मुलायम सिंह यादव ने छिपा लिया था राजीव गांधी का बोफोर्स घोटाला!

बोफोर्स घोटाले का जिन्न एक बार फिर बोतल से बाहर निकल आया है। देश के पूर्व रक्षामंत्री और समाजवादी पार्टी के प्रमुख मुलायम सिंह यादव ने बोफोर्स घोटाले के मामले में एक बेहद चौंकाने वाला खुलासा किया है। उनके बयान को आपराधिक स्वीकारोक्ति कहना अधिक उचित होगा। बुधवार को लखनऊ के राममनोहर लोहिया विधि विश्वविद्यालय के स्थापना दिवस समारोह में उन्होंने कहा कि ‘जब मैंने बोफोर्स तोप को देखा तो पाया कि वह ठीक से काम कर रही है। उस वक्त मेरे मन में पहला विचार यह आया कि राजीव गांधी ने बढिय़ा काम किया है, इसलिए मैंने उससे जुड़ी फाइलों को गायब कर दिया। लोगों का ऐसा मानना है कि बोफोर्स सौदा राजीव गांधी की गलती थी, लेकिन रक्षा मंत्री के तौर पर मैंने देखा कि यह सही सौदा था और राजीव ने अच्छा काम किया।’

वर्ष 2012 में स्वीडन के पूर्व पुलिस प्रमुख और इस मामले की जाँच से जुड़े रहे स्टेन लिंडस्ट्रोम ने कहा था कि राजीव ने इटली के व्यापारी ओत्तावियो क्वात्रोची को बचाने की कोशिशों पर रोक नहीं लगाई और मामले की लीपापोती को लेकर किए जा रहे प्रयासों को लेकर मूकदर्शक बने रहे। इसलिए बोफोर्स घोटाले की आँच राजीव गांधी तक पहुँची थी। राजीव गांधी पर सवाल इसलिए भी उठे थे, क्योंकि इतना बड़ा घोटाला उनकी जानकारी के बिना होना मुश्किल था।

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मुलायम सिंह यादव की इस स्वीकारोक्ति ने देश को बता दिया है कि देश में किस तरह बड़े घोटालों का सच छिपाया जाता है। जाँच को कैसे भटकाया जाता है। सबूत किस तरह नष्ट किए जाते हैं। हमारे जिम्मेदार राजनेता ही जब फाइलें गायब करा देते हैं, तब जाँच में क्या खाक साबित होगा? उल्लेखनीय है कि मुलायम सिंह यादव वर्ष 1996 से 98 के दौरान जब रक्षा मंत्री थे, तब राजीव गांधी के प्रधानमंत्रित्व काल में स्वीडन की एबी बोफोर्स कंपनी से 400 हॉविट्जर तोपों की खरीद में कथित घोटाले का मुकदमा अदालत में चल रहा था। केंद्रीय जाँच ब्यूरो वर्ष 1990 से ही इस मामले की जाँच कर रहा था, लेकिन ब्यूरो कोई ठोस सबूत नहीं जुटा सका। भला सबूत मिलते भी कैसे, स्वयं रक्षामंत्री ने फाइलें गायब करा दी थीं।
सपा प्रमुख मुलायम सिंह यादव ने फाइल गायब करने की अपनी करतूत के लिए तर्क दिया है कि उन्होंने देखा कि तोपें अच्छा काम कर रही हैं। इस सौदे को मंजूरी देकर राजीव गांधी ने अच्छा फैसला किया है। इसलिए जाँच को धीमा करने और भटकाने के लिए उन्होंने फाइलें गायब करा दीं। क्या मुलायम सिंह यादव यह स्थापित करना चाह रहे हैं कि सौदा अच्छा हो तो घोटाला किया जा सकता है? उन्होंने अपने बयान से राजीव गांधी और स्वयं को भी संदेह के घेरे में खड़ा कर दिया है। मुलायम सिंह का बयान यह सिद्ध करता है कि घोटाले में बड़े नामों की संलिप्तता थी। इसीलिए उन्होंने फाइल गायब की। यदि सबकुछ ठीक होता, तब मुलायम सिंह यादव को फाइल गायब क्यों करनी पड़ती। यहाँ यह सवाल उठने ही चाहिए कि कोई मंत्री महत्त्वपूर्ण दस्तावेज गायब कैसे करा सकता है? और जब वह यह स्वीकारे कि उसने घोटाले से जुड़ी फाइलें गायब की थीं, तब उसके खिलाफ क्या कार्रवाई होनी चाहिए?

मुलायम सिंह यादव ने किसकी खाल बचाने के लिए फाइलें गायब कीं? फाइल गायब करने का निर्णय उनका स्वयं का था या उन्होंने किसी के कहने पर यह कदम उठाया? देश के रक्षामंत्री जैसे जिम्मेदार पद पर रहते हुए मुलायम सिंह यादव ने उस वक्त देश के सबसे बड़े और चर्चित घोटाले के दस्तावेज गायब करके गंभीर अपराध को अंजाम दिया था। अब उन्होंने अपने राजनीतिक हित साधने के चक्कर में सार्वजनिक टिप्पणी करके राजनीतिक अपराध किया है। उन्होंने सरकारी व्यवस्था के प्रति जनता में अविश्वास और भ्रम पैदा किया है। आम आदमी यह ही सोचेगा कि किस तरह हमारे राजनेता भ्रष्टाचार पर पर्दा डालते हैं। बहरहाल, बोफोर्स घोटाले को जोर-शोर से उठाने वाली भारतीय जनता पार्टी इस वक्त सरकार में है। उससे अपेक्षा है कि वह इस मामले पर राजनीति नहीं बल्कि सच सामने लाने के लिए ठोस प्रयास करेगी। मुलायम सिंह यादव के बयान को आधार बनाकर बोफोर्स घोटाले की नए सिरे से जाँच करने की पहल केंद्र सरकार को करनी चाहिए। सरकार को यह भी देखना चाहिए कि क्या मुलायम सिंह यादव के खिलाफ कार्रवाई की जा सकती है? उनसे यह भी पूछा जाना चाहिए कि गायब की गई फाइलें कहाँ हैं? यदि उन फाइलों को नष्ट नहीं किया गया होगा, तब बोफोर्स घोटाले का सच सामने आ सकता है।

क्या था बोफोर्स घोटाला ?

गौरतलब है कि वर्ष 1987 में यह बात सामने आई थी कि स्वीडन की हथियार कंपनी बोफोर्स ने भारतीय सेना को तोपें सप्लाई करने का सौदा हथियाने के लिए बड़ी दलाली चुकाई है। 400 बोफोर्स तोप की खरीद का सौदा 1.3 अरब डॉलर का था। आरोप है कि स्वीडन की हथियार कंपनी बोफोर्स ने भारत के साथ सौदे के लिए 1.42 करोड़ डॉलर की रिश्वत बांटी थी। केन्द्र में कांग्रेस की सरकार थी और राजीव गांधी प्रधानमंत्री थे। काफी समय तक राजीव गांधी का नाम इस मामले के अभियुक्तों की सूची में शामिल रहा, लेकिन उनकी मौत के बाद नाम फाइल से हटा दिया गया। चूँकि इस सौदे में बिचौलिए की भूमिका निभाने और दलाली का बड़ा हिस्सा प्राप्त करने वाला इतावली व्यापारी ओत्तावियो क्वात्रोची गांधी-नेहरू परिवार के काफी नजदीक था। क्वात्रोची को बचाने और भगाने में राजीव गांधी सरकार की प्रमुख भूमिका रही।

वर्ष 2012 में स्वीडन के पूर्व पुलिस प्रमुख और इस मामले की जाँच से जुड़े रहे स्टेन लिंडस्ट्रोम ने कहा था कि राजीव ने इटली के व्यापारी ओत्तावियो क्वात्रोची को बचाने की कोशिशों पर रोक नहीं लगाई और मामले की लीपापोती को लेकर किए जा रहे प्रयासों को लेकर मूकदर्शक बने रहे। इसलिए बोफोर्स घोटाले की आँच राजीव गांधी तक पहुँची थी। राजीव गांधी पर सवाल इसलिए भी उठे थे, क्योंकि इतना बड़ा घोटाला उनकी जानकारी के बिना होना मुश्किल था। यह घोटाला भारतीय राजनीति का बहुत बड़ा मुद्दा बना, जिसने वर्ष 1989 में कांग्रेस को सत्ता से बेदखल कर दिया। अभी भी यह मुद्दा जब-तब अपनी राख में से उठकर खड़ा हो जाता है। इस बार महत्वपूर्ण अवसर बना है जब तत्कालीन रक्षामंत्री मुलायम सिंह यादव ने स्वयं स्वीकार किया है कि बोफोर्स घोटाले की जाँच को प्रभावित किया गया। देश जानना चाहता है कि क्या इस स्वीकारोक्ति के बाद बोफोर्स घोटाले का सच सामने आएगा या फिर यह आग इसलिए सुलगाई गयी है ताकि राजनीतिक दल इसकी आग पर अपनी रोटियाँ सेंक सकें?

लेखक माखनलाल चतुर्वेदी पत्रकारिता विश्वविद्यालय में कार्यरत हैं।