर-परिवार के साथ-साथ समाज और देश की भी सोचे। इसी सोच का नतीजा है कि कोरोना संकट से लड़ने में मोदी की हर आवाज़ पर देश की जनता उनके साथ खड़ी है।
जिन्होंने मोदी के इस स्वरुप को पहली बार देखा है, उनको अचरज हो सकता है लेकिन इस भूमिका की नींव तो बहुत पहले 2001 में पड़ गई थी जब गुजरात के विनाशकारी भूकंप में कम से कम 20,000 लोगों की मौत और कम से कम 2 लाख लोग घायल हुए थे। मोदी गुजरात के नए-नए मुख्यमंत्री बने थे और उनके सामने एक बड़ी चुनौती थी, कच्छ और भुज के पुनर्निर्माण की।
जिन्होंने पहले का भुज देखा होगा और आज का भुज देखा है, उनको अंदाजा होगा कि इस नये शहर को फिर से खड़ा करना कितना मुश्किल काम था। इस विनाशकारी भूकंप ने गुजरात की अर्थव्यवस्था को तहस नहस कर दिया था लेकिन इन चुनौतियों को नरेन्द्र मोदी ने एक अवसर के रूप में लिया और पूरे गुजरात का कायाकल्प कर दिया।
मोदी के सामने इस बार का संकट कहीं ज्यादा व्यापक है लेकिन चुनौती लेने का जज़्बा न पहले कम था न आज कम हुआ है। पीछे मुड़कर देखने का प्रश्न ही नहीं जब देश की जनता खुद प्रधानमंत्री के साथ खड़ी हो। सरकार और जनता के बीच ये परस्पर सहयोग ही कोरोना के विरुद्ध देश की जीत की इबारत लिखेगा।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं। ये उनके निजी विचार हैं।)