टीकाकरण में तेजी से आर्थिक गतिविधियों में भी तेजी आई है। कृषि क्षेत्र का प्रदर्शन बेहतर दिख रहा है और त्योहारी मांग से ठेके वाली सेवा गतिविधियों में सुधार हुआ है। निर्यात में भी तेजी आई है। गैर-तेल एवं गैर-स्वर्ण आयात मांग में भी सुधार के संकेत हैं। हालांकि कोरोना वायरस के नये स्वरूप ओमीक्रोन से देश में कुछ चुनौतियां जरूर बढ़ी हैं, लेकिन फिलहाल स्थिति नियंत्रण में है। रिजर्व बैंक के गवर्नर का मानना है कि महामारी की दूसरी लहर से आर्थिक सुधार में जो बाधा आई थी, वह अब दूर हो रही है और सुधार गति पकड़ रहा है।
पिछले दिनों मौद्रिक समीक्षा में उम्मीद के मुताबिक रिजर्व बैंक ने रेपो और रिवर्स रेपो दर को यथावत रखने का निर्णय लिया। यह निर्णय मौद्रिक नीति समिति (एमपीसी) के सभी 6 सदस्यों ने सर्वसमिति से लिया है। इसके पहले मई 2020 में रिजर्व बैंक ने रेपो दर में कटौती की थी। इस प्रकार, रेपो दर 4 प्रतिशत पर और रिवर्स रेपो दर 3.35 प्रतिशत पर बरकरार है। ज्ञात हो कि रेपो दर का यह स्तर वर्ष 2001 के अप्रैल महीने के बाद का सबसे निचला स्तर है।
बहरहाल, रिजर्व बैंक के इस ताजा फैसले से जो लोग गृह ऋण लिए हुए हैं, उन्हें राहत मिली है, क्योंकि अमूमन लोग परिवर्तनशील ब्याज दर पर गृह ऋण लेते हैं और यह लंबी अवधि के लिए होता है। इसलिए, रेपो दर में कमी या बेशी से उनके गृह ऋण का ब्याज दर भी कम या ज्यादा होता है। गौरतलब है कि गृह ऋण का ब्याज दर अभी अपने 20 साल के निचले स्तर पर है। इसके अलावा, दूसरे प्रकार के ऋण लेने वाले ग्राहकों के लिए भी यह राहत देने वाली खबर है।
पूर्ण पारदर्शिता और मानकीकरण सुनिश्चित करने के लिये रिजर्व बैंक ने बैंकों को 1 अक्तूबर, 2019 से प्रभावी ऋण श्रेणी के भीतर एक समान बाहरी बेंचमार्क अपनाने का आदेश दिया था। इसके पूर्व ऋण दर की सीमांत लागत (एमसीएलआर) के विपरीत प्रत्येक बैंक के लिये अलग–अलग आंतरिक प्रणाली थी।
रिजर्व बैंक ने बैंकों को चार बाहरी बेंचमार्क विकल्पों यथा रेपो दर, 91 दिवसीय टी-बिल प्रतिफल, 182 दिवसीय टी-बिल प्रतिफल या फिर अन्य कोई बेंचमार्क बाज़ार ब्याज दर चुनने का मौका दिया था। बावजूद इसके, अनेक बैंकों ने रेपो दर विकल्प का चयन किया है, जिसके कारण रेपो दर में बदलाव के अनुसार बैंक ऋण दर में भी बदलाव आता है, जिसका प्रत्यक्ष प्रभाव ग्राहकों की जेबों पर पड़ता है।
भले ही, रिजर्व बैंक ने अपने समायोजन वाले रुख को बरकरार रखा है, लेकिन उसकी मंशा क्रमबद्ध तरीके से बैंकिंग तंत्र से तरलता को कम करना है। रिजर्व बैंक ने रिवर्स रेपो दर को 3.35 प्रतिशत पर यथावत रखा है, लेकिन बाजार से अतिरिक्त तरलता को सोखने के लिए रिजर्व बैंक 14 दिन के वेरिएबल रिवर्स रेपो दर का इस्तेमाल कर रहा है।
उदाहरण के तौर पर रिजर्व बैंक 3 दिसंबर तक इस प्रक्रिया के जरिये बैंकिंग तंत्र से 6 लाख करोड़ रुपये की नकदी खींच चुका है और 31 दिसंबर तक 14 लाख करोड़ रूपये की नकदी और भी खींच लेगा। रिजर्व बैंक के गवर्नर शक्तिकांत दास ने यह भी कहा कि जनवरी 2022 से नीलामी के जरिये तरलता में कमी लाई जायेगी। हालांकि, रिजर्व के ऐसे फैसले से अल्पावधि दरों में इजाफा हो सकता है, लेकिन बैंक नकदी का समुचित इस्तेमाल कर सकेंगे, जिससे उन्हें ब्याज आय का कम नुकसान होगा।
रिजर्व बैंक ने मार्जिनल स्टैंडिंग सुविधा (एमएसएफ) में भी बदलाव किया है। इस सुविधा के जरिये बैंक आपात स्थिति में तरलता का प्रबंधन करते हैं। अब बैंक जमा आधार की 2 प्रतिशत तक उधारी ले सकते हैं, जबकि महामारी के दौरान 3 प्रतिशत तक उधारी लेने की अनुमति थी। यह निर्णय इसलिए लिया गया है, क्योंकि कोरोना महामारी का प्रभाव अब धीरे-धीरे कम हो रहा है।
मौद्रिक समिति के सदस्यों का मानना है कि टीकाकरण में तेजी से आर्थिक गतिविधियों में भी तेजी आई है। कृषि क्षेत्र का प्रदर्शन बेहतर दिख रहा है और त्योहारी मांग से ठेके वाली सेवा गतिविधियों में सुधार हुआ है। निर्यात में भी तेजी आई है। गैर-तेल एवं गैर-स्वर्ण आयात मांग में भी सुधार के संकेत हैं। हालांकि कोरोना वायरस के नये स्वरूप ओमीक्रोन से देश में कुछ चुनौतियां जरूर बढ़ी हैं, लेकिन फिलहाल स्थिति नियंत्रण में है। रिजर्व बैंक के गवर्नर का मानना है कि महामारी की दूसरी लहर से आर्थिक सुधार में जो बाधा आई थी, वह अब दूर हो रही है और सुधार गति पकड़ रहा है।
रिजर्व बैंक ने चालू वित्त वर्ष में सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) की वृद्धि दर 9.5 प्रतिशत रहने का अनुमान लगाया है, जबकि मुद्रास्फीति के 5.3 प्रतिशत रहने का अनुमान लगाया है। शक्तिकांत दास के अनुसार मौजूदा परिस्थिति में मुद्रास्फीति को लक्ष्य के अनुरूप रखने के साथ-साथ सुधार गतिविधियों में भी तेजी लाने की जरूरत है। श्री दास के अनुसार मुद्रास्फीति में वृद्धि से बहुत ज्यादा चिंता नहीं है, क्योंकि इसकी आयु अल्प है। इसके कुछ दिनों के बाद नियंत्रण में आने की प्रबल संभावना है।
रिजर्व बैंक डिजिटल लेनदेन में तेजी लाने के लिए उपयोगकर्ताओं के लिए यूपीआई आधारित भुगतान हेतु एक ऐसा फीचर मोबाइल फोन लांच करने वाला है, जिसके जरिये बिना इंटरनेट के भी भुगतान किया जा सकेगा।
वर्तमान में यूपीआई के माध्यम से प्रति दिन 14 करोड़ लेनदेन किया जा रहा है। यह आज देश की सबसे बड़ी खुदरा भुगतान प्रणाली है और इसके जरिये 200 रुपए तक के लेनदेन 50 प्रतिशत तक किए जा रहे हैं, लेकिन कनेक्टिविटी नहीं रहने की वजह से खुदरा उपयोगकर्ताओं को अनेक मुश्किलों का सामना करना पड़ता है।
रिजर्व बैंक ने खुदरा निवेशकों द्वारा यूपीआई के उपयोग के प्रोत्साहन देने के लिए खुदरा प्रत्यक्ष योजना और आईपीओ आवेदनों के लिए यूपीआई के जरिये लेनदेन करने की सीमा को 2 लाख रुपए से बढ़ाकर 5 लाख रुपए करने का भी प्रस्ताव रखा है। इससे डिजिटल लेनदेन को और भी बढ़ावा मिलने की संभावना है।
रिजर्व बैंक द्वारा उठाये गये इन सकारात्मक कदमों के आधार पर यह कहना समीचीन होगा कि रिजर्व बैंक ने अर्थव्यवस्था को मजबूत करने वाले निर्णय मौद्रिक समीक्षा में लिए हैं, जिसका फायदा निश्चित रूप से अर्थव्यवस्था और आम आदमी को मिलेगा।
(लेखक भारतीय स्टेट बैंक के कॉरपोरेट केंद्र मुंबई के आर्थिक अनुसंधान विभाग में कार्यरत हैं। आर्थिक मामलों के जानकार हैं। प्रस्तुत विचार उनके निजी हैं।)