मोदी सरकार पर सत्ता में आने के कुछ समय बाद से ही विपक्षियों द्वारा यह आरोप लगाया जाता रहा है कि इस सरकार की पाकिस्तान और चीन को लेकर कोई विदेशनीति नहीं है। हालाकि ज्यादातर ये आरोप लगाने वाली मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस शायद ये भूल जाती है कि जब वो खुद सत्ता में थी, तब देश ने पाक और चीन के प्रति उसकी भी विदेशनीति खूब देखी थी। देश ने देखा था कि कैसे चीनी फ़ौज जब ना तब देश की सीमा के अंदर घुसकर डेरा जमाए बैठी रहती थी और कांग्रेस सरकार कोई ठोस कार्रवाई करने की बजाय चीनी हुकूमत से आग्रह करने में लगी रहती कि अपनी फौजों को वापस बुलाएं।
मोदी सरकार के ये शांति प्रयास इस नाते उचित थे कि भविष्य में उसपर शांति और सम्बन्ध-सुधार के लिए प्रयास नहीं करने का आरोप न लगे। लेकिन, इन सब प्रयासों के बदले जब भारत को अपने पाक-चीन जैसे पड़ोसियों से हमेशा की तरह सिर्फ और सिर्फ धोखा तथा असहयोग ही मिला तो आखिर अब मोदी सरकार ने उनके प्रति अपनी नीति में बड़ा परिवर्तन कर दिया है। अब पाकिस्तान और चीन के प्रति भारत की उदारवादी और मैत्रीपूर्ण नीति का स्थान स्पष्ट आक्रामकता ने ले लिया है। पहले पीओके और बलूचिस्तान पर प्रधानमंत्री मोदी का कड़ा वक्तव्य देना और अब सरकार द्वारा अरुणाचल सीमा पर ब्रह्मोस मिसाइलों की तैनाती का निर्णय लेना, ये दोनों ही कदम पाक-चीन के प्रति मोदी सरकार की बदली नीति के ही प्रतिसूचक हैं।
खैर! मोदी सरकार ने सत्ता में आने के बाद पाकिस्तान और चीन दोनों से ही संबंधों को बेहतर करने के लिए भरपूर प्रयास किए। फिर चाहें वो प्रधानमंत्री मोदी द्वारा पाक प्रधानमंत्री को अपने शपथ-ग्रहण समारोह में बुलाना हो या अचानक ही उनसे मिलने पाकिस्तान चले जाना हो अथवा बातचीत के लिए आगे बढ़कर हर संभव प्रयास करना हो। साथ ही, चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग के भारत आने पर उनका भव्य स्वागत करना भी चीन से संबंधों को सुधारने का ही एक महत्वपूर्ण प्रयास था। मोदी सरकार के ये प्रयास इस नाते उचित थे कि भविष्य में उसपर शांति और सम्बन्ध-सुधार के लिए प्रयास नहीं करने का आरोप न लगे। लेकिन, इन सब प्रयासों के बदले जब भारत को अपने इन पड़ोसियों से हमेशा की तरह सिर्फ और सिर्फ धोखा तथा असहयोग ही मिला तो आखिर अब मोदी सरकार ने उनके प्रति अपनी नीति में बड़ा परिवर्तन कर दिया है। अब पाकिस्तान और चीन के प्रति भारत की उदारवादी और मैत्रीपूर्ण नीति का स्थान स्पष्ट आक्रामकता ने ले लिया है। पहले पीओके और बलूचिस्तान पर प्रधानमंत्री मोदी का कड़ा वक्तव्य देना और अब सरकार द्वारा अरुणाचल सीमा पर ब्रह्मोस मिसाइलों की तैनाती का निर्णय लेना, ये दोनों ही कदम पाक-चीन के प्रति मोदी सरकार की बदली नीति के ही प्रतिसूचक हैं।
अब बलूचिस्तान पर प्रधानमंत्री के बोलने के बाद से ही इधर पाकिस्तान एकदम हलकान हुआ पड़ा है और उसे सूझ नहीं रहा कि क्या करे तो उधर अरुणाचल सीमा पर ब्रह्मोस की तैनाती के निर्णय से चीन अलग हैरान-परेशान है। दरअसल चीन की परेशानी का मुख्य कारण यह है कि ब्रह्मोस्त्र के जैसी फिलहाल कोई मिसाइल चीन के पास नहीं है। ब्रह्मोस की रेजं २९० किमी है, मगर इसकी गति लगभग एक किमी प्रति सेकेण्ड है। यह गति ही चीन के लिए समस्या है, क्योंकि चीन के पास इससे अधिक गति वाली किसी मिसाइल के होने की बात अभी सामने नहीं आई है। तिस पर इस मिसाइल को बहुत जल्दी छोड़ा जा सकता है। इसके अलावा अरुणाचल सीमा पर से ब्रह्मोस के जरिये चीन के तमाम क्षेत्र भारत की जद में होंगे। ये सब बातें चीन को परेशान करने के लिए काफी हैं।
पाकिस्तान के प्रति जब मोदी सरकार ने बलूचिस्तान नीति के जरिये कठोर रुख अपनाया, तब देश के सेकुलर ब्रिगेड के सीने पर सांप लोटने लगा था। ऐसे में, संभव है कि अरुणाचल सीमा पर मिसाइल तैनाती के सरकार के निर्णय की इस स्पष्ट आक्रामकता के बाद कहीं कम्युनिस्ट राष्ट्र चीन की प्रेमी देश की वामी ब्रिगेड को भी तकलीफ हो उठे। अब जो भी हो, पर इतना तो स्पष्ट है कि लबे समय बाद चीन और पाकिस्तान जैसे संदिग्ध पड़ोसियों के प्रति भारत की विदेशनीति में एक दिशा और सुदृढ़ता देखने को मिल रही है, जो कि संतोषजनक है।
स्पष्ट है कि मोदी सरकार ने इस निर्णय के जरिये चीन को यह बताने की कोशिश की है कि ये भारत सन १९६२ का कमजोर भारत नहीं है और न ही अभी देश में वैसी कमजोर व नीतिहीन सरकार ही है, जिसका फायदा उठाकर तब चीन जीत गया था। आज भारत वैश्विक महाशक्ति बनने की तरफ अग्रसर है और विकास की गति के मामले में तो चीन से भी आगे है। आज देश में एक मजबूत इरादों और स्पष्ट नीतियों वाली सरकार है, जो मित्रता भाव रखने वाले के प्रति अतिस्नेही है तो शत्रुता दिखाने वाले का प्रतिकार करने में भी पूर्णतः सक्षम है, इसलिए अब चीन आक्रामकता के नाम पर भारत के अंदरूनी हिस्सों और हालातों में हस्तक्षेप करना बंद करे। चीन के प्रति देश की विदेशनीति में दरअसल इसी प्रकार की आक्रामकता की आवश्यकता लम्बे समय से महसूस हो रही थी। सुखद है कि मौजूदा सरकार इस दिशा में बढ़ने लगी है।
बहरहाल, पाकिस्तान के प्रति जब मोदी सरकार ने बलूचिस्तान नीति के जरिये कठोर रुख अपनाया, तब देश के सेकुलर ब्रिगेड के सीने पर सांप लोटने लगा था। ऐसे में, संभव है कि अरुणाचल सीमा पर मिसाइल तैनाती के सरकार के निर्णय की इस स्पष्ट आक्रामकता के बाद कहीं कम्युनिस्ट चीन की प्रेमी देश की वामी ब्रिगेड को भी तकलीफ हो उठे। अब जो भी हो, पर इतना तो स्पष्ट है कि लबे समय बाद चीन और पाकिस्तान जैसे संदिग्ध पड़ोसियों के प्रति भारत की विदेशनीति में एक दिशा और सुदृढ़ता देखने को मिल रही है, जो कि संतोषजनक है।
(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं। ये उनके निजी विचार हैं।)