बाबरी मस्जिद कैसे बनी थी, इसका ज्ञान देश की जनता को है। इसका प्रमाण एएसआई की रिपोर्ट में भी मिलता है। पर्सनल लॉ बोर्ड का यह कहना कि बाबरी मस्जिद इस्लाम का हिस्सा है, हास्यास्पद है। बाबरी मस्जिद की बुनियाद ही घृणा और हिंसा थी, जिसको आज बोर्ड और ज्यादा हवा दे रहा है। पर्सनल लॉ बोर्ड कहता है कि मुस्लिम मस्जिद नहीं छोड़ सकते, न ही ज़मीन किसी को तोहफे में दे सकते। यह क्या है, सिवाय नफरत फ़ैलाने के?
देश सहमति और मेल-जोल से चलता है; टकराव से नहीं चलता। जब दो समुदायों के बीच सबंधों के पुल बनाने की बात हो, तो आपसी संवाद ही एक मात्र रास्ता है। देश में राम मंदिर बनने की राह में मुस्लिम समुदाय का एक बहुत बड़ा तबका आपसी बातचीत का समर्थक रहा है, लेकिन मुस्लिम समुदाय में ही कुछ लोग ऐसे हैं जो आपसी बातचीत को छोड़ हमेशा टकराव की सियासत पर चलना चाहते हैं। मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने पिछले कुछ समय से ऐसा ही तेवर अपनाया हुआ है। इन्हें ओवैसी जैसे कट्टरपंथियों का साथ पसंद आ रहा है। बोर्ड किसी भी हालत में सुलह के लिए तैयार नहीं है, ऐसे में बेहतर देश और समाज के निर्माण की इनकी मंशा जो ये अक्सर जताते रहते हैं, पर यकीन कैसे किया जा सकता है?
देश आगे बढ़ना चाहता है, लेकिन मुस्लिम लॉ बोर्ड एक ऐसे रास्ते पर चल रहा है, जिससे विभाजनकारी सोच की बू आती है। अगर तरक्कीपसंद मुसलमान हिन्दुओं के साथ मिल-बैठकर सहमति का रास्ता बनाते हैं, तो उससे नुकसान किसे हो सकता है? राममंदिर निर्माण की राह में सहमति के आधार पर ही आगे बढ़ा जा सकता है, कोर्ट का फैसला कुछ भी आए, सभी वर्ग स्वीकार करेंगे। लेकिन दूसरा पक्ष अगर उससे खुश नहीं हुआ तो कैसे चलेगा? रामलला का अयोध्या में भव्य मंदिर बने, यह समाज के हित में है, इससे समाज में टकराव का अंत होगा। यह सांप्रदायिक सौहार्द की एक मिसाल होगा।
कांग्रेस पार्टी के नेताओं आदि कई लोगों ने सुलह को टालने की कोशिश की और चाहा कि 2019 तक इस मामले की सुनवाई ही न हो, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने इस सोच से इत्तफाक न रखते हुए सुनवाई जारी रखने का फैसला किया है। मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड एक धार्मिक अदारा है, लेकिन यह पूरे मुस्लिम समुदाय का प्रतिनिधित्व करता हो, ऐसा ज़रूरी नहीं है।
बोर्ड ने अबतक यही सिद्ध किया है कि वो दकियानुसी विचारधारा का हामी रहा है। बात जब तीन तलाक की आई थी, तो भी बोर्ड ने टांग अड़ाने की पूरी कोशिश की, यहाँ भी कोर्ट और समाज ने बोर्ड का साथ नहीं दिया। मुस्लिम लॉ बोर्ड को पता था कि मुस्लिम महिलाओं की भावनाएं उसके रुख के बिलकुल खिलाफ थीं, मगर उसने फिर भी समस्या पैदा करने की कोशिश की।
आज मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड समाज को दो वर्गों में बांटने का काम कर रहा है। इसके ताजा उदाहरण के रूप में हमें मौलाना सैयद सलमान हुसैन नदवी का जिक्र हमें ज़रूर करना चाहिए जो पिछले काफी समय से श्री श्री रविशंकर के साथ मिलकर राम मंदिर के मुद्दे पर दो समुदायों को साथ लाने का प्रयास कर रहे थे। लेकिन, यह प्रयास बोर्ड के अन्दर बैठी विभाजनकारी ताक़तों को पसंद नहीं आया। मौलाना नदवी को बोलने की सजा दी गई और उन्हें बोर्ड से बाहर का रास्ता दिखा दिया गया।
इससे दो बातें साफ़ होती है; पहली कि आल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड सहमति की राजनीति पर यकीन नहीं करता, दूसरी कि बोर्ड के अन्दर फिरकापसंद ताक़तों का बोल-बाला बढ़ा हुआ है। पर्सनल लॉ बोर्ड समाज में अनुदारता की भावना भर रहा है और उस तरह की भाषा बोल रहा है, जिससे समाज आपस में और ज्यादा विभाजित होता है, जुड़ता नहीं है।
बाबरी मस्जिद कैसे बनी थी, इसका ज्ञान देश की जनता को है। इसका प्रमाण एएसआई की रिपोर्ट में भी मिलता है। पर्सनल लॉ बोर्ड का यह कहना कि बाबरी मस्जिद इस्लाम का हिस्सा है, हास्यास्पद है। बाबरी मस्जिद की बुनियाद ही घृणा और हिंसा थी, जिसको आज बोर्ड और ज्यादा हवा दे रहा है। पर्सनल लॉ बोर्ड कहता है कि मुस्लिम मस्जिद नहीं छोड़ सकते, न ही ज़मीन किसी को तोहफे में दे सकते। यह क्या है, सिवाय नफरत फ़ैलाने के?
500 साल पहले इस देश में हमलवार बाबर और औरंगजेब जैसों ने जो नफरत का बीज बोया था, आज देश के बहुधा मुसलमान उस विचारधारा को अपनाने के लिए तैयार नहीं हैं, लेकिन मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड और इसके जैसे ही कुछ और कट्टरपंथी खेमे मुस्लिमों को भड़काने में लगे हैं। आज नफ़रत की शब्दावली को छोड़ने का वक़्त है, आज वैसी ताक़तों से भी किनारा करने का वक़्त है जो समाज में अमनपसंद लोगों को गलत ठहराने की कोशिश कर रही हैं।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं। ये उनके निजी विचार हैं।)