रासायनिक उर्वरकों विशेषकर यूरिया के भारी-भरकम आयात, इसके कारण हो रहे मिट्टी-जल-वायु प्रदूषण, बढ़ती बीमारियों पड़ोसी देशों को यूरिया की तस्करी आदि को देखते हुए मोदी सरकार एक ओर इसके विकल्प की तलाश में जुटी तो दूसरी ओर घरेलू उत्पादन को बढ़ावा देने की नीति अपनाई गई। मोदी सरकार ने 2015 में यूरिया नीति घोषित की जिसमें घरेलू उत्पादन बढ़ाने, यूरिया उत्पादन में ऊर्जा बचत को बढ़ावा देने और बंद पड़े उर्वरक संयंत्रों को नए सिरे शुरू करने पर फोकस किया गया। यूरिया नीति के सकारात्मक परिणाम आने शुरू हो गए हैं।
देश के भारी-भरकम आयात बिल को देखें तो उसमें सैकड़ों उत्पाद ऐसे मिलेंगे जिनके मामले में भारत आत्मनिर्भर बन सकता था जैसे खाद्य तेल, दाल, रक्षा उपकरण, रासायनिक उर्वरक। लेकिन पिछली कांग्रेसी सरकारों से जुड़े आयातकों व बिचौलियों की ताकतवर लॉबी ने ऐसा नहीं होने दिया। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इन सबसे अलग ठहरे। 2014 में प्रधानमंत्री पद की शपथ लेने के बाद नरेंद्र मोदी ने तिलहनों, दलहनों, रक्षा उपकरणों के घरेलू उत्पादन पर जोर दिया जिसमें देश को आशातीत सफलता मिल रही है।
रासायनिक उर्वरकों विशेषकर यूरिया के भारी-भरकम आयात, इसके कारण हो रहे मिट्टी-जल-वायु प्रदूषण, बढ़ती बीमारियों पड़ोसी देशों को यूरिया की तस्करी आदि को देखते हुए मोदी सरकार एक ओर इसके विकल्प की तलाश में जुटी तो दूसरी ओर घरेलू उत्पादन को बढ़ावा देने की नीति अपनाई गई। मोदी सरकार ने 2015 में यूरिया नीति घोषित की जिसमें घरेलू उत्पादन बढ़ाने, यूरिया उत्पादन में ऊर्जा बचत को बढ़ावा देने और बंद पड़े उर्वरक संयंत्रों को नए सिरे शुरू करने पर फोकस किया गया। यूरिया नीति के सकारात्मक परिणाम आने शुरू हो गए हैं।
2025 तक रामागुंडम, तलचर, गोरखपुर, सिंदरी और बरौनी के उर्वरक संयंत्रों के अलावा अन्य स्थानों पर नए संयंत्र भी पूरी क्षमता से उत्पादन शुरू कर देंगे। इससे 2025 तक भारत यूरिया के मामले में आत्मनिर्भर बन जाएगा। इसी को देखते हुए अब यह मांग उठने लगी है कि भारत को अब यूरिया आयात के बजाए उसके निर्यात पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए।
उल्लेखनीय है कि रूस-यूक्रेन युद्ध के कारण आपूर्ति के बाधित होने और चीन व अन्य देशों द्वारा निर्यात में कटौती के कारण इस साल यूरिया की उपलब्धता प्रभावित हुई जिससे यूरिया की कीमतें आसमान छूने लगी हैं। यही कारण है चालू वित्त वर्ष में उर्वरक सब्सिडी के 2.5 लाख करोड़ रुपये पार कर जाने का अनुमान है जो गत वित्त वर्ष के 1.62 लाख करोड़ रुपये की तुलना में बहुत अधिक है।
यूरिया के मामले में आत्मनिर्भरता दिलाने में नैनो यूरिया की अहम भूमिका है। यह नैनों कणों से निर्मित यूरिया का एक प्रकार है जिसमें पौधों को पोषक तत्व प्रदान करने वाला तरल नाइट्रोजन होता है। नैनो यूरिया की आधा लीटर की एक बोतल में लगभग 40000 मिलीग्राम/लीटर नाइट्रोजन होती है जो सामान्यता एक बोरी यूरिया (50 किग्रा) के बराबर होता है।
नैनो यूरिया के उपयोग से उर्वरक लागत में कमी व अधिक उपज मिलने के साथ-साथ प्रदूषण में भी कमी आती है। इसके इस्तेमाल से अन्य उर्वरकों की उपयोगिता क्षमता एवं उपज क्षमता में बढ़ोत्तरी के साथ फसल गुणवत्ता में सुधार देखा गया है।
नैनो उर्वरकों का सबसे अधिक फायदा पोषण के स्तर पर होगा। जहां पारंपरिक उर्वरकों के मामले में पौधों की पोषण खपत केवल 25 से 30 प्रतिशत होती है वहीं नैनो उर्वरकों में यह बढ़कर 90 प्रतिशत हो जाता है। इससे न केवल फसल उत्पादन में सुधार होता है बल्कि रासायनिक उर्वरकों के अधिक इस्तेमाल से होने वाले प्रदूषण में कमी आती है।
नैनो यूरिया का आर्थिक पहलू भी कम महत्वपूर्ण नहीं है। 50 किलोग्राम के परंपरागत यूरिया की बोरी की कीमत 2600 रुपये है और सब्सिडी के बाद ये 266 रुपये प्रति बोरी की दर से किसानों को दी जा रही है। दूसरी ओर एक बोतल नैनो तरल यूरिया का मूल्य 240 रुपये है। स्पष्ट है नैनो यूरिया के इस्तेमाल से खेती की लागत में भी कमी आएगी।
नैनो यूरिया सभी फसलों के लिए फायदेमंद है। फसलों की पत्तियों में स्टोमेटा खुला रहता है जो नैनो यूरिया के कण को अवशोषित करता है। पत्तियों के माध्यम से यह कण पौधों के अन्य भागों में पहुंच जाता है। इफ्को ने देश के 20 शोध केंद्रों एवं 11000 किसानों के खेतों में तकनीकी परीक्षण के बाद नैनो यूरिया को किसानों के लिए जारी किया है। नैनो यूरिया के उत्पादन के नए संयंत्रों के शुरू होने के बाद इसकी उत्पादन क्षमता वर्तमान में 5 करोड़ बॉटल (500 मिलीलीटर) से बढ़कर 44 करोड़ बॉटल हो जाएगी।
नैनो यूरिया का वाणिज्यिक उत्पादन गुजरात के कलोल स्थित इफ्को के संयंत्र में अगस्त 2021 से हो रहा है। अब इफ्को के अन्य संयंत्रों में भी उत्पादन की प्रक्रिया चल रही है। अब तक नैनो यूरिया की 3.90 करोड़ बोतल की आपूर्ति विभिन्न राज्यों को की जा चुकी है। साढ़े तीन लाख बोतल नैनो यूरिया का निर्यात भी किया जा चुका है।
नैनो तकनीक ने नैनो डी अमोनियम फॉस्फेट (डीएपी) के उत्पादन के भी अवसर तैयार किए है। डीएपी दूसरा सबसे अधिक आयात किया जाने वाले रासायनिक उर्वरक है। देश में नैनो डीएपी का विकास परीक्षण के चरण में है और इसके विकास के बाद डीएपी की कीमत आधी रह जाएगी। इस प्रकार रासायनिक उर्वरकों के भारी-भरकम आयात से मुक्ति मिल जाएगी और आने वाले समय में भारत इन उर्वरकों का निर्यात भी करने लगेगा।
(लेखक केन्द्रीय सचिवालय में अधिकारी हैं। वरिष्ठ टिप्पणीकार हैं। प्रस्तुत विचार उनके निजी हैं।)