जैसे-जैसे नागरिकता संशोधन कानून का देश भर में समर्थन बढ़ रहा है वैसे-वैसे कांग्रेस-वामपंथ समर्थक सेकुलर खेमे में बेचैनी बढ़ती जा रही है। इस बेचैनी की अभिव्यक्ति के लिए मुसलमानों और विश्वविद्यालयों के वामपंथी रूझान वाले छात्रों को ढाल बनाकर देश विरोधी नारे लगवाए जा रहे हैं। अब तो ये कश्मीर से आगे बढ़कर पश्चिम बंगाल, असम और केरल को आजाद कराने जैसे विभाजनकारी नारे लगाने लगे हैं।
इसे दुर्भाग्य ही कहा जाएगा कि भारतीय विदेश नीति पर लंबे अरसे तक वोट बैंक की राजनीति हावी रही। यही कारण रहा कि आजादी के बाद दशकों तक देश-दुनिया में फिलीस्तीनियों के मानवाधिकारों के लिए आंसू बहाने वाला भारत कभी भी पाकिस्तान, बांग्लादेश, अफगानिस्तान में रहने वाले लाखों हिंदुओं-सिखों के मानवाधिकार हनन के विरूद्ध आवाज नहीं उठा सका।
दरअसल कांग्रेस सरकार को यह भय था कि यदि सरकार हिंदुओं-सिखों के मानवाधिकारों की आवाज उठाएगी तो देश के मुसलमान उसे वोट नहीं देंगे। मुस्लिम वोट छिटकने के डर से कांग्रेस ने वर्षों तक इजराइल से राजनयिक संबंध स्थापित नहीं किया। इसके बावजूद मुसीबत के समय भारत सरकार ने इजराइल से गुपचुप तरीके से सैन्य मदद लेने में संकोच नहीं किया। खैर, लंबे अरसे की उपेक्षा के बाद जब नरेंद्र मोदी सरकार इन देशों में रहने वाले अल्पसंख्यकों की सुध ले रही है और इजराइल से मैत्रीपूर्ण संबंध स्थापित कर रही है तब देश के सेकुलर खेमे में खलबली मची है।
नागरिकता संशोधन कानून के समर्थन में देश भर में हो रहे प्रदर्शन भी सेकुलर खेमे की नींद हराम किए हुए हैं। यही कारण है कि यह खेमा अपनी तुष्टीकरण वाली नीतियों को देश भर में फैलाने की कवायद में जुट गया है। इस खेमे में उन नेताओं, पत्रकारों, बुद्धिजीवियों की संख्या सबसे ज्यादा है, जिन्हें मोदी सरकार के कार्यकाल में सेकुलरिज्म के नाम पर मलाई खाने का मौका नहीं मिल रहा है। कई नेता मोदी सरकार की सबका विकास वाली नीति से चिंतित हैं। उन्हें डर है कि जैसे-जैसे यह नीति निचले स्तर पर पहुंचेगी वैसे-वैसे उनकी राजनीतिक जमीन खिसकती जाएगी। इसीलिए वे करो या मरो वाली नीति अपनाए हुए हैं।
मुंबई के गेट वे ऑफ इंडिया में फ्री कश्मीर का पोस्टर हो या जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय में हुई हिंसा के विरोध में मैसूर विश्वविद्यालय में हुए प्रदर्शन की नारेबाजी इन सभी के पीछे यह सेकुलर खेमा ही है। अब तो फ्री कश्मीर का नारे का दायरा पश्चिम बंगाल, केरल और असम तक फैलता जा रहा है। कल को यह नारा हर शहर के मुस्लिम बहुल इलाकों के लिए लगने लगे तो आश्चर्य नहीं होना चाहिए। इसका मतलब यह है कि जिन इलाकों में मुसलमानों की संख्या अधिक हो उन इलाकों को भारत से अलग करके आजाद घोषित कर दिया जाए।
9 फरवरी, 2016 को जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय के कुछ छात्रों ने अफजल गुरू की फांसी की तीसरी सालगिरह के मौके पर एक विरोध प्रदर्शन आयोजित किया था। इसमें भारत तेरे टुकड़े होंगे का नारा लगाया गया। उसके बाद से ही जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय मुखर रूप से राष्ट्रविरोधी गतिविधियों का अड्डा बन गया।
नागरिकता संशोधन अधिनियम बनने और जनगणना के साथ-साथ राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर (एनपीआर) बनाने की मोदी सरकार की घोषणा के बाद से ही जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय के वामपंथी-कांग्रेसी रूझान वाले छात्र मोदी सरकार की नए सिरे से घेरेबंदी में जुट गए। गौरतलब है कि राष्ट्रीय नागरिकता रजिस्टर की शुरूआत यूपीए शासन काल के दौरान हुई थी। उस समय सेकुलर खेमे को यह रजिस्टर अल्संख्यक विरोधी नहीं लग रहा था लेकिन अब लगने लगा है क्योंकि 2020 में रजिस्टर मोदी सरकार तैयार करा रही है।
समग्रत: भले ही टुकड़े-टुकड़े गैंग अपनी देश विरोधी गतिविधियों से कांग्रेस-वाम पोषित मीडिया में जगह बना ले, लेकिन इनके नापाक मंसूबे कभी कामयाब नहीं होंगे क्योंकि देश छद्म सेकुलरिज्म की राजनीति को पहचानकर उससे आगे बढ़ चुका है।
(लेखक केन्द्रीय सचिवालय में अधिकारी हैं। ये उनके निजी विचार हैं।)