प्रत्येक नदी अपने आप में सभ्यता का प्रतीक मानी जाती हैं और गंगा तो हजारों साल पुराने इस देश की न सिर्फ सभ्यता है, बल्कि जीवन रेखा है, वह भी अटूट श्रद्धा लिए हुए। इसका उल्लेख दो हजार साल पहले यूनानी राजदूत मैगस्थनीज ने अपनी किताब “इंडिका” में भी किया। सनातन धर्म के शास्त्र-पुराणों में यहां तक जिक्र है कि कलियुग में गंगा ही पापनाशिनी और मोक्ष प्रदायिनी है। ऋग्वेद, महाभारत, रामायण व अन्य पुराणों में गंगा को पुण्य सलिला, सरित्श्रेष्ठा व महानदी कहा गया है। “द होली गंगा” पुस्तक के लेखक कौशल किशोर के मुताबिक 10,88,704 वर्ग किलोमीटर में गंगा बेसिन फैला है। गंगा दुनिया की सबसे विशाल बायोडायवर्सिटी को अपना जल देकर उन्हें जीवन आश्रय देती है। देश के कुल 2300 शहरों में से 692 शहर गंगा बेसिन के हिस्से हैं और करीब 100 तो ऐसे हैं, जो गंगा के तट पर ही बसे हैं। हजारों साल के इस लंबे अंतराल में गंगा का रूप कुछ हद तक विकृत भी हुआ। धाराएं पतली हो गईं। गंगा के पाट सूखने लगे और गंगा का पावन-निर्मल जल मलीन होने लगा। लेकिन प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने गंगा और उसके किनारे रहने वाले लोगों के साथ देश के उन करोड़ों लोगों की गंगा के प्रति आस्था को समझा और एक बार फिर गंगा को गंगा बनाए रखने के लिए भगीरथ प्रयास शुरू हुआ।
पूर्ववर्ती सरकारों के समय से लेकर अब तक गंगा की निर्मलता बनाए रखने के लिए कुछ प्रयास हुए, लेकिन वे मील का पत्थर साबित न हो सकीं। साल 1985 में साल 2015 तक राष्ट्रीय गंगा बेसिन प्राधिकरण ने प्रधानमंत्रियों की अगुवाई में काम किया। इस दरमियान करीब-करीब 4000 करोड़ रुपए खर्च भी हुए। लेकिन इतना खर्च होने के बाद भी सिर्फ सही नीयत की कमी के कारण सफलता नहीं मिल सकी। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की अगुवाई में गंगा को स्वच्छ व अविरल बनाने की दिशा में विस्तृत योजना तैयार हुई। जुलाई 2014 में नमामि गंगे परियोजना शुरू करने को लेकर प्रधानमंत्री ने घोषणा की। मई 2015 में राष्ट्रीय गंगा नदी घाटी प्राधिकरण के अंतर्गत राष्ट्रीय स्वच्छ गंगा मिशन के तहत “नमामि गंगे” कार्यक्रम लांच किया गया। सरकार ने इस काम को लेकर जवाबदेही भी तय कर दी। मंत्री व सांसद साध्वी उमा भारती को इस नेक काम की जिम्मेदारी दी गई। नमामि गंगे कार्यक्रम के लिए इतनी राशि तय की गई, जितनी पिछले 30 सालों में रही सरकारों ने कुल मिलाकर खर्च नहीं किया। गंगा को निर्मल बनाने की दिशा में वर्तमान सरकार ने 20 हजार करोड़ की भारी भरकम राशि खर्च करने की योजना बनाई है। यह राशि भी इस कार्यक्रम के 5 वर्षों में ही खर्च किए जाने हैं। सरकार की केबिनेट की बैठक में गंगा नदी प्राधिकरण आदेश, 2016 को मंजूरी दे दी है। इसके तहत नदी के संरक्षण, सुरक्षा और प्रबंधन के कार्य होंगे। इसका मुख्य उद्देश्य गंगा नदी के संरक्षण के लिए प्रदूषण को नियंत्रित करना, पर्यावरणीय प्रवाह सुनिश्चित करना, औद्योगिक प्रदूषण पर रोकथाम, निरीक्षण के माध्यम से सुनिश्चित करना।
नमामि गंगे योजना के तहत सरकार ने विस्तृत प्लान तैयार किया है। इसके अंतर्गत सरकार 7 मुख्य बिन्दुओं पर काम कर रही हैं। नदी के पर्यावरणीय प्रवाह को बनाए रखना, स्वच्छ नदी के अंतर्गत सीवेज व ट्रीटमेंट प्लांट का उन्नयन, औद्योगिक प्रदूषण नियंत्रण, रिवर फ्रंट का विकास, गंगा इंस्टीट्यूट ऑफ रिवर साइंस की स्थापना समेत अनुसंधान परियोजनाएं, गंगा में मौजूद जलीय वनस्पति और जीव का संरक्षण और लोगों को नदी को लेकर जागरूक करने के प्रयास इन सात बिन्दुओं में समाहित हैं।
दरअसल यह सब करने की जरूरत इसलिए पड़ी, क्योंकि सरकार की रिपोर्ट में यह बात निकलकर आई, कि गंगा प्रदूषित है। सरकार के आंकलन ये यह साफ हुआ कि गंगा का कन्नौज से लेकर कानपुर, इलाहाबाद और वाराणसी तक का क्षेत्र सर्वाधिक प्रदूषित है। एक रिपोर्ट तो यहां तक कहती है कि प्रतिदिन गंगा में 2 करोड़ 90 लाख लीटर कचरा गिर रहा है। विश्व बैंक की रिपोर्ट की मानें तो उत्तरप्रदेश में 12 प्रतिशत बीमारियों की वजह प्रदूषित गंगा का जल है। इसके बाद प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की अध्यक्षता में केन्द्रीय मंत्रीमंडल ने जनवरी 2015 में नमामि गंगे कार्यक्रम के तहत पीपीपी मॉडल के माध्यम से हाइब्रिड-एन्यूटी प्रस्ताव को मंजूरी दे दी। इस मॉडल पर आधारित हाइब्रिड-एन्यूटी का उद्देश्य देश में व्यर्थ जाने वाले पानी के उपयोग में कार्यकुशलता, धारण क्षमता और व्यवहार्यता सुनिश्चित करना था। गंगा की अविरलता व शुद्धता के लिए सरकार के 13 मंत्रालयों के बीच आपसी समझौता हुआ है। जिसके अंतर्गत विभिन्न योजनाओं को अमलीजामा पहनाया जाना है। हाल ही में 13 अगस्त को देश के 10 शहरों में स्मार्ट गंगा सिटी परियोजना की शुरुआत की गई है। इन शहरों में हरिद्वारा, ऋषिकेश, मथुरा, वृन्दावन, रमन्ना (वाराणसी), कानपुर, इलाहाबाद, लखनऊ, पटना, साहिबगंज और बैरकपुर शामिल हैं। राज्य सरकारों के मुताबिक गंगा घाटी में सीवेज से निकलने वाला कुल अपशिष्ट जल 12051 एमएलडी है। वर्तमान में 6334 एमएलडी ट्रीटमेंट क्षमता में गैप है। ऐसे में इस दिशा में भी काम शुरू किए जा चुके हैं।
नमामि गंगे योजना के तहत सरकार ने विस्तृत प्लान तैयार किया है। इसके अंतर्गत सरकार 7 मुख्य बिन्दुओं पर काम कर रही हैं। नदी के पर्यावरणीय प्रवाह को बनाए रखना, स्वच्छ नदी के अंतर्गत सीवेज व ट्रीटमेंट प्लांट का उन्नयन, औद्योगिक प्रदूषण नियंत्रण, रिवर फ्रंट का विकास, गंगा इंस्टीट्यूट ऑफ रिवर साइंस की स्थापना समेत अनुसंधान परियोजनाएं, गंगा में मौजूद जलीय वनस्पति और जीव का संरक्षण और लोगों को नदी को लेकर जागरूक करने के प्रयास इन सात बिन्दुओं में समाहित हैं। इन बिन्दुओं पर नई परियोजनाओं के लिए केन्द्र सरकार ने 12,728 करोड़ रुपए की व्यवस्था की है। इनमें सबसे प्रमुख सीवेज मैनेजमेंट है। कुल राशि में से सर्वाधिक राशि करीब 8000 करोड़ रुपए सीवेज मैनेजमेंट में ही खर्च किए जाने हैं। साथ ही सफाई, रिवर फ्रंट मैनेजमेंट, औद्योगिक कचरा प्रबंधन, सॉलिड वेस्ट, अविरल गंगा, औद्योगिक विकास, अनुसंधान, जैव विविधता संरक्षण, वनीकरण व जल गुणवत्ता निगरानी की दिशा में गंगा टास्क फोर्स के गठन के लिए भी राशि तय किए गए हैं।
सरकार ने तय किया है कि बनारस, कानपुर, इलाहाबाद, मथुरा और पटना में नदी के सतह की सफाई जैसे कार्यों की शुरुआत होगी। इतना ही नहीं 15 ट्रैश स्कीमर मशीन से गंगा में सभी स्थानों पर सफाई होना है। गंगा किनारे शवदाह गृहों का आधुनिकीकरण, नवीनीकरण व निर्माण, घाटों की मरम्मत, आधुनिकीकरण व निर्माण, सालिड वेस्ट मैनेजमेंट और गंगा किनारे 100 फीसदी खुले में शौच मुक्त बनाने को लेकर काम किया जाना है। पांच राज्य उत्तराखंड, उत्तरप्रदेश, बिहार, झारखंड और पश्चिम बंगाल में तय किए जा चुके हैं कि घाट और शवदाह गृहों के विकास के लिए क्या और कैसे किया जाना है। सर्वे का काम पूरा हो चुका है, जिनके मुताबिक 1242 घाट व 369 शवदाह गृह चिन्हित किए गए हैं।
जैव विविधता संरक्षण के लिए ऋषिकेश से लेकर देहरादून, नरोरा, इलाहाबाद, वाराणसी, भागलपुर, साहिबगंज व बैरकपुर में जैव विविधता केन्द्र बनाए जाएंगे। 1.34 लाख हेक्टेयर में पौधरोपण किया जाएगा। इसके लिए 2000 करोड़ रुपए खर्च होंगे। गंगा नदी डॉलफिन के संरक्षण शिक्षा कार्यक्रम के लिए 3 साल में 1.8 करोड़ रुपए खर्च किया जा रहा है। नदी में मछलियों के पालन व संरक्षण के लिए 5.8 करोड़ रुपए के काम किए जा रहे हैं। गंगाजल की शुद्धता को बरकरार रखने के लिए गांव के जल-मल का उपचार करने की योजना है। इसके लिए संत सींचेवाल के मॉडल पर सरकार ने सहमति दी है, जिसके जरिए गंदे पानी को साफ करके खेती में कैसे उसका उपयोग किया जाए। ग्राम प्रधानों को इसकी जानकारी दी जा रही है। सरकार के कदम इतनी तेजी से आगे बढ़ रहे हैं कि अब तक जिन राज्यों से होकर गंगा गुजरती है, मसलन उत्तराखंड, उत्तरप्रदेश, बिहार, झारखंड, पश्चिम बंगाल, हरियाणा और दिल्ली के अलग-अलग स्थानों पर करीब 231 परियोजनाओं का शुभारंभ किया जा चुका है।
प्रधानमंत्री के मार्गदर्शन में और उमा भारती की अगुवाई में सरकार के कदम इसी तेजी से चलते रहे, तो जल्द ही मां गंगा का अलग ही स्वरूप दिखेगा। अपने निर्मल जल से वह अपने किनारों को और समृद्ध करेंगी। उत्तराखंड से लेकर पश्चिम बंगाल तक कहीं भी मलीनता का अंश नजर न आएगा। गंगोत्री से गंगासागर तक हर कोई बिना डर के आचमन कर सकेगा, डुबकी लगाएगा। ईश्वर करे वह दिन जल्दी आए और हमें मिले शुद्ध, अविरल, कल-कल-छल-छल करती गंगा।
(लेखक डॉ श्यामा प्रसाद मुखर्जी रिसर्च फाउंडेशन में रिसर्च एसोसिएट हैं।)