पूर्णिमा शर्मा
छत्तीसगढ़ के जशपुर जिले के सोगादा गांव को प्रकृति ने बहुत सुंदर बनाया है। यह गांव पहाड़ियों से घिरा है। लेकिन पहाड़ियों से घिरा होना इस गांव के लोगों के लिए परेशानियों का सबब भी है। इस विषय में गांव की रोशनी बाई से पूछिए। इस गांव के सबसे पास का बैंक 15 किलोमीटर दूर है और इस वजह से यहां तक बैंकिंग सुविधाओं की पहुंच नहीं थी। आजादी के बाद से सरकारें आती-जाती रहीं लेकिन किसी ने यह नहीं सोचा कि रोशनी बाई को बैंकिंग व्यवस्था के अंदर कैसे लाया जाए, ताकि खुद की तरक्की के साथ राष्ट्र निर्माण में वह भी अपना योगदान निभा सके।
रोशनीबाई और उनकी आने वाली पीढ़ियां भी शायद इसी हाल में रहतीं, लेकिन इस बीच एक नया बदलाव आया। उसने देखा कि एक बैंक के लोग उसके गांव में आए हैं और बचत करने का मतलब समझा रहे हैं। यह एक नई सुबह थी। बैंक के लोगों ने गांव के लोगों को बैंक में खाता खोलने के फायदों के बारे में बताया। उन्हें यह भी समझाया गया कि उन्हें हर बात के लिए बैंक आने की जरूरत नहीं है। बैंक मित्र गांव में ही उन्हें ज्यादातर सुविधाएं देंगे। इसके बाद कोई वजह नहीं थी कि रोशनी बाई बैंक खाता न खोलतीं।
आज रोशनी बाई के खाते में नियमित बचत की वजह से अच्छी-खासी रकम है। अब वे हर महीने नियमित कुछ रुपए जमा करने की सोच रही हैं, ताकि इस बचत से वे अपने पति के लिए स्कूटर खरीद सकें।
रोशनी बाई और उनकी ही तरह के करोड़ों लोगों की जिंदगी में पहली बार बैंक आया है और यह बदलाव हुआ है प्रधानमंत्री जन-धन योजना की वजह से। इस योजना के तहत खाते खुलवाने वालों में बड़ी संख्या में वे लोग हैं, जो अब तक बैंकिंग प्रणाली के दायरे से बाहर थे।विश्व इतिहास में इतने कम समय में इतनी बड़ी संख्या में लोगों को बैंकिंग व्यवस्था में समावेशित होने का यह पहला प्रयोग है। इस योजना में सरकारी और गैर-सरकारी दोनों तरह के बैंकों का सहयोग लिया जा रहा है।
प्रधानमंत्री जन-धन योजना 28 अगस्त 2014 को शुरू हुई। वित्तीय समावेश के लिए लाई गई इस योजना का मकसद देश में हर घर को बैंक अकाउंट और बैंकिंग सेवाएं उपलब्ध कराना है। जन धन योजना के तहत 21.87 करोड़ नए बैंक खाते खोले गए। इनमें 61% खाते ग्रामीण इलाकों में खोले गए और 52% खाते महिलाओं के नाम पर हैं। मई 2016 तक इन खातों में 37,775 करोड़ रुपये की राशि जमा हो चुकी है। अब सिर्फ 26.40% खाते ही ज़ीरो बैलेंस के रह गए है। वहीं, 45.35% खातों को आधार कार्ड से जोड़ा जा चुका है, 17.99 करोड़ रूपेकार्ड जारी हो चुके हैं और 19.09 लाख खातों में ओवरड्रॉफ्ट सुविधा का लाभ लिया जा चुका है ।
इस योजना की सबसे बड़ी खासियत यह है कि इसमें गांव तक बैंकिंग सेवा पहुंचाने की जगह परिवारों तक बैंकिंग को पहुंचाने पर जोर है। बैंकिंग सेवा के विस्तार में इससे पहले तक शहरों को यह मानकर छोड़ दिया जाता था कि वहां तो बैंक पहले से हैं। लेकिन प्रधानमंत्री जन-धन योजना के तहत शहरों में खुले लगभग साढ़े आठ करोड़ खातों से जाहिर होता है कि इसकी जरूरत शहरों में भी थी। इस योजना में बैंक लोगों तक पहुंचे। यह भी एक नया तरीका था। इसके अलावा इस योजना के तहत खुले खातों को आधार नंबर और मोबाइल से भी जोड़ा गया ताकि सामाजिक सुरक्षा की योजनाओं के वित्तीय पहलू का जन- जन तक विस्तार हो सके और खाताधारकों को अपने खाते में आने या खाते से जाने वाले रकम की उसी समय जानकारी मिल जाए।
प्रधानमंत्री जन-धन योजना रोजगार सृजन की भी बड़ी योजना साबित हुई है। वित्तीय समावेशीकरण से आम लोगों के सबल बनने और उनके स्वरोजगार के लिए ऋण की उपलब्धता बढ़ने की बात तो है ही, सीधे तौर पर इस योजना की वजह से बैंकों ने 1.26 लाख से ज्यादा बैंक मित्रों को काम दिया है, जो बैंकिंग सेवाओं को घर-घर तक पहुंचाने के काम कर रहे हैं। बैंक मित्र कई मायनों में लोगों के लिए एटीएम भी हैं। वे लोगों का खाता खुलवाने से लेकर उन तक पैसा पहुंचाने और बीमा का क्लेम दिलाने तक में लोगों की मदद करते हैं। बैंक मित्र ग्रामीण इलाकों में बेहद लोकप्रिय हैं। यह जन-धन योजना का अप्रत्यक्ष लाभ है।
दरअसल प्रधानमंत्री जन-धन योजना एक शुरुआत है। इसका मकसद भारत में सामाजिक सुरक्षा को आम लोगों तक पहुंचाना है। भारत में आजादी के बाद से ही लोक कल्याणकारी राज्य की बात होती रही है। लेकिन लोक कल्याण की योजनाएं जन-जन तक कैसे पहुंचे इस पर नहीं सोचा गया। नतीजा यह हुआ कि सैकड़ों की संख्या में सरकारी योजनाएं बनीं और फाइलों में कैद होकर रह गईं। केंद्र और राज्य की राजधानियों से चलकर जो पैसा लोगों तक पहुंचना था, वह रास्ते में ही कहीं सूख जाता था। सरकारी योजनाओं में भ्रष्टाचार का कारण भी यह व्यवस्था ही थी, जिसमें यह जांचने का प्रावधान नहीं था कि वास्तविक व्यक्ति तक लाभ पहुंचा या नहीं। एक पूर्व प्रधानमंत्री का यह वक्तव्य बहुत चर्चित रहा कि योजनाओं पर होने वाले खर्च का 15 प्रतिशत हिस्सा ही नीचे तक पहुंचता है।
संविधान के अनुच्छेद 41 के दिशा निर्देशक सिद्धांतों में कहा गया है कि सरकार अपनी आर्थिक क्षमता और विकास के मुताबिक रोज़गार और शिक्षा का अधिकार, बेरोज़गारी, वृद्धावस्था, बीमारी और विकलांगता के हालात में सहायता देने के लिए कारगर प्रावधान करे। चूंकि दिशा निर्देशक सिद्धांत सरकार के लिए बाध्यकारी नहीं होते इसलिए अब तक की सरकारें, नागरिकों की सामाजिक सुरक्षा को दर किनार करती रहीं।
ऐसे में योजनाओं को अमल में लाने के तरीकों में बुनियादी बदलाव की जरूरत थी। आजादी के बाद के छह दशकों का अनुभव यही बताता है कि सरकारी योजनाओं पर जोर देने से सामाजिक सुरक्षा का इच्छित लक्ष्य हासिल नहीं हो सका। करोड़ों लोग बैंकिंग प्रणाली से बाहर रह गए थे। इसलिए इसमें खुद आम लोगों को शामिल करने की जरूरत थी, ताकि वे अपने भविष्य की इबारत खुद लिख सकें। इसके साथ ही निजी क्षेत्र को भी शामिल करने की जरूरत महसूस की गई। वर्तमान सरकार उस बदलाव पर ही काम कर रही है। और यह बदलाव तेजी से हो रहा है।
हमने आर्थिक प्रगति तो की लेकिन भारत अब तक आधारभूत ज़रूरतों को लेकर असुरक्षित समाज रहा है। या यूं कहें कि आर्थिक विकास के साथ-साथ सामाजिक असुरक्षा भी बढ़ती गई। समाज का एक बड़ा वर्ग आधारभूत ज़रूरतों को लेकर असुरक्षित जीवन जीता रहा है। खासकर दुर्घटना या मृत्यु के बाद परिवार के लिए सामाजिक सुरक्षा की बेहद सख्त जरूरत महसूस की जाती है। सामाजिक सुरक्षा एक ऐसा पहलू है जिसे मौजूदा सरकार ने एक अहम ज़रूरत के तौर पर पहचाना है। सोशल-सिक्योरिटी की दिशा में लगातार मज़बूत कदम उठाते हुए इस दिशा में कई योजनाएं शुरू की हैं।
पहले चाहे बैंक खाता खुलवाना हो या बीमा लेना हो, आम नागरिक को किसी एजेंट या बिचौलिए की ज़रूरत पड़ती थी। लेकिन अब सरकार की सोशल सिक्योरिटी स्कीम्स, बैंक खातों के ज़रिए ही काम करेंगी। यानी इन योजनाओं का लाभ सीधे लाभार्थी को बैंक खातों के ज़रिए मिलेगा। ऐसे में बिचौलिए के कोई गड़बड़ी करने की गुंजाइश को पूरी तरह खत्म कर दिया गया है। सरकार की कोशिश है हर नागरिक को बैंक खातों से जो़ड़ना और बिचौलिए की भूमिका को पूरी तरह खत्म करना। बिचौलिए के अलावा समाज के निचले तबके को सूदखोरों से भी मुक्ति मिलेगी। सूदखोर लोगों की जरूरत भांपकर अनाप-शनाप ब्याज दरों पर लोगों को कर्ज देते हैं और लोगों को गरीबी रेखा से नीचे धकेलने में इनकी बड़ी भूमिका है। बैंकिंग प्रणाली इनकी भूमिका को सीमित करती है और लोगों को इस तरह के शोषण से बचाती है।
समाज का एक ऐसा तबका जिसके पास साधन नहीं थे जो महज़ एक बैंक अकाउंट खुलावाने के लिए इधर-उधर दस चक्कर काटता था, आज उसके पास ताकत आ गई है। तकनीक, मोबाइल, आधार नंबर और बैंक खातों को जोड़ने से अब बिचौलिए उसका शोषण नहीं कर सकते। सरकार समाज कल्याण के लिए जो पैसा देती थी उसका बड़ा हिस्सा बिचौलिए खा जाते थे। समाज कल्याण योजनाएं अब तक लाभार्थी से ज्यादा बिचौलिए को लाभ पहुंचाती थीं जो सिस्टम की खामियों का फायदा उठाता था। फर्जी नामों की लिस्ट देकर भी बिचौलिए सिस्टम की कमियों का फायदा उठाते थे। लेकिन अब ऐसा नहीं होगा। जन-धन, आधार और मोबाइल से अब बिचौलिए की भूमिका बिलकुल खत्म कर दी गई है। अब सरकार की तरफ से सामाजिक सुरक्षा में योगदान का पैसा सीधे लाभार्थी के अकाउंट में आएगा।
इतना ही नहीं बैंक खाता खुलवाने या बीमा लेने के लिए कई तरह की औपचारिकताएं पूरी करनी होती थी। लेकिन अब महज़ एक आइडेंटिटी प्रूफ देने भर से बैंक में खाता खुल जाएगा और बैंकिंग और बीमा सेवाओं का लाभ लिया जा सकेगा।
बैंक खातों के ज़रिए अब तक प्रधानमंत्री सुरक्षा बीमा योजना के तहत 9.43 करोड़ और प्रधानमंत्री जीवन ज्योति बीमा योजना में 2.96 करोड़ बीमा पॉलिसियां जारी हो चुकी हैं। इन सामाजिक सुरक्षा योजनाओं का मकसद गरीब वर्ग को बीमा सेवा मुहैया कराना है। आर्थिक रूप से कमज़ोर वर्ग को ध्यान में रखते हुए इन योजनाओं में प्रीमियम राशि बेहद कम रखी गई है, ताकि देशभर में जहां अब तक ये सेवाएं नहीं पहुंचीं वहां पहुंचा जा सके। इन स्कीम्स को जन-धन योजना से जोड़ा गया है यानि बैंक अकाउंट के ज़रिए ही बीमा पॉलिसी ली जा सकती है। प्रधानमंत्री सुरक्षा बीमा योजना दुर्घटना या किसी भी वजह से मृत्यु के जोखिम को कवर करती है। इसके तहत 18-50 साल तक की आयु वर्ग के सेविंग बैंक अकाउंट होल्डर्स को 2 लाख तक का कवर दिया जाता है। इस योजना के तहत 330 रुपये सालाना का प्रीमियम देना होता है। खाताधारक की मंजूरी के बाद प्रीमियम की रकम बैंक खाते से ही कटेगी। इस स्कीम के तहत 24,702 पॉलिसीधारकों के निर्भर परिवारों को क्लेम दिया जा चुका है।
प्रधानमंत्री सुरक्षा बीमा योजना में दुर्घटना से मृत्यु पर 2 लाख रुपये और विकलांगता पर एक लाख रुपये का कवर दिया जाएगा। 18-70 साल तक का कोई भी बैंक खाताधारक मात्र 12 रुपए के सालाना प्रीमियम पर पॉलिसी ले सकता है। एक साल की इस पॉलिसी को हर साल रिन्यू किया जा सकता है। स्कीम के तहत अब तक 3,730 क्लेमों का भुगतान हो चुका है और 27,193 लोगों के परिवार के सदस्यों को वित्तीय मदद मिल चुकी है।
वहीं, अटल-पेंशन योजना हर भारतीय नागरिक बैंक खाताधारक के लिए उपलब्ध है। ये वृद्धावस्था पेंशन योजना खास तौर पर असंगठित क्षेत्र के कामगारों पर केंद्रित है। इस स्कीम के तहत 60 साल की उम्र के बाद पॉलिसीधारकों को 1,000-5,000 रुपये के बीच एक निश्चित पेंशन दी जाएगी है। पॉलिसीधारक की मृत्यु की स्थिति में उसकी पत्नी/पति को पेंशन दी जाएगी। दोनों की मृत्यु के बाद पेंशन की एकमुश्त राशि नॉमिनी को दी जाएगी। इसमें 31 दिसंबर, 2015 से पहले खोले गए नए खातों पर सरकार 5 साल तक लाभार्थी की प्रीमियम राशि का 50% (1,000 रुपये तक ) तक का योगदान देगी। इस सरकारी योगदान का फायदा उठाने के लिए लाभार्थी को आयकरदाता नहीं होना चाहिए और न ही उसने कोई अन्य सामाजिक सुरक्षा स्कीम ली हो। कोई भी नागरिक 18-40 साल की उम्र के बीच इस बीमा योजना से जुड़ सकता है। अटल पेंशन योजना के तहत अब तक लगभग 27 लाख लोग जुड़ चुके हैं। इस स्कीम के लिए बजट में 2,520-10,000 करोड़ रुपये का प्रावधान 5 साल की अवधि के लिए सरकारी योगदान हेतु किया गया है।
इन योजनाओं का समाज पर असर होने लगा है। राज्य सरकारों और जिला प्रशासन को भी इन योजनाओं के अमल में हिस्सेदार बनाया गया है। गांवों से और शहरों से भी लगातार इन योजनाओं की कामयाबी की कहानियां आ रही हैं। इससे न सिर्फ लोग वित्तीय तौर पर सबल हुए हैं बल्कि उनकी जिंदगी तमाम तरीके से बदल रही है। उनकी महत्वाकांक्षाएं बढ़ रही हैं। वे स्वरोजगार से जुड़ रहे हैं और इससे रोजगार की सृजन हो रहा है। वे आर्थिक व्यवस्था में समावेशित हो रहे हैं। उनके जीवन से बिचौलिए और सूदखोर गायब हो रहे हैं। पैसा सीधे लोगों के एकाउंट में आने की वजह से भ्रष्टाचार घट रहा है। यही इन योजनाओं का सबसे प्रमुख लक्ष्य है। लोग राष्ट्र निर्माण में पहले से ज्यादा भूमिका निभा रहे हैं। सामाजिक सुरक्षा की इस नई सुबह का दायरा बढ़ रहा है और अधिक से अधिक लोग इससे जुड़ते जा रहे हैं। सामाजिक सुरक्षा के मामले में सरकार के लक्ष्य ऊंचे हैं। और इन सबके बीच, आत्मविश्वास से भरपूर सशक्त राष्ट का निर्माण हो रहा है।
(लेखिका स्वतंत्र पत्रकार और टीवी एंकर हैं, यह लेख १३ जून को पी आई बी के वेब साईट पर प्रकाशित हुआ था )