भ्रष्टाचार सूचकांक में बेहतर प्रदर्शन करने की वजह से विदेशी निवेशकों का भारत के प्रति भरोसा बढ़ा और भारत में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) में इजाफा हुआ। उदाहरण के तौर पर वित्त वर्ष 2011 के 11.8 बिलियन यूएस डॉलर के मुक़ाबले वित्त वर्ष 2020 में भारत में एफडीआई बढ़कर 43.0 बिलियन यूएस डॉलर हो गया।
भ्रष्टाचार को विकास की राह में सबसे बड़ा रोड़ा माना जा सकता है। अंतर्राष्ट्रीय कारोबार, किसी भी प्रकार के वित्तीय लेनदेन आदि में भ्रष्टाचार की गूँज साफ तौर पर सुनाई देती है। आज कोई भी ऐसा देश नहीं है, जो यह कह सके कि उसके यहाँ भ्रष्टाचार नहीं होता है। अमूमन, निवेश में कमी या बढ़ोतरी, संसाधनों के इस्तेमाल, कारोबार आदि में भ्रष्टाचार की सक्रियता बढ़ जाती है। भ्रष्टाचार का प्रभाव निर्णय लेने की क्षमता और प्राथमिकताओं के चयन पर भी पड़ता है, वहीं भ्रष्टाचार में कमी आने से विकास की गति में तेजी आती है।
भारत इस वस्तुस्थिति से अच्छी तरह से वाकिफ हो चुका है। इसलिए, वह भ्रष्टाचार को कम करने के लिए लगातार मुहिम चला रहा है। अब उसके प्रयास के सकारात्मक परिणाम दृष्टिगोचर भी होने लगे हैं। इस बात की पुष्टि टीआरएसीई (ट्रेस) द्वारा नवंबर 2020 में जारी एक रिपोर्ट से भी होती है। ट्रेस किसी भी देश में रिश्वतखोरी की कम या ज्यादा स्थिति के आधार पर वैश्विक स्तर पर देशों की श्रेणी जारी करता है। ट्रेस द्वारा जारी 194 देशों की इस सूची में भारत ने 77वां स्थान हासिल किया है।
ट्रेस 2020 की रिपोर्ट के अनुसार रिश्वतखोरी को कम करने के लिए किए जा रहे सुधारों के संदर्भ में भारत ने कुल 45 अंक हासिल की। ट्रेस चार अलग-अलग मापदंडों जैसे पारदर्शिता, व्यापार, नागरिकों की प्रतिक्रिया और समाज में रिश्वतखोरी का विरोध आदि मापदंडों के आधार पर विविध देशों द्वारा भ्रष्टाचार को कम करने के लिए अपनाये गए उपायों को दृष्टिगत करते हुए अपनी रिपोर्ट जारी करता है।
भारत रिश्वत से जुड़े जोखिमों को कम करने के संदर्भ में वर्ष 2014 के बाद से अपनी श्रेणी को लगातार बेहतर करने में सफल रहा है। वर्ष 2014 में ट्रेस की रैंकिंग में भारत ने 197 देशों की सूची में कुल 80 अंक प्राप्त करके 185वां स्थान हासिल किया था, जबकि वर्ष 2017 में भारत ने 97 पायदान की लंबी छलांग लगाकर 88वें पायदान पर पहुँच गया। आज भारत 77वे पायदान पर पहुंच चुका है।
भारत ने इस उपलब्धि को सरकार द्वारा भ्रष्टाचार और रिश्वतखोरी के विरुद्ध चलाये जा रहे मुहिम की वजह से हासिल की है। सरकार भ्रष्टाचार और रिश्वतखोरी को जड़ से खत्म करने के लिए पूरी तरह से प्रतिबद्ध है।
अपने इस संकल्प को अमलीजामा पहनाने के लिये वर्ष 2018 में सरकार ने ‘प्रिवेंशन ऑफ करप्शन एक्ट 1988’ में संशोधन किया था। इस संशोधन में रिश्वत देने को भी अपराध की श्रेणी में शामिल किया गया था।
तदुपरांत, व्यक्तिगत एवं कॉर्पोरेट इकाइयों के स्तर पर भ्रष्टाचार और रिश्वतखोरी को कम करने में सरकार को सफलता मिली थी। इसके पहले तक सिर्फ रिश्वत लेने वाले को ही अपराधी माना जाता था। मामले में रिश्वत देने वाले को भी शामिल करने से भ्रष्टाचार और रिश्वतखोरी को कम करने में सरकार को अभूतपूर्व सफलता मिली।
आंकड़ों के अनुसार वर्ष 2008 से 2019 के बीच केंद्रीय सतर्कता आयोग को मिले शिकायतों में 32,579 की कमी आई। प्रशासन के हर स्तर पर कार्यप्रणाली में पारदर्शिता आई है, जिससे भ्रष्टाचार के मामलों में कमी देखी जा रही है।
केंद्रीय सतर्कता आयोग को किये जाने वाले शिकायतों की संख्या में कमी आने का एक बड़ा कारण सूचना एवं प्रौद्योगिकी के मोर्चे पर नवाचार को बढ़ावा दिया जाना है। अद्यतन तकनीक की मदद से ऑनलाइन खरीद एवं बिक्री अब ऑनलाइन की जा रही है।
इसके लिए ई-निविदा, ई-प्रोक्योरमेंट, रिवर्स नीलामी आदि प्रक्रियाओं का सहारा लिया जा रहा है। चूँकि, इन प्रक्रियाओं में भ्रष्टाचार करने की गुंजाइश न्यून है। इसलिए, भारत में भ्रष्टाचार के मामलों में उल्लेखनीय कमी आई है।
भ्रष्टाचार के कम होने से आर्थिक विकास में तेजी आती है या नहीं, इसके बारे में देश एवं विदेशों में अलग-अलग विचार हैं। ओईसीडी (ओकेड) के एक अध्ययन के मुताबिक भ्रष्टाचार की वजह से विदेशी निवेश, प्रतिस्पर्धा, सरकारी कुशलता, सरकारी खर्च, राजस्व संग्रह, मानव पूंजी निर्माण आदि में कोई कमी नहीं आती है अर्थात भ्रष्टाचार के कम होने से भी आर्थिक एवं सामाजिक स्तर पर कोई फायदा नहीं होता है, लेकिन यह संकल्पना सभी देशों में एकसमान नहीं है।
उदाहरण के तौर पर वर्ष 2012 से वर्ष 2018 के बीच भारत, इंग्लैंड, मिस्र, ग्रीस, इटली आदि देशों ने भ्रष्टाचार सूचकांक में अपनी श्रेणी को बेहतर करने में सफल रहे और इसकी वजह से इस अवधि में इन देशों के सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में सकारात्मक वृद्धि दर्ज की गई।
भारत में भ्रष्टाचार के कम होने से आर्थिक और सामाजिक मोर्चे पर हो रहे लाभ को साफ तौर पर देखा जा सकता है। भारत वर्ष 2012 के 94 पायदान से वर्ष 2018 में 78वें पायदान पर आ गया, जबकि रूस, दक्षिण अफ्रीका, ब्राज़ील तुर्की, चीन आदि देश इतना बढ़िया प्रदर्शन नहीं कर सके।
भ्रष्टाचार सूचकांक में बेहतर प्रदर्शन करने की वजह से विदेशी निवेशकों का भारत के प्रति भरोसा बढ़ा और भारत में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) में इजाफा हुआ। उदाहरण के तौर पर वित्त वर्ष 2011 के 11.8 बिलियन यूएस डॉलर के मुक़ाबले वित्त वर्ष 2020 में भारत में एफडीआई बढ़कर 43.0 बिलियन यूएस डॉलर हो गया।
इस तरह इस अवधि में एफडीआई में 263 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई। वहीं, वित्त वर्ष 2012 से वित्त वर्ष 2018 के दौरान एफडीआई में 37 प्रतिशत की वृद्धि हुई। चालू वित्त वर्ष में अप्रैल 2020 से नवंबर 2020 तक एफडीआई में 27.5 प्रतिशत की वृद्धि हुई, जो राशि में 34 बिलियन यूएस डॉलर थी।
अर्थशास्त्री डॉ कौशिक बसु ने वर्ष 2011 में एक शोधपत्र प्रस्तुत किया था, जिसके अनुसार रिश्वत देने की आवृति को कम किया जा सकता है, लेकिन इसके लिए रिश्वत देने को कानूनी रूप से वैध घोषित करना पड़ेगा। अर्थात रिश्वत देने वाले को सजा नहीं दिया जाये, लेकिन रिश्वत लेने वाले के विरुद्ध कानूनी कार्रवाई की जाये। ऐसा करने से रिश्वत देने वाला कानून के शिकंजे से मुक्त रहने पर रिश्वत लेने वाले के खिलाफ़ सूचनाएँ सरकार के साथ साझा करेगा, जिससे रिश्वत लेने वाले के विरुद्ध कानूनी कार्रवाई करना आसान हो जायेगा।
भ्रष्टाचार को कम करने के उपायों के बारे में वैश्विक स्तर पर लोगों की अलग-अलग राय है, लेकिन भारत के संदर्भ में रिश्वत लेने एवं देने दोनों को सजा देने से भ्रष्टाचार को कम करने में सफलता मिल सकती है।
वर्ष 2018 में ‘प्रिवेंशन ऑफ करप्शन एक्ट 1988’ में संशोधन करके रिश्वत देने वाले को भी अपराधी की श्रेणी में डालने से भ्रष्टाचार के कम होने की संभावना बढ़ी है। मामले में सूचना एवं प्रौद्योगिकी के बढ़ते उपयोग से भी सरकारी एवं निजी कार्यों में पारदर्शिता आ रही है। डिजिटल लेनदेन के बढ़ते चलन से भी रिश्वतख़ोरी पर लगाम लगाने में सफलता मिल रही है।
भारत में भ्रष्टाचार और आर्थिक विकास के बीच सीधा संबंध देखा गया है। अस्तु, अगर भारत में भ्रष्टाचार में कमी आती है तो यहाँ विकास को भी बल मिलेगा। मौजूदा समय में भी भ्रष्टाचार कम होने के सकारात्मक परिणाम परिलक्षित हो रहे हैं।
ऐसे में यह कहना गलत नहीं होगा कि भ्रष्टाचार के कम होने से भारत में विकास को रफ्तार मिल रहा है। साथ ही, लोगों का सुशासन पर विश्वास भी बढ़ रहा है, जिसकी बानगी सतर्कता आयोग को किये जाने वाले शिकायतों की संख्या में कमी आना है।
(लेखक भारतीय स्टेट बैंक के कॉरपोरेट केंद्र मुंबई के आर्थिक अनुसंधान विभाग में कार्यरत हैं। आर्थिक मामलों के जानकार हैं। प्रस्तुत विचार उनके निजी हैं।)