देश में छोटी-छोटी घटनाओं पर भी हिन्दू कट्टरता का रोना रोने वाले तथाकथित बुद्धिजीवी और लिबरल ननकाना साहब मामले पर सन्नाटा मार गए हैं। अगर किसीने कुछ कहा भी है तो वो कोरम पूर्ति जैसा ही है। इनके तथाकथित सेकुलरिज्म का ये दोहरा चरित्र एकबार पुनः उजागर हुआ है। सीएए का विरोध करने वाले ये सेक्युलर ब्रिगेड के नुमाइंदे इस घटना जिस तरह से मुंह में दही जमाए हुए हैं, उससे इनके पाखण्ड की ही कलई खुलती है।
पिछले सप्ताह पाकिस्तान में स्थित ननकाना साहिब स्थल पर पथराव किए जाने की घटना सामने आई। यहां सिखों के इस पवित्र धर्मस्थल पर एक स्थानीय परिवार के साथ मिलकर भीड़ ने पत्थर फेंके, जिसके बाद माहौल में तनाव व्याप्त हो गया। मामला धर्मस्थल के प्रमुख की पुत्री के अपहरण व धर्मांतरण से जुड़ा था, ऐसे में बात बढ़ गई और इसने हिंसा का रूप ले लिया। जिस समय वहां पथराव चल रहा था, अंदर कई सिख श्रद्धालु फंसे हुए थे।
भारतीय विदेश मंत्रालय ने इस कायराना हरकत की आलोचना की है। अब इस घटना को राजनीतिक हित-अहित से जोड़कर देखा जा रहा है। असल में इस घटना के निहितार्थ समझना जरूरी है। ननकाना साहिब पाकिस्तान में स्थित है लेकिन यहां बड़ी संख्या में भारत से धर्मालुजन जाते हैं। इस घटना विशेष के मूल में कोई कहासुनी इत्यादि कारण नहीं है, बल्कि यह पाकिस्तान की बहुसंख्यक कट्टर मजहबी मानसिकता का एक उदाहरण है।
अपहरण एवं धर्मांतरण जैसे कुत्सित कृत्य करके माहौल को गरमाने का प्रयास इसमें साफ महसूस किया जा सकता है। जैसे ही भारत ने इस हमले का कड़ा विरोध किया, देश के भीतर नाराजगी बढ़ने लगी।
भाजपा ने स्पष्ट कहा कि ननकाना साहिब गुरुद्वारे पर किया गया हमला वहां के अल्पसंख्यकों की सुरक्षा पर सवाल खड़े करता है। एक तरफ से देखा जाए तो यह घटना ठीक ऐसे वक्त पर हुई है जब धार्मिक उत्पीड़न से बचने के लिए दूसरे देश में शरणार्थी बनकर जाने का माहौल गरमाया हुआ है। आखिर नागरिकता संशोधन कानून और है ही क्या। दूसरे देशों में रह रहे शरणार्थियों को पनाह देने का ही तो प्रावधान है। भाजपा ने अपनी प्रतिक्रिया में कहा भी है कि नागरिकता संशोधन कानून का विरोध करने वाले उपद्रवियों, लोगों को शायद अब समझ में आ गया होगा कि आखिर सीएए क्यों जरूरी है। बात तार्किक है और वाजिब भी।
भाजपा नेत्री मीनाक्षी लेखी ने भी अपनी प्रतिक्रिया देते हुए पाकिस्तान परस्त मानसिकता वालों की जमकर खबर ली है। उन्होंने कहा कि, यह हमला काबा या यरूशलम पर हमले जैसा ही गंभीर हमला है। ऐसे कई प्रमाण बताए जा सकते हैं जब पाकिस्तान में युवतियों को उठाकर जबरन धर्म परिवर्तन करा लिया गया। इसमें स्थानीय पुलिस व प्रशासन की संलिप्तता भी रही है। असल में, ननकाना साहिब पर हमले की इस घटना के बाद से अब सिख समुदाय भी खुद को असुरक्षित महसूस करने लगा है। मालूम हो कि सिखों के धर्मगुरु संत नानक का यह जन्मस्थान पूरे विश्व में ख्यात है।
चिंता इस बात की भी है कि पथराव के दौरान वायरल वीडियो में उन्मादी भीड़ से ऐसे नारों की आवाज भी सुनाई दी जिसमें ननकाना साहिब में सिखों का खात्मा किए जाने की बात कही गई। इतना ही नहीं, इस स्थान का नाम बदलकर इसे गुलाम-ए-मुस्तफा रखे जाने की भी आवाजें सुनाईं दी। यह घटना अब नफरत का नया अध्याय शुरू कर चुकी है। इस पथराव की घटना के साथ ही पेशावर में एक सिख युवक की भी हत्या की गई। यह घटना पाकिस्तान में अल्पसंख्यकों की हालत का सबसे ताजा प्रमाण है।
भारत ने घटना के बाद से लगातार इसकी निंदा करते हुए दोषियों पर कार्यवाही के लिए पाकिस्तान पर दबाव बनाया था। भारत के इस दबाव के बाद पाकिस्तान के पंजाब प्रांत की पुलिस ने आखिर उसे धर पकड़ा है, लेकिन यह एक दिखावे की कार्रवाई ही लगती है क्योंकि पाकिस्तान की मानसिकता में उन नारेबाजों जैसे कट्टरपन ही बसता है।
मगर आश्चर्य है कि देश में छोटी-छोटी घटनाओं पर भी हिन्दू कट्टरता का रोना रोने वाले तथाकथित बुद्धिजीवी और लिबरल ननकाना साहब मामले पर सन्नाटा मार गए हैं। अगर किसीने कुछ कहा भी है तो वो कोरम पूर्ति जैसा ही है। इनके तथाकथित सेकुलरिज्म का ये दोहरा चरित्र एकबार पुनः उजागर हुआ है। सीएए का विरोध करने वाले ये सेक्युलर ब्रिगेड के नुमाइंदे इस घटना जिस तरह से मुंह में दही जमाए हुए हैं, वो इनकी असलियत को सामने लाता है।
(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं। ये उनके निजी विचार हैं।)