प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी यों ही नहीं आज के दौर के सबसे बड़े नेता हैं। पहले लोकसभा चुनावों में भाजपा को बंपर बहुमत दिलाकर और अब पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव के नतीजों के बाद पूर्वोत्तर के मणिपुर, समुद्री राज्य गोवा, पहाड़ी उत्तराखंड और गंगा-यमुना के विशाल मैदान उत्तर प्रदेश को जिस ढंग से उन्होंने भगवा झंडे के नीचे समेटा वह उन्हें देश के सार्वकालिक जन नायकों में शुमार करने के लिए काफी है। खासकर उत्तर प्रदेश की सफलता तो दोबारा लोकसभा चुनाव जीत लेने जैसी ही अहमियत रखती है।
इन चुनावी नतीजों ने आजादी के बाद से ही चले से आ रहे जातिगत और धार्मिक वोट बैंक को तहस-नहस कर दिया। यही नहीं, उत्तर प्रदेश में यह मिथ भी टूटा कि मुसलमान भारतीय जनता पार्टी को वोट नहीं करते; कि दलित वोटों पर केवल मायावती का और पिछड़ा-मुस्लिम गठजोड़ पर मुलायम सिंह परिवार के वारिस अखिलेश यादव का कब्जा है, जो कांग्रेस के साथ जुगलबंदी कर यह मान बैठे थे कि उत्तर प्रदेश की सत्ता तो उनकी मुट्ठी में है।
भाजपा अध्यक्ष अमित शाह ने कहा कि हाल के विधानसभा चुनाव में पार्टी को मिली जीत लोगों के जाति-पाति, परिवारवाद और भ्रष्टाचार के खिलाफ वोट करने का परिणाम थी; और लोगों ने प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व और उनकी जनकल्याण की योजनाओं एवं सुशासन के एजेंडे के पक्ष में जनादेश दिया। अमित शाह ने दावा किया कि भाजपा की जीत से केंद्र सरकार द्वारा शुरू की गई लोक कल्याणकारी योजनाओं और विमुद्रीकरण के साहसिक निर्णय पर मुहर लगी है। अमित शाह की बात सच है।
आखिर प्रधानमंत्री मोदी ने अपने जोड़ीदार अमित शाह के साथ सफलता की यह इबारत लिखी कैसे ? इसकी वजहों पर विचार करें, तो यह पाएंगे कि साल 2014 के बाद से ही प्रधानमंत्री ने जुबानी जुगाली की बजाय हाड़तोड़ काम करना शुरू कर दिया था। उनकी ज्यादातर योजनाएं महिला, युवा और दलितों को ध्यान में रखकर बनाईं गईं थीं। ‘स्वच्छ भारत’, ‘आदर्श गांव’, प्रधानमंत्री मुद्रा योजना आदि का लक्ष्य शहरी सक्षम वर्ग न होकर गंवई इलाका और उसके लोग थे। यहां तक कि नोट बंदी और सर्जिकल स्ट्राइक जैसे कड़े फैसलों से हर तबके में यह संदेश गया कि मोदी जाति और धर्म के खाने में सिमट कर काम करने वाली शख्सियत नहीं हैं।
उनकी इमेज की यह शुरुआती बढ़त उनके कथित विरोधियों की तुलना में इतनी मजबूत थी कि जब नतीजे आए, तो विरोधी चारों खाने चित थे। मोदी की तेज कार्यशैली का अंदाज़ा इसी से लगा सकते हैं कि जहां दूसरे दलों के नेता हार का गम गलत करने में लगे हैं, वहीं प्रधानमंत्री जीत का उत्सव मनाने की बजाय आगे की तैयारियों में जुट गए हैं। पार्टी की विजय स्वागत बैठकों में भी उनका संदेश साफ होता है – न खुद चैन से बैठूंगा, न ही बैठने दूंगा।
इसी 16 मार्च को पार्टी के संसदीय दल की बैठक में उन्होंने भाजपा के शीर्ष नेताओं के साथ 2019 में होने वाले लोकसभा चुनाव के लिए पार्टी की रणनीति का खाका खींचा, जिसमें दलितों को अपने पक्ष में लाने की रणनीति सबसे ऊपर थी। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का एजेंडा साफ था, भाजपा नेता युवाओं से जुड़ें और दलितों को मुख्यधारा में लाकर उनको लाभ पहुंचाया जाए। उन्होंने पार्टी नेताओं से अंबेडकर के कार्यों एवं उनके योगदान का प्रचार-प्रसार करने को भी कहा। भाजपा अध्यक्ष अमित शाह ने कहा कि हाल के विधानसभा चुनाव में पार्टी की जीत के बाद 2019 में आसन्न लोकसभा चुनाव पार्टी के लिए अगली बड़ी चुनौती हैं।
पार्टी ने उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में काफी संख्या में दलितों का वोट पाने के लिए इस तबके का धन्यवाद करते हुए दलितों तक पहुंच बनाने की कोशिश को जारी रखने पर जोर दिया। भाजपा संसदीय दल की बैठक में ही यह भी तय हुआ कि 14 अप्रैल को बाबा साहेब भीमराव अंबेडकर की जयंती के मौके पर पार्टी सप्ताह भर तक विभिन्न कार्यक्रम एवं समारोहों का आयोजन करेगी। पार्टी प्रत्येक पंचायत और वार्ड में एक सप्ताह का कार्यक्रम आयोजित करेगी।
भाजपा ने छह अप्रैल को अपना स्थापना दिवस भी व्यापक रूप से मनाने का फैसला किया है, जिसमें पार्टी के नेता और कार्यकर्ता ‘स्वच्छ भारत’ अभियान में हिस्सा लेने के साथ ही दलित समुदाय को अपने साथ जोड़ेंगे। प्रधानमंत्री मोदी ने पार्टी नेताओं से एक सप्ताह के कार्यक्रम के दौरान भीम एप्प और डिजिटल भुगतान माध्यम के उपयोग को गति प्रदान करने तथा लोगों में इसके प्रति जागरूकता फैलाने एवं इन्हें डाउनलोड करने में मदद करने को कहा।
प्रधानमंत्री ने कहा कि युवाओं को केंद्र सरकार की लोक कल्याण की योजनाओं एवं सुशासन का ‘एंबेसेडर’ बनाना चाहिए। मोदी ने कहा कि आज युवा समाचार पत्रों और टीवी चैनलों पर निर्भर रहने की बजाए मोबाइल फोन का ज्यादा उपयोग करते हैं। ऐसे में युवाओं के साथ सम्पर्क बनाने के लिए इस माध्यम का उपयोग करें। प्रधानमंत्री ने पार्टी नेताओं से कहा कि वे युवाओं से 10वीं कक्षा से ही सम्पर्क स्थापित करना शुरू करें।
भाजपा अध्यक्ष अमित शाह का दावा था कि हाल के विधानसभा चुनाव में पार्टी को मिली जीत लोगों का जाति-पाति, परिवारवाद और भ्रष्टाचार के खिलाफ वोट करने का परिणाम था और लोगों ने प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व और उनकी जनकल्याण की योजनाओं एवं सुशासन के एजेंडे के पक्ष में जनादेश दिया। अमित शाह ने दावा किया कि भाजपा की जीत से केंद्र सरकार द्वारा शुरू की गई लोक कल्याणकारी योजनाओं और विमुद्रीकरण के साहसिक निर्णय पर मुहर लगी है।
शाह की बात सच है। अभी तक सभी राजनीतिक दल दलितों की भलाई के नाम पर उन्हें वोट बैंक बना कर चुनावों के दौरान इस्तेमाल करते थे और लाभ मिलने के बाद भूल जाते थे। पहली बार प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के रूप में उन्हें एक ऐसा नेता मिला है, जिसका एजेंडा जाति, धर्म और सत्ता भर न होकर सेवा और विकास है। आखिर फिर दलित उनके साथ क्यों न जुड़ें!
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं। ये उनके निजी विचार हैं।)