नक्सल प्रभावित इलाकों में जमीनी विकास, कृषि व वन उपज की बिचौलिया मुक्त विपणन व्यवस्था, जनजातीय नायकों का सम्मान, बिजली, सड़क, रसोई गैस, शौचालय, जैसी मूलभूत सुविधाओं की सभी तक पहुंच, सुरक्षा बलों की समन्वित रणनीति जैसे कारणों से वामपंथ प्रेरित नक्सलवाद दम तोड़ने लगा है। आंकड़े इसकी पुष्टि करते हैं। 2009 में जहां वामपंथी उग्रवादी हिंसा की 2258 घटनाएं हुई थी वहीं 2021 में इनकी संख्या घटकर 509 रह गई।
नक्सलवाद केवल कानून व्यवस्था की समस्या नहीं है। भले ही इसे वामपंथी दलों ने शुरू किया हो लेकिन असमान और शोषणपरक विकास ने इसके प्रसार के लिए उर्वर जमीन मुहैया कराई। यहां पूर्व प्रधानमंत्री स्वर्गीय राजीव गांधी का वह कथन याद आता है कि दिल्ली से जन कल्याण के लिए भेजे गए एक रुपये में से लाभार्थियों तक 15 पैसे ही पहुंच पाते हैं बाकी 85 पैसा बिचौलिए हड़प लेते हैं।
इसी भ्रष्ट व्यवस्था ने नक्सलवाद को खाद-पानी देने का काम किया। दुर्भाग्यवश कांग्रेसी सरकारों ने भ्रष्टाचार की स्वीकारोक्ति के बावजूद इसे दूर करने का कोई प्रयास नहीं किया। वे केवल पुलिसिया कार्रवाई और दमन के बल पर नक्सलवाद की समस्या को दूर करने का नाटक करती रहीं। इसका नतीजा यह हुआ कि नक्सलवाद का दायरा लगातार बढ़ता गया।
2014 में प्रधानमंत्री बनने पर नरेंद्र मोदी ऐसी व्यवस्था बनाने में जुट गए जिसमें विकास का लाभ सभी तक पहुंचे। सड़क, बिजली, पेयजल, रसोई गैस, शौचालय, बैंक, बीमा जैसी मूलभूत सुविधाएं बिना किसी भेदभाव के सभी देशवासियों तक पहुंचाई गई। इसके अलावा मोदी सरकार ने जन कल्याण की धनराशि सीधे लाभार्थियों के बैंक खातों में पहुंचाने की बिचौलिया मुक्त व्यवस्था किया।
इसी का नतीजा है कि आज प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व में जन कल्याण के लिए दिल्ली से भेजे गए एक रुपये में से पूरे के पूरे सौ पैसे लाभार्थियों तक पहुंच रहे हैं। इतना ही नहीं मोदी सरकार ने दुर्गम क्षेत्रों में पेयजल, शिक्षा, स्वास्थ्य, रोजगार की सुविधाएं बढ़ाई। वनोपज और कृषि उपज की बिक्री आनलाइन बिक्री बढ़ी जिससे बिचौलियों से मुक्ति मिली। इसी का नतीजा है कि जहां 2010 में नक्सली हिंसा से होने वाले मौतों की संख्या 1005 थी वहीं 2021 में यह घटकर मात्र 147 रह गई।
प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व में सरकार बनने के बाद नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में नक्सलवाद की समस्या से सख्ती से निपटने के साथ-साथ इन क्षेत्रों में जमीनी विकास के लिए उपाय किए गए। 2013-14 की तुलना में 2020-21 में जनजातीय विकास के बजट में 75 प्रतिशत वृद्धि। सरकार ने नक्सलवाद प्रभावित इलाकों में सड़कों का जाल बिछया। गांव-गांव में खेल प्रतियोगिताएं हो रही है।
नक्सली क्षेत्रों के युवा राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय प्रतियोगिताओं में हिस्सा ले रहे हैं। एकलव्य आवासीय विद्यालय, वन धन योजना जनजातियों के सशक्तिकरण का माध्यम बन गई है। एकलव्य आवासीय विद्यालय, वन धन योजना जनजातियों के सशक्तिकरण का माध्यम बन गई है। इससे प्रभावित होकर हजारों नक्सली हिंसा का रास्ता छोड़कर मुख्यधारा में लौट रहे हैं।
नक्सलवाद छोड़कर देश की मुख्यधारा से जुड़ चुके लोगों को नक्सलवादी फिर से हिंसक गतिविधियों में शामिल न कर लें इसके लिए मोदी सरकार नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में सुरक्षा बलों की उपस्थिति बढ़ा रही है जिससे जंगली इलाकों में आदिवासियों के बीच नक्सलवादियों का खौफ कम हो रहा है।
पिछले तीन साल में सुरक्षा बलों के 40 नए कैंप खोले गए हैं और 15 खोले जाने हैं। नक्सल प्रभावित इलाकों में मोबाइल टावरों की संख्या बढ़ाई गई है जिससे विकासीय गतिविधियों और सुरक्षा बलों को समन्वित रणनीति बनाने में मदद मिल रही है।
जनजातीय इलाकों के नायकों के सम्मान वाली सरकार की नीतियों ने भी यहां के लोगों में आत्मगौरव का भाव जगाया है। भोपाल (मध्य प्रदेश) के बगल में स्थित हबीबगंज रेलवे स्टेशन का नाम गोड वंश की रानी कमलापति के नाम पर बदला गया जिससे जनजातियों में गौरव बोध जागा।
इसी प्रकार राष्ट्रपति के रूप में एक संघर्षशील आदिवासी महिला के चयन ने नक्सल प्रभावित क्षेत्र के लोगों में आत्मविश्वास का संचार किया। इन्हीं जनपरक नीतियों का नतीजा है कि नक्सलवाद दम तोड़ने लगा है।
(लेखक केन्द्रीय सचिवालय में अधिकारी हैं। वरिष्ठ टिप्पणीकार हैं। प्रस्तुत विचार उनके निजी हैं।)